आज का हमारा ये लेख एक ऐसे डेस्टिनेशन के बारे में है जिसे तीर्थ स्थलों का शहर कहा जाता है। जी हां, आज अपने इस आर्टिकल में हम आपको अवगत कराएंगे छत्तीसगढ़ के दुर्ग से। छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में शुमार दुर्ग एक प्रमुख औद्योगिक और कृषि केन्द्र है। यह शहर शेवनाथ नदी के पूर्वी किनारे पर बसा हुआ है। शेवनाथ नदी को शिव नदी के नाम से भी जाना जाता है। दुर्ग छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा शहर है। शहर की जनसंख्या भी काफी है और यहां खनिज संपदा की कमी नहीं है। यह जिला ऊपरी शेवनाथ-महानदी घाटी के दक्षिण में स्थित है।
दुर्ग को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है- छत्तीसगढ़ का मैदानी भाग और दक्षिण का पठार। शेवनाथ दुर्ग जिले की प्रमुख नदी और महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। शेवनाथ नदी की कुल लंबाई 345 किमी है और टंडुला नदी इसकी सहायक नदी है।दुर्ग में खरखरा नाम की एक और नदी है। इतिहास से पता चलता है कि पहले दुर्ग ‘दक्षिण' या ‘कौशल' साम्राज्य का हिस्सा था। गौरतलब है कि दुर्ग की सांस्कृति विरासत काफी समृद्ध है। यहां 35 से ज्यादा तरह की जनजातियां रहती है, जिससे परंपरागत नृत्य, संगीत और नाटक में काफी विविधता देखी जाती है।
बात यदि दुर्ग में पर्यटन की हो तो आपको बता दें कि दुर्ग में घूमने लायक कई जगहें हैं। श्री उवासग्गहरम पार्श्व तीर्थ, चंडी मंदिर, गंगा मय्या मंदिर, देवबलोड़ और नगपुरा का जैन मंदिर यहां के कुछ चुनिंदा तीर्थ स्थल हैं। इसके अलावा अगर आप दुर्ग जा रहे हैं तो हिंदी भवन, पाटन, प्रचीन किला, बलोड़, टंडुला और मैत्रीबाग (जू) घूमना भी न भूलें। आइये इस लेख के जरिये जाना जाये कि अपनी दुर्ग यात्रा पर ऐसा क्या है जिसे आपको अवश्य देखना चाहिए।
देवबलोड़
चरोड़ा में स्थित देवबलोड़ एक छोटा सा कस्बा है, जो कि भिलाई से 3 किमी दूर है। यह जगह एक प्रचीन शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का इतिहास 5वीं शताब्दी से मिलता है। मंदिर के पास स्थित एक जलाशय से एक रोचक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इस जलाशय का भूमिगत संबंध छत्तीसगढ़ के एक अन्य शहर अरोंग से है।
इस उत्कृष्ट मंदिर में भगवान शिव, भगवान गणेश सहित कई देवताओं की प्रतिमा रखी गई हैं। इसके अलावा यहां नृत्य करते लोग, योद्धाओं, अवतार और जानवरों की नक्काशी भी की गई है। इतना ही नहीं, देवबलोड़ के शिव मंदिर में नंदी की मूर्ति और कुछ कामुक प्रतिमाएं भी बनी हुई हैं।
गंगा मय्या मंदिर
छत्तीगढ़ का गंगा मय्या मंदिर झालमाला में स्थित है, जो कि भिलाई से करीब 60 किमी दूर है। इस मंदिर से एक रोचक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इसके अनुसार एक स्थानीय मछवारे के जाल में एक मूर्ति फंसी थी, पर उन्होंने उसे पानी से बाहर नहीं निकाला। बाद में उस मछवारे के गांव के ही एक व्यक्ति ने सपने में उसी मूर्ति को देखा। मूर्ति ने उनसे कहा कि वह उसे पानी से बाहर निकाल कर एक झोपड़ी में रख दे। इसके बाद भीकम चंद तिवारी ने उस मूर्ति को समर्पित एक मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर ट्रस्ट सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ गांव वालों के लिए मेडिकल कैंप का भी लगाता है।
पाटन
पाटन एक कस्बा होने के साथ-साथ दुर्ग जिले का नगर पंचायत भी है। समुद्र तल से 280 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पाटन की प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है। 2001 की जनगणना के अनुसार इस कस्बे की जनसंख्या 8698 थी। अपने आधुनिक और जनजातिय परंपराओं के मिश्रण के कारण यह कस्बा पर्यटकों के बीच काफी चर्चित है।
टंडुला
दुर्ग का एक प्रमुख आकर्षण टंडुला बांध सूखा नाला और टंडुला नदी के संगम स्थल पर बना हुआ है। इसका निर्माण कार्य 1912 में पूरा हुआ था। बलोड़ से 5 किमी दूर स्थित टंडुला बांध 827.2 वर्ग किमी में फैला हुआ है और इसकी क्षमता 312.25 क्यूबिक मीटर पानी की है।
कैसे जाएं दुर्ग
फ्लाइट द्वारा : 54 किमी दूर रायपुर का एयरपोर्ट दुर्ग का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुंबई, नागपुर, कोलकाता, भुवनेश्वर, चेन्नई, रांची और विशाखापट्टनम जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
रेल द्वारा : दुर्ग रेलवे स्टेशन मुंबई-हावड़ा रेल लाइन पर स्थित है। यह मुंबई से 1101 किमी और हावड़ा से 867 किमी दूर है।
सड़क मार्ग द्वारा : दुर्ग जिला रायपुर और नागपुर से सीधे जुड़ा हुआ है। दुर्ग के आसपास की जगह घूमने के लिए आप टैक्सी, टेंपो और ऑटो का सहारा ले सकते हैं।