जैन जम्बूद्वीप मंदिर, जैन साध्वी, परम पूज्य शिरोमणि ज्ञानमती माताजी के अथक और समर्पित प्रयासों की स्मृति में श्रद्धापूर्वक बनवाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि साध्वी ने 1965 में विंध्य पर्वतश्रेणी में भगवान बाहूवली की पवित्र मूर्ति के नीचे ध्यान लगाते हुए एक स्वप्न देखा, जिसमें उन्होने मध्यलोक - मिडिल यूनीवर्स के साथ तेरह द्वीपों को देखा।
बाद में साध्वी द्वारा देखे गए स्वप्न को तिलोपन्नट्टी और त्रिलोस्कर जैसे जैन धर्म से जुड़े शिलालेख मिलने के बाद सच मान लिया गया, यह सभी शिलालेख लगभग 2000 साल पुराने थे। माना जाता है कि पहले जैन तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव ने भी ठीक यही स्वप्न देखा था।
साध्वी ने सही स्थान देखने के लिए पदयात्रा ( पैदल यात्रा ) पूरे देश में शुरू कर दी, ताकि सवप्न में देखे गए स्थल को ढूंढा जा सके। अंत में वह हस्तिनापुर आ पहुंची, जहां उन्होने महसूस किया कि यह वह जगह है जो उनके द्वारा स्वप्न में देखी गई थी। इस मंदिर की आधारशिला 1974 में रखी गई थी, जो पूरी तरीके से 1985 में बनकर तैयार हुआ।
वास्तव में, इस मंदिर की संरचनात्मक प्रतिनिधि को तीर्थांकरों की धार्मिक पुस्तकों में दुनिया के भूगोल में दर्शाया गया है। यहां 101 फीट ऊंचा सुमेरू पर्वत का केंद्र है और 250 फीट व्यास का जम्बूद्वीप है जो चार दिशाओं में चार क्षेत्रों में फैला है - पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण।