उत्तर भारत की भांति ही दक्षिण भारत का इतिहास भी राजा-सम्राटों की वीर गाथाओं से अटा पड़ा है। दक्षिण खंड की इस भूमि पर कई शक्तिशाली हिन्दूओं राजाओं के साथ-साथ मुस्लिम शासकों ने राज किया। इनके शासनकाल के दौरान कई किले-भवनों का निर्माण करवाया था जो आज ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देश की शोभा बढ़ाते हैं। सातवाहन, चेर, चोल, पांड्य, चालुक्य, पल्लव, होयसल, राष्ट्रकूट के अलावा भी दक्षिण भूमि अन्य राजवंशों के लिए जानी गई जिनमें काकतीय राजाओं का भी नाम आता है। काकतीयों ने अपनी राजधानी वारंगल को बनाया।
ये था दक्षिण राजवंशों का संक्षिप्त इतिहास,आगे जानिए इसी भूमि पर खड़े ऐतिहासिक गुलबर्ग किले के बारे में, जिसके साथ दक्षिण का एक खास इतिहास जुड़ा हुआ है। जानिए पर्यटन के लिहाज से यह किला आपके लिए कितना खास है।
एक संक्षिप्त इतिहास
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गुलबर्ग का किला राज्य के गुलबर्ग जिले में स्थित है। इतिहास के पन्ने बताते है कि हैं कि इस ऐतिहासिक धरोहर का निर्माण वारंगल के राजा गुलचंद ने करवाया था। इस किले को बाद में बहमनी राजवंश के शासक बहमन शाह ने एक विशाल संरचना में बदलने का काम किया था। वर्तमान में किले के अंदर मौजूद संरचनाओं का निर्माण बाद में करवाया गया।
इस स्थान पर कभी राष्ट्रकूट, चालुक्य, कलचुरि, होयसल और देवगिरी के यादवों का कब्जा रहा लेकिन बाद में यह वारंगल के शक्तिशाली राजवंश काकतीयों के अधीन चला गया। बाद में दिल्ली सल्तनत ने काकतीयों का हराकर उत्तरी दक्खन पर कब्जा कर लिया।
नष्ट कर दिया गया था किला
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कई सम्राटों के शासनकाल काल का साक्षी रहा यह किला विजयनगर के शासकों द्वारा गहरा दंश झेल चुका है, किले को काफी हद तक नष्ट कर दिया गया थ। बाद में इस किले का पुन: निर्माण बीजापुर सल्तनत के सम्राट आदिल शाह ने करवाया। आदिल शाह ने विजयनगर के सम्राट को युद्ध में पराजित कर काफी धन इकट्ठा किया था, जिसे किले की पुन: स्थापना करने में खर्च किया गया। दक्खन पर 15वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक बहमनी साम्राज्य का शासन रहा।
इतिहास की गहराई से पता चलता है कि गुलबर्ग के किले पर मुगल शासक औरंगजेब ने भी कब्जा कर लिया था। जिसके बाद में यह दक्खन के निजाम-उल-मुल्क के अंतर्गत रहा। यह किला वाकई दक्षिण इतिहास के कई पहलुओं को उजागर करता है।
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गुलबर्ग की अन्य संरचनाएं - जामी मस्जिद
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गुलबर्ग के किले को देखने के अलावा यहां की ऐतिहासिक जामी मस्जिद भी देखने योग्य है। यह दक्षिण भारत की पहली मस्जिदों में गिनी जाती है। जिस वक्त गुलबर्ग बहमनी साम्राज्य के अंतर्गत आया उसी समय इस संरचना का निर्माण करवाया गया था। हालांकि मस्जिद की वास्तुकला उतनी आकर्षक नहीं हैं पर इसे काफी विशाल आकार में बनवाया गया था। यह मस्जिद स्पेन के कोरदोबा के तर्ज पर बनाई गई है। मस्जिद में प्राथना कक्ष के साथ-साथ मेहराबदार गलियारे भी बने हुए हैं।
मस्जिद का अपना एक बड़ा आंगन भी है। गलियारों में स्तंभों का भी प्रयोग किया गया है। मस्जिद में पांच बड़े गुंबद, 75 छोटे और 250 मेहराबों का इस्तेमाल किया गया है। इस विशाल सरंचना के माध्यम से आप फारसी वास्तुकला को आसानी से समझ सकते हैं।
ख़्वाजा बंदे नवाज का मकबरा
किले और मस्जिद के अलावा यहां मौजूद ख्वाजा बंदे नवाज़ का मकबरा भी देखने योग्य है। यह मकबरा प्रसिद्ध सूफी संत सय्यद मुहम्मद गेसू का है, जिसे बनाने के लिए भारतीय-मुस्लिम वास्तुकला का प्रयोग कर बनाया गया है। यह एक विशाल मकबरा है जहां सूफी संत की कब्र है। जानकारी के अनुसार ख्वाजा बंदे नवाज़ 1413 में गुलबर्ग आए थे।
इसे एक मिश्रित वास्तुकला वाली एक संचरना कह सकते हैं क्योंकि इसमें बहमनी, तुर्की और ईरानी प्रभाव साफ झलकता है। मुगल शासको ने मकबरे के पास एक मस्जिद भी बनवाई थी।
कैसे करें प्रवेश
गुलबर्ग कर्नाटक के उत्तरी जिले गुलबर्ग में स्थित है, जहां आप तीनों मार्गों से आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा हैदराबाद एयरपोर्ट है।
रेल मार्ग के लिए आप गुलबर्ग रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों से गुलबर्ग राज्य के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।