देवों की भूमि कही जाने वाली उत्तराखंड अपनी धार्मिकता के लिए जानी जाती है। यहां कई ऐसे मंदिर हैं, जो पूरे विश्व में जाने जाते हैं। इन सभी मंदिरों की अपनी एक अलग पहचान है, जिनके बारे में जानने के बाद आप बिना यहां गए रह नहीं पाएंगे। आज हम आपको देवभूमि के उन पांच मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां दर्शन करने के बाद आपको ऐसा लगेगा, जैसे आपने स्वयं साक्षात भगवान के दर्शन कर लिए हो।
हालांकि, यहां कई ऐसे मंदिर हैं, जो भक्तों के बीच खासा लोकप्रिय हैं लेकिन आज हम जिन मंदिरों के बारे में बात करने जा रहे हैं, उन मंदिरों की बात ही निराली है। लगभग आप सभी लोग इन मंदिरों के बारे में जानते भी होंगे और नहीं जानते हैं तो अब जान लीजिए। तो आइए जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...
श्री केदारनाथ धाम
उत्तराखंड के चार धामों में से एक भगवान शिव का यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, जो पंच केदार मंदिरों में एक प्रमुख स्थान रखता है। बर्फीली चोटियों से ढका यह देवस्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता। यह भारत का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है, जहां का शिवलिंग बाकी मंदिरों की तरह नहीं है। यहां आपको बाबा केदारनाथ बैल के पीठ की आकृति में दिखाई देंगे।
यहां सर्दी के मौसम में जमकर बर्फबारी होती है, इसलिए यह मंदिर भी सिर्फ 6 महीनों के लिए ही खुलता है और 6 महीने तक बंद रहता है। मंदिर तक जाने के गौरीकुंड से चढ़ाई शुरू की जाती है, जो करीब 19 किमी के आसपास है, जिसे 6-7 घंटे में पूरा किया जा सकता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था।
बद्रीनाथ मंदिर
भगवान बद्रीनाथ का धाम चमोली जिले में स्थित है। यह मंदिर उत्तराखंड के चार धामों से एक तो है ही। यह भारत के चार धामों में से भी एक है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर भी साल के 6 महीने तक ही खुला रहता है और बर्फबारी के चलते बाकी के 6 महीनों तक बंद रहता है। अलकनंदा नदी के बाएं तट पर स्थित यह नर और नारायण नाम के दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। यह मंदिर पंच-बदरी में से एक है।
श्री तुंगनाथ मंदिर
उत्तराखंड के द्रप्रयाग जिले में स्थित श्री तुंगनाथ मंदिर देवभूमि के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है, जो 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव की भुजाएं प्रकट हुई थीं। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को चार किमी की ट्रेकिंग करनी पड़ती है, जो काफी रोमांचक होता है। यह मंदिर भी भारी बर्फबारी के कारण 6 महीनों के लिए बंद रहता है। चंद्रशिला ट्रेक का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है, जो करीब 2 किमी दूर स्थित है।
त्रियुगी नारायण मंदिर
त्रियुगी नारायण मंदिर, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह मंदिर इसलिए अधिक खास है क्योंकि इसी स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी मंदिर में भगवान शिव और मां पार्वती ने सात फेरे लिए थे और तब से लेकर आज तक ये अग्नि धुनी जल रही है। तीन युगों बीत जाने के बाद भी इस मंदिर में जलती धुनी आज तक बुझी नहीं। इसीलिए इस मंदिर को त्रियुगी मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, उन्होंने ही शिव-पार्वती का विवाह करवाया था।
गोलू देवता मंदिर
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित गोलू देवता का मंदिर है, जो यहां के ईष्ट देवता भी कहलाते हैं। यहां के लोग गोलू देवता को न्याय का देवता भी कहते हैं। उनका मानना है कि भगवान सभी के साथ न्याय करते हैं, जिसका प्रमाण इस मंदिर में देखा जा सकता है। इस मंदिर में हर तरफ आपको लेटर (चिट्ठियां) दिखाई देंगी, जिन भक्तों की समस्याएं होती हैं वे अपनी समस्या एक चिट्ठी में लिखकर यहां छोड़ जाते हैं, जिससे वे अपनी इस समस्या से छुटकारा भी पा लेते हैं। इसलिए इस मंदिर को चिट्ठियों वाला मंदिर भी कहा जाता है।
कसार देवी मंदिर
कसार देवी मंदिर, उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कश्यप पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर करीब 1800 साल पुराना बताया जाता है। यह मंदिर विज्ञान के सभी नियमों को फेल करता है। यहां एक चुंबकीय शक्ति है, जो भक्तों को प्रभावित करती है। कहा जाता है कि जब स्वामी विवेकानंद यहां आए थे, तब उन्हें यहीं पर अपार ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
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