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कोल्लूर पर्यटन - देवी मूकाम्बिका की दिव्य भुजाओं में

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कोल्लूर कर्नाटक के कुंदापुर तालुक में एक छोटा सा गाँव है तथा देश भर के यात्रियों के लिए एक विशेष स्थान है। नित्य बहने वाली सोपर्णिका नदी के तट पर तथा पश्चिमी घाटों के सामने स्थित इसके नैसर्गिक स्थान, इस प्रसिद्ध मंदिरों के शहर के शांत वातावरण की खूबसूरती को बढ़ाते हैं। यह प्रसिद्ध मूकाम्बिका मंदिर का स्थान है, कहते हैं कि इसे भगवान परशुराम द्वारा निर्मित किया गया था।

इसके इतिहास के कुछ खंड़ - कोल्लूर के पर्यटन स्थल

मूकाम्बिका मंदिर देश के सबसे व्यस्त धार्मिक स्थलों में से एक है और यह शक्ति पूजा का एक महत्वपूर्ण स्थान है। कहते हैं कि यहां देवी पार्वती ने मोकासुर नामक एक असुर का वध किया था इसलिए इसका नाम मूकाम्बिका रखा गया। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मूल रुप से केवल एक ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग के चारों ओर एक स्वर्ण रेखा है, जो इसे पूरी तरह से दो हिस्सों में विभाजित करती है।

कहते हैं कि छोटा हिस्सा जागृत शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जोकि ब्रह्मा, विष्णु और शिव के त्रिमूर्ति रुप का आदर्श रुप है और बड़ा हिस्सा सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी के रचनात्मक स्त्री बल का प्रतीक है। इस ज्योतिर्लिंग के पीछे स्थित देवी मूकाम्बिका की सुंदर धातु की मूर्ति को श्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था।

कहते हैं कि देवी उनके सामने प्रकट हुई और शंकराचार्य ने देवी से अनुरोध किया कि वे उनके पीछे-पीछे केरल आएं और वहां वास करे ताकि वे उनकी हर रोज पूजा कर सकें। देवी उनके पीछे चलने के लिए तैयार हो गई, लेकिन देवी की एक शर्त थी कि चलते समय यह जानने के लिए की वह उनके पीछे चल रही है या नहीं शंकराचार्य को पीछे पलट कर नहीं देखना है।

जब आदि शंकराचार्य इस स्थान पर पहुंच तब देवी के पैरों की पायल की आवाज़ आनी बंद हो गई, तब शंकराचार्य ने पीछे पलट कर देखा तो शर्त के अनुसार देवी ने उनके पीछे चलने से इनकार कर दिया। फिर शंकराचार्य ने कोल्लूर मंदिर में ज्योतिर्लिंग के पीछे देवी की धातु की मूर्ति को स्थापित किया।

केवल इतना ही नहीं

घने जंगलों में स्थित अरासिंगुंडी झरना, यहाँ का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। झरने पर गिरती सूरज की रोशनी के कारण यह झरना गूढ़ा पीला या नारंगी रंग का दिखाई देता है। ये रंग इसे अरासिं(हल्दी जैसा पीला) का नाम देते हैं।

कोदाचद्री पर्वत श्रृंखला एक अन्य पर्यटन स्थल है –

यह वही स्थान है जहां श्री आदि शंकराचार्य को देवी के प्रथम दर्शन हुए थे। यहां उत्सुक ट्रेकर अक्सर आते हैं। नवरात्रि या दशहरे का त्योहार इस मंदिरों के शहर की यात्रा करने के लिए एक विशेष समय है, जब इस त्रिमूर्ति देवी को समर्पित नवरात्रि की नौ रातें बड़ी भव्यता के साथ मनाई जाती हैं।

कोल्लूर, वन्यजीव आरक्षित वन का एक हिस्सा है, हांलाकि मूकाम्बिका वन्यजीव अभयारण्य एक कम प्रचलित प्राकृतिक आश्रय स्थान है। इसे विश्व वन्यजीव निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) से सहायता प्राप्त होती है। कोल्लूर सुरम्य सौंदर्य का एक स्थान है तथा लुभावनी घाटियों, पहाड़ियों एवं जलमार्ग का वास स्थान है। यह स्थान और इसके मंदिर आपकी कोल्लूर की यात्रा को एक अविस्मरणीय अनुभव बना देंगें।

कैसे पहुंचे कोल्लूर

इस शहर का निकटतम रेलवे स्टेशन कुंदापुर रेलवे स्टेशन है, जबकि मंगलौर इसका निकटतम हवाई अड्डा है। कर्नाटक के कोनों से कोल्लूर के लिए आसानी से बसों की सेवा उपलब्ध है।

कोल्लूर का मौसम

कोल्लूर की सुंदरता को देखने के लिए अक्टूबर से मार्च महीने तक का समय इसकी सैर के लिए एक आदर्श समय है।

कोल्लूर इसलिए है प्रसिद्ध

कोल्लूर मौसम

घूमने का सही मौसम कोल्लूर

  • Jan
  • Feb
  • Mar
  • Apr
  • May
  • Jun
  • July
  • Aug
  • Sep
  • Oct
  • Nov
  • Dec

कैसे पहुंचें कोल्लूर

  • सड़क मार्ग
    पर्यटक निकटतम कस्बों और शहरों से के.एस.आर.टी.सी (कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम) की बसों द्वारा कोल्लूर पहुंच सकते हैं। 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उडुपी से भी कई निजी बसों की सेवा उपलब्ध है। पर्यटक नजदीकी स्थानों से किसा किराये की टैक्सी द्वारा भी कोल्लूर पहुँच सकते हैं।
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  • ट्रेन द्वारा
    कुंदापुर रेलवे स्टेशन कोल्लूर का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है। कुंदापुर रेलवे स्टेशन आसपास के प्रमुख शहरों और कस्बों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पर्यटक किराये की टैक्सी या बस द्वारा भी रेलवे स्टेशन से कोल्लूर पहुंच सकते हैं।
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  • एयर द्वारा
    कुंदापुर रेलवे स्टेशन कोल्लूर का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है। कुन्दापुर रेलवे स्टेशन आसपास के प्रमुख शहरों और कस्बों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पर्यटक किराये की टैक्सी या बस द्वारा भी रेलवे स्टेशन से कोल्लूर पहुंच सकते हैं।
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