क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव का काम क्या है? नहीं? चलिए हम आपको बताते हैं, वे श्मशान घाट के द्वारपाल हैं। जी हाँ, इसलिए अघोरी साधु श्मशान घाट के पास ही रहना पसंद करते हैं। इसे हम उनका संप्रदाय या मनोदशा कह सकते हैं, लेकिन अघोरियों के लिए सब कुछ भगवान शिव ही होते हैं। दर्शनशास्त्र से आगे बढ़कर, उनका यही अनुष्ठान और जीने का तरीका है जो हमेशा से ही विवादास्पद रहा है। अगर आप अघोरी साधुओं के दर्शन करना चाहते हैं तो वाराणसी जाएँ और उनकी ज़िंदगी को अपने आप अनुभव करें।
अघोरी साधु
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कौन हैं ये अघोरी साधु?
एक अघोरी, शैव साधु या महा तपस्वी होता है। वे बिल्कुल ही अलग रास्ते को चुनते हैं जिसमें अजीब तरह की परंपराएँ शामिल होती हैं। यहाँ तक की उनसे एक डरावनी बात भी जुड़ी है, कि उनके पास अलौकिक शक्तियाँ होती हैं और वे काला जादू भी करते हैं।
सबसे ज़्यादा उनको दुनिया की नज़रों में लाता है, उनका नरभक्षी होना। वे खाने में इंसानो की लाश, मरे हुए इंसान के माँस का सेवन करते हैं, खोपड़ी को बर्तन की तरह इस्तेमाल कर उसमें पेय पदार्थ का सेवन करते हैं, श्मशान घाट पर ही ध्यान मग्न होते हैं, चरस गांजों का सेवन करते हैं, आदि।
अघोरी बाबा
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हालाँकि, अघोरी बनना इतना आसान नही होता। उन्हें एक अघोरी गुरु के शरण में रह कर 12 साल तक की कठिन तपस्या करनी पड़ती है और मुश्किल से मुश्किल अनुष्ठानों का पालन करना होता है इस संप्रदाय में समिल्लित होने के लिए।
अघोरियों की एक झलक:
सारे लोग पौराणिक कथा से तो वाकिफ़ नहीं होंगे, पर सबने टी वी सीरियल्स और फिल्मों में भगवान शिव जी के रूप के दर्शन तो किए ही होंगे, लंबे बाल, ग्रे या नीले रंग का उनका शरीर(राख से लिप्त), रुद्राक्ष की माला गले और कलाई में पहने हुए, आदि।
राख से लिप्त अघोरी साधु
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अघोरी साधु भी ऐसी ही रूप को अपनाते हैं, पूरा शरीर इंसानी राख से लिप्त, गले और कलाई में रुद्राक्ष की माला और लंबे घने दाढ़ी मुछें और बाल। उनको पहली बार देखने से हर किसी को डर लगता है और कुछ अजीब सा भी महसूस होता है।
कुछ अघोरी तो बिना कपड़ों के ही घूमते हैं, वे अपने शरीर को कपड़ों से ढकने में विश्वास नही करते हैं।
यह रास्ता क्यूँ?
आप इनको दिन के समय में बहुत ही कम देख पाएँगे, इनकी ज़िंदगी रात में ही होती है। ख़ासकर की वाराणसी के गंगा नदी के किनारे या फिर कब्रिस्तानों में।
चरस का सेवन करता अघोरी
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ये भौतिकवाद ज़िंदगी को छोड़ अपने शरीर को त्यागने का रास्ता चुनते हैं। अघोरियों के लिए मानव शरीर कुछ नही होता, सिर्फ़ आत्मा ही है जो सब कुछ है। इसलिए वे जानवरों की तरह मरे हुए इंसानों का माँस खाते हैं। उनका मानना है की मरने के बाद आत्मा शरीर को छोड़ देती है, उसके बाद वो शरीर माँस का एक टुकड़ा होने के अलावा और कुछ नहीं होता।
अघोरी भिक्षु गैर द्वैतवाद तरीके में विश्वास करते हैं जिसमें वे मोक्ष पाने के लिए जीते हैं। सारी इंसानी मोहमाया को छोड़, वे एक अलग ही और उलझे हुए रास्ते को अपनाते हैं।
बाबा किनाराम:
बाबा किनाराम अघोरियों के सबसे पहले गुरु हैं। ज़्यादातर अघोरी साधु उनके ही दर्शनशास्त्र को अपनाते हैं। वाराणसी में उनको समर्पित एक आश्रम और एक मंदिर भी स्थापित है।
कुंभ के मेले में अघोरी
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आप अघोरियों को कुंभ के मेले में भी बहुत बड़ी तादाद में हिस्सा लेते हुए देख सकते हैं, जहाँ वे नदी में पवित्र डुबकी लगाने आते हैं।
जैसे कि पहले भी मैंने कहा की अघोरियों का संप्रदाय एक मनोदशा की उत्पत्ति भी है। हालाँकि सारे अघोरी एक जैसे नहीं होते, कुछ बाकी तपस्वियों की तरह भी दिखते है। पूरी तरीके से इनका मुक्ति पाने का रास्ता भी एकसमान होता है।
इस दुनिया जो कई रहस्यों का पिटारा है, में ऐसे संप्रदाय का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है जो एक सामान्य ज़िंदगी से अलग ही ज़िंदगी जीना पसंद करते हैं। तो अब, यहाँ पर प्रश्न यह उठता है की क्या हम भी साधारण लोग हैं, सचमुच में साधारण?