काँचीपुरम सम्भवतः तमिलनाडु का सबसे पुराना शहर है जिसने अपने पुराने आकर्षण को बरकरार रखा है। शहर न केवल अपने मन्दिरों के लिये बल्कि पल्लव रोजाओं की समकालीन राजधानी होने के कारण भी प्रसिद्ध है। आज भी कभी-कभी इस शहर को इसके पुराने नामों काँचियमपती और काँजीवरम से पुकारा जाता है। तमिलनाडु की राजधानी से मात्र 72 किमी की दूरी पर स्थित होने के कारण इस शहर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
काँचीपुरम हिन्दुओं के लिये पवित्र शहर है क्योंकि यह उन सात पवित्र स्थानों में से एक है जहाँ प्रत्येक हिन्दू को अपने जीवनकाल में अवश्य जाना चाहिये। हिन्दू मान्यता के अनुसार इन सभी सात स्थानों पर जाने के बाद ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह शहर भगवान शिव और विष्णु के भक्तों के लिये पवित्र स्थान है।
काँचीपुरम शहर में भगवान शिव और विष्णु को समर्पित कई मन्दिर हैं। इन मन्दिरों में भगवान विष्णु के समर्पित वृहद पेरूमल मन्दिर और एकम्बारनाथ मन्दिर, जो कि पंचबूथ स्थलम या पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करते शिव के पाँच मन्दिर में से एक, सबसे लोकप्रिय हैं।
पवित्र शहर
किंवदन्तियों के अनुसार शहर का ये नाम शहर की सीमा में स्थित विभिन्न विष्णु मन्दिरों के कारण पड़ा है। का का मतलब है भगवान ब्रह्मा जिन्होंने इस शहर में भगवान विष्णु की आँची अर्थात पूजा की, इसलिये इस शहर का नाम काँचीपुरम पड़ा। हलाँकि शहर में की शिव मन्दिर भी हैं। काँचीपुरम का पश्चिमी भाग शिव काँची कहलाता है क्योंकि यहाँ अधिकतर शिव मन्दिर हैं जबकि शहर का पूर्वी भाग विष्णु काँची कहलाता है।
काँचीपुरम के अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में कैलासाथर मन्दिर, कामाक्षी अम्मा मन्दिर, काचापेश्वरार मन्दिर और कुमारा कोट्टम मन्दिर शामिल हैं।
पवित्रता और इतिहास का संगम
इतिहासज्ञों को काँचीपुरम जरूर पसन्द आयेगा क्योंकि शहर का समृद्धशाली ऐतिहासिक अतीत रहा है। पल्लाव राजाओं ने 3 से 9वीं शताब्दी के दौरान काँची को अपनी राजधानी बनाया था। पल्लवों ने शहर को राजधानी लायक बनाने के लिये काफी पैसा और प्रयास लागाया। उन्होंने शहर में मजबूत सड़कों, इमारतों, परकोटा के साथ-साथ चौड़ी खाइयों का भी निर्माण कराया। पल्लवों ने चीनी व्यापारियों के साथ व्यापार किया और काँचीपुरम शहर का जिक्र चीनी यात्री ज़ुआनजैंग की पुस्तक में मिलता है जिसने 7वीं शताब्दी में यात्रा की थी। अपनी पुस्तक में उन्होने लिखा है कि शहर में साहसी, दयालु और ज्ञानी लोग थे जो सामाजिक न्याय में विश्वास रखते थे।
11वीं से 14वीं शताब्दी के बीच चोल शासकों ने काँचीपुरम पर शासन किया। चोलो ने इसे अपनी राजधानी नहीं बनाया लेकिन यह तब भी महत्वपूर्ण शहर था। वास्तव में चोल शासकों ने शहर में कई निर्माण कार्य कराये और शहर का पूर्वी हिस्से में विस्तार भी किया। 14वीं से 17वीं शताब्दी के बीच विजयनगर वंश के शासकों की काँचीपुरम पर राजनीतिक पकड़ थी। 17वीं शताब्दी के अन्त तक मराठों ने शहर पर कब्जा कर लिया लेकिन शीघ्र ही मुगल शासक औरंगज़ेब को इसे हार गये। फ्राँसीसी और अंग्रेज व्यापारियों के भारत आगमन के साथ ही शहर अंग्रेजी सल्तनत के अधीन आ गया और अंग्रेजी नायक रॉबर्ट क्लाइव ने इस पर शासन किया।
शहर का गौरवशाली ऐतिहासिक अतीत आधुनिक यात्रियों को भी दिखता है। शहर के विभिन्न निर्माणों में अलग अलग संस्कृतियों की कला और वास्तुकला का प्रभाव देखने को मिलता है। आज, शहर जितना अपने मन्दिरों के लिये प्रसिद्ध है उतना ही विभिन्न भारतीय तथा पश्चिमी प्रभावों के सटीक संगम के लिये भी जाना जाता है।
काँचीपुरम, रेशमी शहर
काँचीपुरम की रेशम की साड़ियाँ विश्वविख्यात हैं, रेशम के धागों के साथ बुनी सोने की ज़री न केवल गौरवशाली अतीत की महिलाओं को प्रिय थीं बल्कि आधुनिक समय में भी लोकप्रिय हैं। यह न केवल भारतीय परिधान, विशेषकर दक्षिणी, का महत्वपूर्ण हिस्सा है बल्कि तमिल लोगों के पारम्परिक और सास्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है।
कामाक्षी अम्मा, एकम्बरेश्वरार मन्दिर, देवराजस्वामी मन्दिर और कैलासनाथार मन्दिर जैसे अपने प्रसिद्ध मन्दिरों के कारण इस पवित्र शहर में साल भर पर्यटक आते हैं।
काँचीपुरम देश के बाकी हिस्सें से रेल तथा सड़कमार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा है। निकटतम हवाईअड्डा चेन्नई है। काँचीपुरम का मौसम चिलचिलाती गर्मियों और सुहावनी सर्दियों के बीच झूलता रहता है।