वड़ोदरा या बड़ौदा विश्वामित्री नदी के किनारे पर स्थित है। कभी यह गायकवाड़ साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। विश्वामित्री नदी के आसपास दो हजार साल पुराने पुरातात्त्विक अवशेष पाए गए हैं। इन अवशेषों से पता चलता है कि यहां कभी अकोला वृक्ष के झुरमुट के बीच अंकोत्तका नाम से एक छोटी सी बस्ती हुआ करती थी, जिसे अब अकोता नाम से जाना है।
इसके अलावा पूर्व की ओर एक किमी दूर ‘वड़’ यानी बरगद पेड़ के घने जंगल में एक इलाका हुआ करता था। इसे वड़पत्रक के नाम से जाता जाता था। यही वह जगह है जहां पर आज वड़ोदरा स्थित है। वड़ोदरा शब्द की उत्पत्ति वटोदर से हुई है, जिसका अर्थ होता है- बरगद के पेड़ का पेट। बाद में अंग्रेजी शासनकाल के समय इसका नाम बड़ौदा पड़ा। यह नाम लंबे समय तक रहा और फिर यह वड़ोदरा हो गया।
इतिहास
एक समय में इस शहर में चार प्रवेश द्वारा थे, जिसे आज भी देखा जा सकता है। 10वीं शताब्दी में वड़ोदरा पर चालुक्य वंश का शासन था। इसके बाद यहां सोलंकी, बघेल और दिल्ली व गुजरात के सुल्तानों ने शासन किया। मराठा सेनापति पिलाजी गायकवाड़ उन शासकों में से एक थे, जिन्होंने इस क्षेत्र का विकास किया और वड़ोदरा के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत की।
उनसे पहले बाबी नवाबों ने भी बड़ोदरा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। महाराजा सयाजी राव तृतीय का शासनकाल वड़ोदरा के इतिहास में स्वर्णिम काल माना जाता है। इस दौरान न सिर्फ महत्वपूर्ण विकास कार्य हुए, बल्कि बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक सुधार भी हुए। वड़ोदरा शहर सांस्कृतिक विरासत को बेमिसाल तरीके से सहेजे हुए है, जिससे इसे संस्कारी नगरी यानी ‘सिटी ऑफ कल्चर’ भी कहा जाता है।
संस्कृति
पूरे गुजरात में वड़ोदरा गरबा मनाने के लिए बहुत प्रसिद्ध है। स्थानीय गरबा मैदान पर यह उत्सव गाने, नृत्य, रोशनी के बीच पूरे उत्साह से मनाया जाता है। इस दौरान अक्सर रासा और गरबा नृत्य आधी रात के बाद भी जारी रहता है। यहां मनाए जाने वाले कुछ अन्य त्योहारों में दिवाली, उत्तरायन, होली, ईद, गुड़ी पर्व और गणोश चतुर्थी प्रमुख है।
वड़ोदरा की संस्कृति बेहद समृद्ध है। वड़ोदरा म्यूजियम और महाराजा फतेह सिंह म्यूजियम, पुरानी कीर्ति मंदिर में नंदलाल बोस द्वारा बनाई गई भागवत गीता की भित्तीचित्र, महाराजा सयाजी यूनिवर्सिटी और पिक्चर गैलरी यहां की सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाते हैं। इन सभी का विकास गायकवाड़ के संरक्षण में हुआ है।
भूगोल
विश्वामित्री नदी के किनारे पर बसा वड़ोदरा गुजरात के बीच में स्थित है। गर्मी के समय यह नदी लगभग सूख जाती है और सिर्फ पानी की एक छोटी सी धारा ही नजर आती है। यह माही और नर्मदा नदी के मैदान के बीच में है। भूकंप के मामले में यह अतिसंवेदनशील क्षेत्र है और ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड ने एक से पांच के स्केल में इस शरह को भूकंप जोन-3 के अंतर्गत रखा है।
विश्वामित्री नदी वड़ोदरा को भौगोलिक रूप से पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र में बांटती है। वड़ोदरा का पुराना शहर नदी के पूर्वी किनारे पर बसा है। वहीं विश्वामित्री नदी के पश्चिमी ओर वड़ोदरा का नया शहर है। शहर का यह हिस्सा पूरी तरह से नियोजित है और अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश है।
वड़ोदरा का मौसम
वड़ोदरा की जलवायु सवाना उष्णकटिबंधीय है। यहां का मुख्य मौसम गर्मी, बरसात और ठंड का है। अगर बरसात के मौसम को छोड़ दिया जाए तो अन्य दिनों में यहां का मौसम काफी शुष्क रहता है। यहां भीषण गर्मी पड़ती है और बरसात के समय मुसलाधार बारिश होती है। वहीं ठंड के समय उत्तर से आने वाली ठंडी हवा से ठिठुरन बढ़ जाती है।
कैसे पहुंचें
दिल्ली, अहमदाबाद, गांधीनगर और मुंबई से बड़ोदरा अच्छे से जुड़ा हुआ है। शहर के अंदर एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए बस, ऑटो रिक्शा और टैक्सी मिल जाएंगे। यहां की सड़कों पर आप कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल और साइकिल को दौड़ते हुए देख सकते हैं।
बड़ोदरा और आसपास के पर्यटन स्थल
वड़ोदरा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों से भरा पड़ा है। आप यहां कडिया डूंगर की गुफाएं, लक्ष्मी विलास महल, नजरबाग महल, मकरपुरा महल, श्री अरविंदो निवास, अंकोत्तका, सयाजी बाग, सुरसागर तालाब, दभोई और छोटा उदयपुर में घूमने का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा यहां के वधवाना वेटलैंड एंड ईको कैंपसाइट जैसे प्राकृतिक पार्क प्रवासी पक्षियों को देखने का बेहतरीन विकल्प मुहैया कराते हैं।
अगर आप चाहें तो संखेड़ा भी जा सकते हैं, जो फर्नीचर और शिल्प उत्पाद में रोगन की तकनीक के लिए जाना जाता है। यहां आप रोगन की प्रक्रिया को देख सकते हैं या फिर शिल्प उत्पाद खरीद सकते हैं। यहां गायकवाड़ काल से चली आ रही सांस्कृतिक गतिविधियों और प्राकृतिक विविधताओं के कारण वड़ोदरा एक अवश्य घूमा जाने वाला शहर बन जाता है।