महुआ दबार, बस्ती जिले से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है जो भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान अर्जित कर चुका है। इस अनजाने निवास स्थान को निरंतर अनुसंधान के माध्यम से मोहम्मद लतीफ अंसारी ने खोजा था, जो मुम्बई के बिजनेसमैन थे और उनके पूर्वज यहां 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए थे। बाद में इन शोधकर्ता को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ए. पी. जे अब्दुल कलाम द्वारा सराहनीय कार्य के लिए एक प्रमाण पत्र दिया गया था।
जब भारत में आजादी के िलए पहली बार मोर्चा खोला गया था तो मेरठ से 10 मई 1857 को और दिल्ली से 11 मई 1857 को इसकी आग सुलगनी शुरू हुई थी, महुआ दरबार के निवासियों का जफर अली ने नेतृत्व किया था, जिन्होने 6 आर्मी ऑफीसर वाली टुकड़ी को मार गिराया था जो कि मनोरमा नदी के पास में ही थे।
उन लोगों के इस दुस्साहस के बदले, अंग्रेजों ने 12 वें अनियमित घुडसवारों की फौज, जिसका नेतृत्व बस्ती के डिप्टी मजिस्ट्रेट डब्ल्यू पेप्पे कर रहे थे, उन्होने पूरे बसती शहर को जला दिया था। उन लोगों ने पूरी आबादी को मार ड़ाला था, सभी के घरों को जला दिया था, सारे नामों - निशान हटा दिए थे, ऐसा लगता था जैसे यहां कोई जीवन कभी था ही नहीं। उन्होने इस क्षेत्र को कृषि भूमि में बदल दिया था।