तारापीठ, पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है और इस स्थान को यहां स्थित तांत्रिक मंदिर के कारण जाना जाता है जो यहां की स्थानीय देवी तारा को समर्पित है जिन्हे शक्ति की एक मिसाल के रूप में पूजा जाता है। यह देवी हिंदू धर्म की प्रमुख देवी है। तारापीठ का शाब्दिक अर्थ होता है देवी तारा के बैठने का स्थान। तारापीठ को भारत में शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। तारापीठ और उसके आसपास स्थित पर्यटन स्थल
एक धार्मिक गंतव्य स्थल होने के नाते, तारापीठ में कई तीर्थस्थल जैसे - बीरचंद्रपुर मंदिर, नलहटेश्वर मंदिर, मल्लरपुर शिव मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, मालुती मंदिर आदि शामिल है।
तारापीठ के लीजेंड
किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव की पत्नी सती ने उनके पिता द्वारा अपमान होने के बाद, वह एक पवित्र अग्नि कुंड में कूद गई थी और अपने शरीर का त्याग कर दिया था। पत्नी की मृत्यु से व्याकुल भगवान शिव ने उनके शव को लेकर सारी दुनिया में तबाही मचानी शुरू कर दी और तांडव नृत्य करने लगे ताकि वह सृष्टि का विनाश कर दें।
इसके पश्चात्, भगवान विष्णु ने सृष्टि को बचाने के लिए माता सती के शव के अंगों को अपने चक्र से काटना शुरू कर दिया ताकि भगवान का मोह भंग किया जा सके। कटे हुए अंग जिन - जिन स्थानों पर गिरते गए, वहां - वहां शक्तिपीठ की स्थापना होती गई। तारापीठ में देवी की आंखे गिरी थी, बंगाली में तारा का अर्थ, आंख होता है। यह शक्तिपीठ जिस स्थान पर स्थित है, उसका नाम पहले चंडीपुर था, जिसे बाद में बदलकर तारापीठ कर दिया गया।
सती को आदिशक्ति का दूसरा रूप कहा जाता है। तारापीठ में दो किंवदंतियों को एक साथ जोड़कर धार्मिक महत्व बताया जाता है।
मंदिर
तारादेवी मंदिर, एक मध्यम आकार का मंदिर है जिसमें दीवारों पर संगमरमर लगा हुआ है और इसकी ढ़लानदार छत को ढोचाला कहा जाता है। मंदिर में देवी के कई रूपों को दर्शाया गया है, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदिशक्ति के कई रूप थे - काली, दुर्गा आदि।
मंदिर में सभी प्रवेश द्वार बेहद सुंदर नक्काशी वाले है। इनमें धातुओं को भी बारीकी से काम किया गया है और गुडहल के पवित्र फूलों को बनाया गया है। इसके अलावा, भगवान शिव और चकरस की मूर्तियां भी बनी हुई है।
मंदिर की मूर्ति में तीन आंखे, एक सिंदूर से सना हुआ मुंह है। यहां तारा मां का प्रसाद मिलता है जिसमें उनको स्नान कराया जाने वाला पानी, सिंदुर और शराब मिली होती है। शराब को यहां के तांत्रिक साधु पीते है और वह इसे भगवान शिव का प्रसाद मानकर ग्रहण करते है। तारा देवी पर भक्तगण, शराब भी चढ़ाते है।
तांत्रिक शमशान मैदान
इस मंदिर के पास में ही तांत्रिक शमशान मैदान स्थित है जहां वर्षो से कई तांत्रिक गतिविधियां चलती आ रही है। महसमंशा नामक इस शमशान भूमि के बारे में लोगों को मानना है कि आज भी यहां देवी तारा की हड्डियों और अस्थि पंजरों को जोडकर उनके दर्शन पाएं जा सकते है। हर दिन यहां भारी मात्रा में जानवरों की बलि दी जाती है और देवी को समर्पित की जाती है।
महसमंशा में हजारों पर्यटक अपनी मुराद पूरी करने की इच्छा रखते है। और यहां के तांत्रिक और साधु आसपास के इलाकों में ही रहते है और यहां इन क्रियाओं को करके अपना जीवन यापन और साधना पूरी करते है।
संत बामखेपा
यहां के प्रमुख तांत्रिकों में से एक संत बामखेपा है जिन्हे इलाके में काफी प्रसिद्धि मिली हुई है। इन्हे तारापीठ का पागल संत भी कहा जाता है। यहां के गुलाबी मंदिर को श्री श्री बामदेव स्मृति मंदिर कहा जाता है जो इन्ही संत को समर्पित है। यह मंदिर, गांव में प्रवेश करते ही पड़ता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही एक लाल रंग की समाधि बनी हुई है और गुंबद भी बनी हुई है। इस मंदिर में हजारों पर्यटक, दर्शन करने आते है।
तारापीठ कैसे पहुंचे
तारापीठ तक सड़क, रेल और वायु मार्ग के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।