गाडरमल मंदिर विदिशा से करीब 84 किमी दूर है। हालांकि विदिशा से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। विदिशा से पठारी के लिए नियमित बसें चलती है, जिससे यात्री गाडरमल मंदिर पहुंच सकते हैं। खुद पठारी कस्बे में भी मध्यकाल के कई मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। इन सबके बीच गाडरमल मंदिर का महत्व सबसे ज्यादा है।
यह मंदिर अपनी ऊंचाई के कारण काफी दूर से ही दिखाई देता है। मंदिर में दो अलग-अलग बेसमेंट होने के कारण देखने पर ऐसा लगता है कि यह दो भाग में बंटा हुआ है। मजेदार बात यह है कि दोनों बेसमेंट दो अलग-अलग काल के मालूम पड़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का संबंध 9वीं शताब्दी से है।
ऐसा भी मानना है कि यहां आसपास में जैन और हिंदू मंदिरों के बिखरे पड़े अवशेषों से इस मंदिर को बनाया गया था। गाडरमल मंदिर में प्रवेश द्वार तो है, पर प्रार्थना के लिए मुख्य कक्ष नहीं है। इस मंदिर को देख कर ग्वालियर का ‘तेली का मंदिर’ याद आ जाता है। गाडरमल मंदिर सात दूसरे तीर्थ स्थलों के खंडहर से घिरा हुआ है।