सेंट फिलोमेना चर्च को सेंट जोसेफ चर्च के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप मैसूर जा रहे हैं, तो यह चर्च जाने की कोशिश जरूर करें। इस चर्च का निर्माण कार्य 1933 में महाराजा कृष्णराजा वुडेयार ने शुरू किया था और यह 1941 में बनकर तैयार हुआ था। इसे गौथिक वास्तुशिल्पीय शैली में बनाया गया था और चर्च के वेदी के नीचे तीसरी शताब्दी के अवशेष को भी सुरक्षित रखा गया है।
चर्च की व्यवस्था होली क्रॉस से प्रभावित है और एक सभागृह होने के साथ-साथ एक वेदी भी है। चर्च के गर्भ गृह में आप संगमरमर की वेदी पर सेंट फिलोमेना और जीजस क्राइस्ट की प्रतिमा को देख सकते हैं। चर्च में लगे ग्लास पेंटिंग्स में ईसा मसीह के जन्म से लेकर पुनजर्न्म तक की घटनाओं को देख सकते हैं।
चर्च की एक और खासियत यह है कि यहां दो 54 मीटर ऊंचे दो टावर बने हुए हैं। यह देखने में एक दम न्यूयार्क के सेंट पैट्रिक चर्च जैसा दिखता है।