राजामुंद्री को आंध्र प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर जाना जाता है। इतिहास के अनुसार इसी जगह पर महान कवि नन्नाया को तेलुगू लिपि की कल्पना की। उन्हें तेलुगू भाषा के पहले कवि यानी ‘आदिकवी’ के रूप में जाना जाता है। कवि नान्नाया और तेलुगू भाषा की जन्म स्थली होने के साथ-साथ राजामुंद्री वैदिक संस्कृति और मूल्यों के लिए भी जाना जाता है।
यही वजह है कि शहर में आज भी कई प्रचीन धार्मिक रीति रिवाज और कुछ दुर्लभ कलाएं देखी जा सकती हैं। यह आंध्रप्रदेश का आठवां सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है। क्षेत्रफल के लिहाज से यह राज्य का चौथा सबसे बड़ा शहर है। सरकार ने इस शहर का नाम ‘ग्रांड सिटी ऑफ कल्चर’ रखा है।
राजामुंद्री भारत के प्रचीन शहरों में से एक है। इसे चालुक्य राजा श्री राजाराजा नरेन्द्र ने कोई 1000 साल पहले बसाया था। कुछ मतों की मानें तो राजामुंद्री का अस्तित्व चालुक्य काल से भी पहले था। पहले यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था और ब्रिटिश शासन के दौरान 1823 में यह राजामुंद्री जिले का हिस्सा बना।
आजादी के बाद से ही राजामुंद्री गोदावरी जिले का जिला मुख्यालय रहा है। यह शहर राज्य की राजधानी हैदराबाद से 400 किमी दूर गोदावरी नदी के किनारे बसा है। इसे आंध्रप्रदेश का जन्मस्थान माना जाता है, क्योंकि राज्य की भाषा तेलुगू का जन्म यहीं हुआ था।
राजामुंद्री की उत्पत्ति
राजामुंद्री का उद्गम चालुक्य के समय से माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसे श्री राजाराजा नरेन्द्रम ने बसाया था और उन्हीं के नाम पर शहर का नामकरण हुआ। प्रचीन समय में यह शहर राजामहेंनद्री और राजामहेंद्रवरम नाम से जाना जाता था। 1893 में राजामुंद्री को सड़क और रेल मार्ग के जरिए विजयवाड़ा से जो दिया गया था।
इसी दौरान यहां कई शैक्षणिक संस्थानों की भी स्थापना की गई। इतना ही नहीं राजामुंद्री से कई स्वतंत्रता संघर्ष की भी शुरुआत हुई। द हिंदू समाचारपत्र के छह संस्थापकों में से एक सुब्बा राव राजामुंद्री से ही थे। आंध्र प्रदेश के महान सुधारक कंडुकुरी वीरेसालिंगम पंतुलु का संबंध भी राजामुंद्री से ही है।
इसी शहर से ही उन्होंने ज्यादातर सुधार गतिविधियों की शुरुआत की थी। उन्होंने ही 1890 में राजामुंद्री टाउन हाल का निर्माण करवाया था। ललित कला के क्षेत्र की भी कई हस्तियों ने यहां जन्म लिया है। उदाहरण के लिए आंध्र शैली की पेंटिंग्स में उल्लेखनीय योगदान देने वाले क्रांतिकारी दामेरला रामा राव का भी जन्म यहीं हुआ था।
वे न्यूड पेंटिंग बनाने वाले पहले भारतीयों में से एक थे। उनकी पेंटिंग्स ने हर जगह ख्याति अजिर्त की। साथ ही उन्होंने पेंटिंग की कला में कई प्रमुख तकनीकों की भी शुरुआत की। उन्होंने राजामुंद्री चित्र कलाशाला की शुरुआत की, जहां वह अपने शिष्यों को पेंटिंग की बारीकियां सिखाते थे। यहां उन्हें श्रद्धांजली देने के लिए उनके नाम पर एक गैलरी भी बनी हुई है। अगर आप राजामुंद्री में हैं तो यहां जरूर जाएं।
राजामुंद्री और आसपास के पर्यटन स्थल
राजामुंद्री में विज्ञान और तकनीक के विकास पर भी काफी ध्यान दिया गया है। यहां ऐसे कई सोसाइटी हैं, जिनका उद्देश्य इन्हें बढ़ावा देना है। ऐसी ही एक सोसाइटी है आर्यभट्ट साइंस एंड टेक्नालॉजी सोसाइटी, जिसका मकसद विज्ञान अनुप्रयोग के जरिए गरीब और पिछड़े वर्ग के विकास के लिए काम करना है।
इसके अलावा राजामुंद्री में ढेरों मंदिर भी हैं। इनमें से कुछ का विशेष महत्व है और यहां पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। श्री कोटिलिंगेश्वर मंदिर और श्री बाला त्रिपुरा सुंदरी मंदिर इसी श्रेणी में आते हैं। वहीं गौथामी घाट के नाम से जाना जाने वाला इस्कोन मंदिर भी धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है।
राजामुंद्री कैसे पहुंचें
आंध्र प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी होने के कारण राजामुंद्री देश के बाकी हिस्सों से रेल और सड़क मार्ग के जरिए अच्छे से जुड़ा हुआ है। राजामुंद्री एयरपोर्ट से सीमित उड़ानें ही हैं, जो इसे चेन्नई, मदुराई, विजयवाड़ा, बेंगलूरू और हैदराबाद से जोड़ती है।
राजामुंद्री का मौसम
राजामुंद्री का मौसम आमतौर पर गर्म और नम रहता है। यहां गर्मी के समय तापमान असहनीय हो जाता है। गर्मी के समय औसत तापमान 34 डिसे से 48 डिसे तक रहता है। कई बार तो तापमान 51 डिसे तक पहुंच जाता है। दिसंबर और जनवरी में सबसे ज्यादा ठंड पड़ती है और यह समय घूमने के नजरिए से काफी अच्छा होता है।