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क्या है भारत के सिल्क सिटी का इतिहास... जानिए किसने कब तक राज किया

गुजरात के कपड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध सूरत शहर की स्थापना 15वीं शाताब्दी के अंतिम वर्षों में हुई। इतिहास देखें तो 12वीं शाताब्दी से लेकर 15वीं शाताब्दी तक इस शहर पर मुस्लिमों और पुर्तगालियों ने आक्रमण कर क्षति पहुंचाई।

सूरत के बारे में लगभग आप सभी जानते होंगे कि ये गुजरात का एक प्रमुख शहर है, जिसे सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है। इस शहर को डायमंड सिटी भी कहा जाता है। यहां के कपड़ा उद्योग विश्वभर में फैले हुए हैं, देश में बिकने वाले अधिकतर कपड़े भी यही से बनकर जाते हैं। इस शहर से ही ताप्ती नदी (तापी नदी) भी होकर गुजरती है। इतिहास के पन्नों की उकेरा जाए तो ये शहर 15वीं शाताब्दी के अंतिम वर्षों में बसाया गया और फिर धीरे-धीरे इस शहर की विकास दौर बढ़ती गई और धीरे-धीरे वर्तमान सूरत की शुरुआत हुई।

सूरत का इतिहास

सूरत को लेकर कहा जाता है कि इस शहर पर इस शहर मुस्लिम शासकों, मराठों, मुगलों और पुर्तगालियों का राज रहा। कहा जाता है करीब 1516 ईस्वी में एक हिंदू ब्राह्मण 'गोपी' ने बसाया था, उस वक्त तक इस शहर को सूर्यपुर के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन वर्ष के ठीक 2 वर्ष पूर्व 1514 ईस्वी में पुर्तग़ाली यात्री दुआरते बारबोसा (Duarte Barbosa) ने सूरत को एक महत्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में चिन्हित किया था। 18वीं शाताब्दी आते-आते इस शहर पर ब्रिटिश हुकूमत और डचों का कब्जा करना शुरू हो गया और धीरे-धीरे सूरत पतन की ओर बढ़ने लगा, 1800 ईस्वी में इस पर ब्रिटिश हुकूमत ने अपना झण्डा फहराया और फिर यहां से शुरू अंग्रेजी हुकूमत की भागदौड़...

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महाभारत काल में भी सूरत का जिक्र

विस्तृत इतिहास की बात की जाए तो सूरत शहर का इतिहास 300 ईसा पूर्व तक देखने को मिलता है। वहीं, पौराणिक कथाओं की मानें तो इस शहर का सबसे पहला वर्णन महाभारत काल में मिलता है। कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारका जा रहे थे, तब वह यहीं रुके थे, इस शहर का प्राचीन नाम सूर्यपुर है। लेकिन इस स्थान का नाम सूरत कैसे और कब पड़ा, इस बात का कोई पुख्ता सबूत आज भी नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि 1520 ईस्वी तक इस शहर को सूरत कहा जाने लगा था।

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16वीं शाताब्दी के अंत तक सूरत पर पुर्तगालियों का कब्जा

16वीं शाताब्दी के अंत तक सूरत के बंदरगाहों पर पुर्तगालियों का कब्जा हो गया था और 1540 ईस्वी में ताप्ती नदी के किनारे इनके द्वारा बनाया गया किला आज भी देखने को मिलता है। वहीं, 1608 ईस्वी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के जहाजों ने सूरत तट पर आना शुरू कर दिया और 1615 ईस्वी तक स्वाली के युद्ध में पुर्तगालियों को हार का सामना करना पड़ा और ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने तब तक अपनी एक फैक्टरी भी स्थापित कर ली। लेकिन जब 1668 ईस्वी में मुंबई में दूसरी फैक्टरी की स्थापना की गई तो सूरत का महत्व कम होने लगा। कहा जाता है कि उस समय शिवाजी महाराज ने इस फैक्टरी (सूरत) को दो बार लूटा था।

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1800 ईस्वी में सूरत पर अंग्रेजों का कब्जा

साल 1800 में इस शहर अंग्रेजी हुकूमत ने अपना पूरी तरीके से कब्जा जमा लिया और सभी सरकारी नीतियों व शक्तियों पर उनका कब्जा हो गया। 20वीं शाताब्दी तक सूरत फिर से व्यापार और औद्योगिक केंद्र बना, हालांकि वर्तमान समय में जहाज निर्माण का काम अब नहीं किया जाता है। वहीं, 28 साल पहले 1994 ईस्वी में हुई बारिश से पूरा शहर तबाह हो गया और प्लेग की बीमारी भी फैल गई थी, कई देशों ने भारतीय लोगों के वहां जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन वर्तमान समय में साफ-सफाई के मामले में सूरत भारत के सबसे क्लीन सिटी में से एक है।

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कपड़ा उद्योग व डायमंड कटिंग के लिए प्रसिद्ध सूरत

सूरत अपने कपड़ा उद्योग के साथ-साथ डायमंड कटिंग के लिए भी जाना जाता है, यहां डायमंड की पॉलिशिंग भी की जाती है, जो विश्वभर में प्रसिद्ध है।

सूरत के महत्वपूर्ण तथ्य, जो हर पर्यटक को जानना चाहिए...

1612 ईस्वी - अंग्रेजों द्वारा व्यापार और वाणिज्य के लिए कोठी को एक केंद्र के रूप में स्थापित किया जाना।
1614 ईस्वी - सर टॉमस रो ने सूरत का दौरा किया और तत्कालीन मुगल शासक जहांगीर से मुलाकात कर ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए व्यापार के अधिकार प्राप्त किए। इसी समय शिवाजी महाराज ने पहली बार सूरत पर हमला कर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को लूटा था।
1800 ईस्वी - ब्रिटिश हुकूमत का शासन शुरू।
1825 ईस्वी- डचों का सूरत आगमन।
1826 ईस्वी- अंग्रेजों ने शहर में गुजराती स्कूल शुरू किए।
1842 ईस्वी- शहर में पहले अंग्रेजी स्कूल की शुरुआत।
1847 ईस्वी - पुर्तगालियों द्वारा संचालित सेंटरस फॉर ट्रेड (कोठीस) का बंद होना।
1850 ईस्वी - सूरत साहित्यिक सोसायटी द्वारा उनकी पहली प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना। इसके अलावा इसी साल 1 जुलाई को एंड्रयूज लाइब्रेरी का उद्घाटन।
1852 ईस्वी - कानूनी रूप से नगर पालिका की शुरुआत। (पहली बैठक - 15 अगस्त)... सूरत के गोपीपुरा इलाके में लड़कियों के लिए पहले स्कूल का आरम्भ (रायचंद दीपचंद प्राइमरी स्कूल फॉर गर्ल्स)
1857 ईस्वी - टेलीग्राफ संचार की शुरुआत।
1860 ईस्वी - सूरत रेलवे स्टेशन का निर्माण।
1863 ईस्वी - 'सूरत-मित्रा', एक स्थानीय समाचार पत्र था, जो दीनशाह अर्देशर तालीयारखान द्वारा शुरू किया गया, जिसे एक साल बाद 11 सितम्बर को नाम बदलकर 'गुजरात-मित्र' कर दिया गया।
1867 ईस्वी - नगर पालिका के कार्यालय का वर्तमान इमारत में स्थानांतरित होना।
1870 ईस्वी - स्टेशन रोड पर घंटाघर का निर्माण और बाढ़ के खिलाफ सुरक्षा के लिए मक्काई तालाब पर पानी को रोकने के लिए स्लुइस गेट के साथ एक पुल का निर्माण। इसी साल नगर पालिका द्वारा रानी बाग (वर्तमान नाम - गांधी बाग) का उद्घाटन।
1871 ईस्वी - नगर पालिका द्वारा मृत्यु और जन्म पंजीकरण की शुरुआत।
1890 ईस्वी - 1 फरवरी को विंचेस्टर संग्रहालय का उद्घाटन।
1920 ईस्वी - 1 अप्रैल से मुफ्त अनिवार्य शिक्षा की शुरुआत।
1952 ईस्वी - सूरत रेलवे स्टेशन (नया) का निर्माण।
1955 ईस्वी - तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू द्वारा 30 अक्टूबर को रंग उपवन का उद्घाटन।
1956 ईस्वी - लाल बहादुर शास्त्री द्वारा 6 मई को एसवी पटेल संग्रहालय का उद्घाटन।
1980 ईस्वी - 19 अप्रैल को गांधी स्मृति भवन, सभागार का उद्घाटन।
1991 ईस्वी - 22 जुलाई को सरदार वल्लभभाई पटेल ब्रिज का उद्घाटन और 24 अगस्त को नर्मद सेंट्रल लाइब्रेरी का उद्घाटन।
1996 ईस्वी - 30 जून को स्वामी विवेकानंद पुल का उद्घाटन।
1998 ईस्वी - 18 दिसम्बर को इंडोर स्टेडियम का उद्घाटन।
2000 ईस्वी - 25 जून को भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर फ्लाई ओवर ब्रिज का उद्घाटन।
2001 ईस्वी - 06 मई को अडाजण में ओलंपिक स्तरीय स्विमिंग पूल का उद्घाटन। वहीं, 28 अक्टूबर को वरछा में सरदार स्मृति भवन का उद्घाटन।
2003 ईस्वी - 26 अप्रैल को 81 एकड़ में सार्थना नेचर पार्क और चिड़ियाघर का उद्घाटन।
2004 ईस्वी - 02 मई को सिटी गैलरी का उद्घाटन।

पर्यटन के लिहाज से सूरत से सम्बन्धित हमने सारी जानकारी आपके सामने रखी है, जहां के बारे में आप जान सकें और घूम सकें। ऐसे में अगर कोई जानकारी हमसे छुट गई हो या हम न लिख पाए हो तो आप हमें अपने शहर के बारे में बता सकते हैं। हमसे जुड़ने के लिए आप हमारे Facebook और Instagram पेज से भी जुड़ सकते हैं...

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