भारत धर्म-संस्कृति के मामले में एक समृद्ध देश है, इसलिए यहां आस्था की पकड़ ज्यादा मजबूत है। उत्तर हो या दक्षिण यहां के लोगों में अपने इष्टदेव के लिए श्रद्धा भरपूर होती है। खासकर हिन्दू धर्म में धार्मिक गतिविधियों के विभिन्न रूप ज्यादा देखने को मिलते हैं। यहां साल के पूरे महीने तीज-त्योहारों के भरे रहते हैं। इस खास लेख में आज हम आपको दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य के एक ऐसे खास त्योहार के बारे में बताने जा रहे हैं जो सुख-शांति के अलावा बीमारियों से बचने के लिए मनाया जाता है।
इस खास उत्सव का नाम है बोनालु, जिसमें महाकाली के पूजा की जाती है, लेकिन पूजा की प्रकिया और रीति रिवाज किसी को भी हैरान कर देंगे। जानिए इस त्योहार से संबधित महत्वपूर्ण जानकारियां।
कैसे शुरु हुआ यह उत्सव
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यह एक खास त्योहार है जो अगस्त माह में मनाया जाता है, इस दौरान मानसून अपने शबाब पर होता है, जिसके कई शारीरिक बीमारियां उतपन्न होती है। इस त्योहार के शुरु होने के पीछे एक दर्दनाक घटना जुड़ी है, माना जाता है कि 1813 में भारत के दो बड़े जुड़वा राज्य हैदराबाद और सिंकदराबाद में हैजा का बड़ा प्रकोप फैला था, जिससे कई मौते हुईं थीं। कहा जाता है कि हालात से बचाव के लिए शहर की आर्मी ने मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में महाकाली के मंदिर में पूजा की थी, और यह मन्नत मांगी की अगर बीमारी की समस्या पूरी तरह टल जाती है तो वे शहर में मां काली की मूर्ति स्थापना करेंगे।
माना जाता है पूजा के बाद धीरे-धीरे शहर से हैजा का संक्रमण होने लगा था। जिसके बाद आर्मी जवानों ने यहां मां काली की मूर्ति स्थापित की थी। तब से लेकर अबतक निरंतर प्रति वर्ष अगस्त महीने में यह उत्सव मनाया जाता है।
मां काली की पूजा
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यह पूरा त्योहार महाकाली को समर्पित है। 'बोनालु' उत्सव राज्य के अलग-अलग जगह विशेष आयोजनों के साथ मनाया जाता है। यहां मां काली के पोचम्मा, मैसम्मा, पेद्दम्मा, गंडिमैसम्मा, महांकालम्मा, पोलेरम्मा आदि स्थानीय नामों से जाना जाता है।
इस त्योहार से यह भी कहानी जुड़ी है कि अगस्त माह के दौरान महाकाली अपने मायके चली जाती हैं। इस त्योहार के दौरान महाकाली से अच्छी सेहत और घर की सुख शांति की प्राथना की जाती है।
निकलती है शोभ यात्रा
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महाकाली की विशेष पूजा में बड़ी शोभायात्रा का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। शोभा यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सर पर चावल, दूध और गुड़ को मिलाकर बने प्रसाद को बर्तन में रख मंदिर के लिए आगे बढ़ती हैं। इस उत्सव में महिलाएं और पुरूष पारंपरिक पोशाक ही पहनती हैं।
दी जाती है बली
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इस उत्सव के दौरान महाकाली को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बली भी दी जाती है, जिसके बाद भोग का निर्माण किया जाता है। जो महाकाली को चढाया जाता है। बड़े स्तर पर बकरी या मीट बनाया जाता है, जिसे देवी को चढ़ाने के बाद परिवार मिलकर खाते हैं। देवी को मदिरा(ताड़ के पेड़ की) भी चढ़ाई जाती है। इससे पहले इस उत्सव में भैंस और भेंड की भी बलि दी जाती थी। लेकिन सरकार द्वारा जानवरों को बचाने के लिए बनाए गए नियम और कानूनों के बाद अब कद्दू, नारियल, लौकी और नींबू की बलि दी जाती है।
बताई जाती है भविष्यवाणी
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बोनालु उत्सव के दौरान 'रंगन' नाम की खास धार्मिक प्रकिया भी जगह लेती है। जिसके अंतर्गत एक महिला मिट्टी के बने किसी बड़े घड़े पर खड़ी होती है, माना जाता है उस महिला के अंदर साक्षात महाकाली आ जाती है, जो लोगों को उनके भविष्य के बारे में बताती है। मां काली के रूप में महिला लोगों के साथ एक साल में क्या-क्या घटने वाला है उसके बारे में बताती है। यह धार्मिक प्रकिया शोभा यात्रा से पहले की जाती है।
उत्सव की यात्रा हैदराबाद के गोलकोंडा में श्री जगदंबिका मंदिर से शुरु होकर सिकंदराबाद के उज्जैनी महाकाली मंदिर और उसके बाद लाल दरवाजा माता मंदिर में जाकर समाप्त होती है।