विरासत के प्राचीन प्रतीक अम्बालापुझा श्री कृष्ण मंदिर को यहाँ के शासक चेम्बकास्सेरी पूरण्डम थिरूनल – देवानरायन थम्पूरन ने 790 ई0 के आसपास बनवाया था। मन्दिर के इष्टदेव पार्थसारथी को एक योद्धा के रूप में दिखाया गया है जिसमें उनके एक हाथ में कोड़ा तथा दूसरे हाथ में शंख है।
शंख को अक्सर भगवान विष्णु या उनके अवतारों का प्रतीक माना जाता है किन्तु अम्बालापुझा श्री कृष्ण मंदिर उन दुर्लभ मन्दिरों में है जिसके इष्टदेव के पास शंख के साथ-साथ कोड़ा भी है। यह मन्दिर पौराणिक रूप से प्रख्यात गुरुवयूरप्पन से भी जुड़ा है।
ऐसा माना जाता है कि गुरुवयूरप्पन इस मन्दिर में नैवेद्यम के लिये परोसे जाने वाले कुशलता से बनाये गये दूध-दलिया के भोग के लिये आज भी यहाँ रोज आते हैं। मन्दिर में इष्टदेव की स्थापना की स्मृति में प्रतिवर्ष अम्बालापुझा उत्सव मनाया जाता है। अरट्टू उत्सव यहाँ पर मनाया जाने वाला एक और वार्षिक त्योहार है।