हिंदू धर्म में सर्पों की पूजा का विशेष महत्व है। पुराणों में भी अनेक सर्प देवताओं का उल्लेख किया गया है। भगवान कार्तिकेय यानि सुब्रमन्या को सर्पों का देवता माना जाता है। कई मंदिरों में सर्पों के देवता भगवान सुब्रमन्या की पूजा होती है। बेंगलुरू के पास स्थित सुब्रमन्या घाटी मंदिर में भगवान सुब्रमन्या की सात मुख वाले सर्प के रूप में पूजा होती है।
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घाटी सुब्रमन्या का स्थान
बेंगलुरू शहर से 60 किमी की दूरी पर स्थित है घाटी सुब्रमन्या। ये कर्नाटक के दोड्डाबलापुर में स्थित है। आप येलाहांका – देवानहल्ली रोड़ से दोड्डाबलपुरा पहुंच सकते हैं। यहां से सुब्रमन्या मंदिर मंदिर 15 किमी दूर पड़ता है।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान सुब्रमण्य ने सर्प के रूप में तपस्या की थी। इस दौरान उन्हें एक नागा परिवार के बारे में पता चला जिसे गरुड़ परेशान कर रहा था। इसलिए भगवान सुब्रमण्य ने भगवान विष्णु की तपस्या की और उनसे प्रार्थना की कि वह अपने वाहन गरुड़ को नागा परिवार को ऐसा करने से रोक लें। अत: यहां पर भगवान सुब्रमण्य और भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए थे।
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घाटी सुब्रमण्य के बारे में दिलचस्प बातें
मंदिर के मुख्य परिसर में ही भगवान विष्णु और भगवान सुब्रमण्य की सात मुख वाली मूर्ति स्थापित है। यहां पर भगवान कार्तिकेय पूर्व की ओर और भगवान सुब्रमण्य ने पश्चिम की ओर मुख किया है। इसलिए परिसर के ऊपर एक दर्पण लगाया गया है जिसमें दोनों देवताओं को भक्त एकसाथ देख सकते हैं।
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इसलिए घाटी सुब्रमण्य में ना केवल सर्पों की पूजा होती है बल्कि यहां भगवान नरसिम्हा भी पूजनीय हैं। ये घाटी सुब्रमण्य के बारे में बेहद दिलचस्प तथ्य माना जाता है।
मंदिर के विपरीत में स्थित सर्प की मूर्ति पर श्रद्धालु दूध अर्पित करते हैं। मंदिर में सात मुख वाले सर्प की विशाल मूर्ति और उसके विपरीत भगवान सुब्रमण्य की मूर्ति स्थापित है।
घाटी सुब्रमण्य की स्थापत्य कला
वास्तविक मंदिर को संदूर के शासक घोरपड़े ने बनवाया था। कहा जाता है कि बाद में इस मंदिर को अन्य राजाओं द्वारा विकसित किया गया है। ये तीर्थस्थल द्रविड़ शैली में बना है और मंदिर के भवन में मुख्य मंदिर और नाग प्रतिष्ठापन के लिए जगह है। इस जगह श्रद्धालुओं द्वारा स्थापित सर्पों की अनेक मूर्तियां रखी हैं।
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घाटी सुब्रमण्य के त्योहार
इस मंदिर में नागर पंचमी और नरसिम्हा जयंती का त्योहार मनाया जाता ह। इसके साथ ही यहां पर वार्षिक उत्सव के रूप में पुष्य शुद्ध षष्ठी भी मनाई जाती है जिस पर मंदिर परिसर में मेला भी लगता है।
कैसे पहुंचे घाटी सुब्रमण्य
बेंगलुरू से 60 किमी दूर है घाटी सुब्रमण्य। बेंगलुरू से घाटी सुब्रमण्य के लिए सीधी बसें चलती हैं। दोड्डाबलपुर रेलवे स्टेशन घाटी सुब्रमण्य से 16 किमी दूर स्थित है। यहां से आप मंदिर के लिए ऑटो या बस ले सकते हैं।
( नोट : फिलहाल यहां की सड़क का कार्य प्रगति पर है और यहां से दोड्डाबलपुर तक सारा रास्ता वन वे है। दोड्डाबलपुर से मंदिर 15 किमी दूर है एवं इस मार्ग की सड़कें दुरुस्त हैं। )
कर्नाटक के प्रमुख मंदिरों में से एक है घाटी सुब्रमण्य। बेंगलुरू में स्थित सर्पों के प्रमुख मंदिरों में भी इसका नाम शामिल है। दोष निवारण पूजा जैसे सर्प दोष और नागर प्रतिष्ठापन आदि भी यहां किया जाता है।
बेंगलुरू से घाटी सुब्रमण्य पहुंचने में आपको 2 घंटे का समय लगेगा। कर्नाटक के ग्रामीण जीवन को देखने के लिए भी आप यहां आ सकते हैं।