तिरूवेनकाडु नागपट्टिनम जिले में स्थित है। यह स्थान सिरकली, पूमफुर रोड से लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह नाम भगवान इन्द्र, जिन्होंनें यहां साधना की थी,के सफेद हाथी (ऐरावत) से लिया गया है। यह दक्षिण भारत के नवग्रह मंदिरों में से एक है। तिरूवेनकाडु काशी के समान ही छः दिव्य स्थलों में से एक है।
इस स्थान पर, सभी चीजें तीन की संख्या में हैं-पवित्र जल, आराध्य देव तथा दिव्य वृक्ष भी। तिरूवेनकाडु का सम्बन्ध नौ ग्रहों में से केवल बुद्ध ग्रह(बुध) से है। यह स्थान पचास शक्तिपीठों में से एक है। भगवान शिव की यहां 64 मूर्तियां है, यहां शिव जी का अघोरमूर्ति रूप दिखाई पड़ता है। यह वही स्थान है जहां भगवान शिव नें विभिन्न प्रकार के छः तांडव याने नृत्य किये थे। यह आदि चिदम्बरम के नाम से भी बहुत प्रसिद्ध है।
तिरूवेनकाडु का इतिहास
मुरूथुवन, एक राक्षस, नें भगवान ब्रह्रा से वरदान हासिल करके उसका प्रयोग देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया, तो देवताओं नें भगवान शिव से अपनी रक्षा की प्रार्थना की। तब भगवान शिव नें देवों को तिरूवेनकाडु में जाकर शरण लेने की सलाह दी थी। उसके बाद, भगवान शिव नें अपने वाहन (नंदी) को राक्षस से लड़ने के लिए भेजा।
नंदी ने दैत्य पर विजय हासिल करके उसे समुद्र में फेंक दिया। उसके बाद, उस राक्षस नें भगवान शिव से बार-बार माफी मांगी व पछताया तथा उन्हें प्रसन्न करके भगवान शिव से सूल प्राप्त कर लिया। सूल प्राप्त करने के बाद, राक्षस निर्दोष लोगों पर और अधिक शक्ति से सम्पन्न होकर आक्रमण के लिये वापस लौटा।
फिर से, देवों नें भगवान शिव से उन्हें बचाने की प्रार्थना की, तो फिर से भगवान शिव नें नंदी को वहां भेजा। लेकिन, इस बार नन्दी उस राक्षस को न हरा सका क्योंकि राक्षस के पास सूल (भगवान शिव द्वारा प्रदत्त) था। इस प्रकार, दैत्य ने नन्दी को उस सूल से बुरी तरह घायल कर दिया।
नंदी की पीठ पर हुए घाव को उनकी मूर्ति पर देखा जा सकता है। नंदी के घावों से क्रोधित होकर, भगवान शिव नें अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और उस राक्षस को मार डाला। भगवान शिव का रूप जो इस मूर्ति में दिखाई पड़ता है, उनके क्रोध की अभिव्यक्ति है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई भगवान शिव के इस अघोर रूप की आराधना करता है, उसके कभी शत्रु नहीं होते।
तिरूवेनकाडु तथा उसके आस-पास के पर्यटन स्थल
सभी 8 नवग्रह्र स्थल तिरूवेनकाडु (नवग्रह स्थलों में से एक) के समीप ही स्थित हैं। थिरूनल्लर( शनि या शिव के लिए), कंजानूर( शुक्र देव के लिए), सूर्यनार कोइल (सूर्य देव के लिए), थिरंगेश्वरम (राहु देव के लिये),थिंगलूर( चंद्र देव के लिए), कीधपेरूमपलम( केतु देव के लिये) थिरूवेंकाडु के सामीप्य स्थित हैं।
तिरूवेनकाडु मौसम
मौसम तिरूवेनकाडु में गर्म रहता है। थिरुवेंकाडु की यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के मध्य है।
तिरूवेनकाडु कैसे पहुंचे
तिरूवेनकाडु, तंजावर, त्रिची, मदुरई, चेन्नई, कन्याकुमारी, तिरूवनंतपुरम आदि से हवाई मार्ग, रेल व सड़क मार्ग द्वारा बड़े अच्छे तरीके से जुड़ा हुआ है।