लाहौल, हिमाचल प्रदेश राज्य में भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित जगह है। लाहौल और स्पीति पहले दो जिले थे, जिन्हे बाद में 1960 में एकीकृत कर दिया गया था। यहां के मूल निवासी गोरी त्वचा वाले और भूरी आंखो वाले होते हैं, जो तिब्बती वंश के होते हैं। इनमें से अधिकांश लोग बौद्ध धर्म और उसके रीति-रिवाज को मानते हैं। यहां बोली जाने वाली भाषा लद्दाख और तिब्बत की है। मठों पर विशेष प्रार्थना ध्वज फहराता है जो इसकी खासियत है। यहां के सभी निवासियों का पूजा और आराधना में विशेष झुकाव होता है।
बंजर जमीन के कारण यहां केवल घास और झाडि़यां ही उगती हैं। स्थानीय लोग खेती के नाम पर आलू की पैदावार करते हैं। पशुपालन और बुनाई यहां का खास काम है, जिसे हर घर में किया जाता है। यहां के घरों की दीवारें 19 डिग्री के कोण पर झुकी हुई होती है। पूरे घर के निर्माण में लकड़ी, पत्थर, सीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है। इन सामग्रियों को ज्यादातर भूकंप ग्रस्त क्षेत्रों में घर बनाने के काम में लाया जाता है।
यहां याक और जोस जैसे पशु स्वतंत्र रूप से क्षेत्र के आसपास घूमते रहते हैं। इसके अलावा यहां आकर पर्यटक तिब्बती मृग, अगली भेड़, कस्तूरी मृग और अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों को भी देख सकते हैं। यहां बर्फिले क्षेत्रों के तेंदुओं की भारी संख्या निवास करती हैं। यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र किब्बर गांव है, जहां मठ और किब्बर वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। इसके अलावा लाहौल में पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान की मठ और कुंजुम दर्रा भी स्थित है।
यहां कोई एयरपोर्ट नहीं है भूंटार हवाई अड्डे के रास्ते से लाहौल पहुंचा जा सकता है। हवाई अड्डे से लाहौल-स्पीति तक पहुँचने के लिए, टैक्सियों और कैब को किराए पर लिया जा सकता है। लाहौल में रेलवे स्टेशन भी नहीं है पर्यटक पास में ही स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन से लाहौल तक पहुंचे। यह एक छोटी लाइन है। दूर से आने वाले पर्यटक चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर उतरे और वहां से बस या कैब से लाहौल तक आएं। सड़क मार्ग से लाहौल आने के कई रास्ते है जिनमें से लाहौल रोहतांग दर्रा, कुंजुम दर्रा आदि प्रमुख हैं।