केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर का सर्वाधिक प्रसिद्द पर्यटन आकर्षण है। यह पार्क जिसे केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, का निर्माण लगभग 250 वर्ष पहले महाराजा सूरजमल ने करवाया था। 1964 में जब तक यह उद्यान पक्षी अभयारण्य के रूप में स्थापित नहीं हुआ था तब तक भरतपुर के महाराजा इस उद्यान का उपयोग बतखों के शिकार के लिए निजी स्थान के रूप में किया करते थे। 1982 में भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य को राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया और इसका नाम केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। वर्ष 1985 में यूनेस्को ने इस उद्यान विश्व विरासत स्थान की मान्यता दी।
प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक इस लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यान की सैर करने के लिए आते हैं। वर्तमान में इस पार्क में कछुओं की 7 किस्में, मछलियों की 50 किस्में और उभयचरों की 5 किस्में पाई जाती हैं। इसके अलावा यह उद्यान पक्षियों की लगभग 375 किस्मों का प्राकृतिक आवास है।
मानसून के मौसम के दौरान देश के प्रत्येक भागों से पक्षियों के झुंड यहाँ आते हैं। पानी में पाए जाने कुछ पक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, कुछ अन्य पक्षी जैसे पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख, और गद्वाल्ल्स यहाँ पाए जाते हैं। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटक अन्य पक्षी जैसे शाही गिद्ध, मैदानी गिद्ध, पीला भूरा गिद्ध, धब्बेदार गिद्ध, हैरियर गिद्ध और सुस्त गिद्ध देख सकते हैं। पक्षियों के अलावा पर्यटक जानवर जैसे काला हिरन, पायथन, साम्बर, धब्बेदार हिरण और नीलगाय देख सकते हैं।
केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर से बस और ऑटोरिक्शा से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है; विशेष अनुरोध पर विद्युत गाडियां भी उपलब्ध हैं। हालांकि इस पार्क की सैर का सबसे अच्छा तरीका यह है कि पैदल, साईकिल या साईकिल रिक्शे द्वारा इसकी सैर की जाए। इच्छुक पर्यटक उद्यान अधिकारियों की अनुमति से किफ़ायती दाम पर किराये की साईकिल ले सकते हैं।