उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ के कपाट 29 अप्रैल 2018 को खुलने जा रहे हैं। और पिछले साल की तरह इस साल भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बाबा केदारनाथ के सबसे पहले दर्शन करेंगे। इस साल केदारनाथ के कपाट एक अनूठे अंदाज में खोलें जायेंगे, बताया जा रहा है कि, इस साल कपाट खुलने के एक दिन पहले लेजर लाइट एंड साउंड शो आयोजित किया जायेगा, जिसमे मंदिर से जुड़ी जानकारी दिखाई जायेंगी। बता दें, ये लाइट एंड साउंड शो 5 मई तक चलेगा।
बता दें, पिछले साल भी केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के साथ साथ पूजा अर्चाना भी की थी। रिपोर्ट्स की माने तो इस बार केदारनाथ में पीएम मोदी के साथ अन्य बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हो सकते हैं।
अगर आप इस साल केदारनाथ यात्रा की प्लानिंग कर रहे हैं- तो एक मिनट में यहां जाने पूरी यात्रा यात्रा का विवरण
कैसे पहुंचे केदारनाथ ?
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उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ धाम स्थित है। केदारनाथ यात्रा का बेस कैम्प हरिद्वार और ऋषिकेश है। पहले श्रधालुयों को हरिद्वार और ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचना होता है। गौरीकुंड से करीबन 18 की ट्रेकिंग कर बाबा केदारानाथ के धाम पहुंच सकते हैं।
ऋषिकेश यात्रा गाइड
कैसे करें केदारनाथ यात्रा ?
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आप चाहे तो केदारनाथ यात्रा का पॅकेज ले सकते हैं, या फिर खुद भी कर सकते हैं। आप केदारनाथ की यात्रा पैदल व् हेली-कोप्टर से भी सम्पन्न कर सकते हैं।
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सही कपड़े कपड़ें जरुर रखें
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जी हां, केदारनाथ में ठंड काफी रहती है, तो बेहतर होगा, की केदारनाथ की यात्रा करते समय अपने ऊनी कपड़े भी अवश्य रखें। पहाड़ों पर अक्सर बारिश होने लगती है, बेहतर होगा अपने साथ एक रेन कोट अवश्य रखें।
दवाइयां
गौरीकुंड पहुँचने के लिए आपको पहाड़ों से होकर गुजराना होता है, ऐसे में अक्सर लोगों की तबियत खराब हो जाती है, बेहतर हो अपने साथ उल्टी की दवाई रखें।
केदारनाथ यात्रा टिप्स
गौरीकुंड पहुँचने के बाद केदारनाथ की यात्रा करीबन 18 किमी लम्बी है, जिसे आप पैदल या खच्चर और घोड़ो की सवारी कर पूरा कर सकते हैं। इसके अलावा हेली-कॉप्टर की सुविधा भी रहती है, आप अपने हिसाब से यात्रा करने का विकल्प चुन सकते हैं। हेली-कॉप्टर से प्रति यात्री (3500-4000) रूपये का खर्चा आता है। ये किराया सरकार की ओर से तय किया गया है।
अगर आप घोड़े, या फिर पिट्ठू की सवारी करने का मन बना रहे हैं, तो सुबह सुबह अपनी यात्रा शुरू करें, ऐसे में आपको सस्ते में घोड़े और पिट्ठू की सवारी मिल जाएगी।
केदारनाथ ट्रेकिंग के दौरान निहारे खूबसूरत नजारे
अगर आप पैदल ही केदारनाथ की यात्रा करते हैं, तो आप बेहद मनमोहक प्राकृतिक नजारों को देख सकते हैं जैसे झरने, पहाड़ियां, कलकल करती हुई नदियां आदि। ऐसे में आपको पता भी नहीं चलेगा कि, आपकी यात्रा कब पूरी हो गयी।
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आईडी कार्ड है जरूरी
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केदारनाथ पहुँचने के बाद आपको सरकार द्वारा बनाये गये आईडी कार्ड रखना अनिवार्य है, ये आप केदारनाथ जाकर बनवा सकते हैं।
हर तरह यहां भी चलता है वीआइपी पास
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जी हां, अहर बड़े मन्दिरों की तरह यहां भी पहले वीआईपी पास वालों को पहले बाबा के दर्शन कराए जाते हैं। अगर आपके पास वीआइपी पास नहीं है, तो आपको लाइन में लगकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी होगी।
केदारनाथ मंदिर
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बताया जाता है कि, केदारनाथ धाम में मात्र में भगवान शिव के नाम जपने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। केदारनाथ मंदिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हाँ ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। धार्मिक ग्रंथों अनुसार बारह ज्योतिर्लिंगों में केदार का ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचे स्थान पर है। कहा जाता है कि, यहां भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था।
मध्यमेश्वर
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तुंगनाथ
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भगवान शिव को समर्पित तुंगनाथ का स्थान पंच केदार में तीसरा माना जाता हैं। यह दिव्य स्थान बद्रीनाथ रास्ते पर पड़ता है। तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा एक शिला के रूप में विराजमान है। पौराणिक किवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए करवाया था। यहां की चढ़ाई सबसे कठीन मानी जाती है।
रूद्रनाथ
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रूद्रनाथ का पंच केदार में चौथा स्थान है। इस दिव्य स्थान पर महिष रूपधारी भगवान शिव का मुख उपस्थित है। तुंगनाथ से रूद्रनाथ पर्वत दिखाई देता है पर यहां का पहाड़ी रास्ता बहुत ही ज्यादा कठीन है।
कल्पेश्वर
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कल्पेश्वर का पंच केदार में पांचवा स्थान है। इस दिव्य स्थान पर महिष रूपधारी भगवान शिव की जटाओं का पूजा होती है। भगवान शिव का यह स्थान अलकनंदा पुल से करीब 6 मील की दूरी पर स्थित है। जहां तक रास्ता काफी दुर्गम है। कल्पेश्वर मंदिर समुद्र तल से लगभग 2134 की ऊंचाई पर स्थित है।
केदार गिरिपिण्ड
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केदार गुम्बद और भारतेकुन्था नामक पहाड़ों से मिलकर बना है। यह 6000 मी की ऊँचाई पर स्थित है और यहीं से मन्दाकिनी जैसी कई हिमनदियाँ बहती हैं। केदारनाथ और केदारगुम्बद पर्वत एक दूसरे से खाँचों द्वारा जुड़े हैं। केदारनाथ पर्वत 6831 मी की ऊँचाई पर है जिसपर चढ़ाई करना बहुत कठिन है और केदारनाथ गुम्बद भी चुनौतीपूर्ण है। अत्यधिक ऊँचाई के कारण यहाँ वायु में ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम है।
चोराबाड़ी ताल
समुद्रतल से 3900 मी की ऊँचाई पर चोराबाड़ी बमक हिमनदी के मुहाने पर स्थित है। केदारनाथ और कीर्ति स्तम्भ चोटियों की तलहटी में स्थित यह स्थान हिमालय की चोटियों का शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। इस ताल में महात्मा गाँधी की अस्थियों को विसर्जित किया गया था इसलिये इसे गाँधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार यह वही झील है जहाँ से पाँण्डवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने स्वर्ग के लिये प्रस्थान किया था। इस स्थान तक 3 किमी की पैदल यात्रा द्वारा पहुँचा जा सकता है। इस जगह के बदलते मौसम के कारण लोगों को यहाँ सुबह जल्दी आने की सलाह दी जाती है।
गौरी कुंड
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गौरी कुण्ड अपने चमत्कारी प्रभाव के लिए पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध है। यहाँ गर्म पानी का मुख्य आकर्षक है। यहीं माता पार्वती का एक मंदिर है जो कलात्मक शैली का है।
वासुकी ताल
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वासुकी ताल केदारनाथ धाम से तक़रीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर होगी। यह एक बेहद आकर्षक झील है। यह झील ऊंचाई पर बनी हुई है इसलिए इस तक पहुँचने के लिए काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।
गुप्तकाशी
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