रेगिस्तान के जहाज के बारे में तो आप सभी ने सुना ही होगा तो उसके बारे में जानते भी होंगे। जी हां, उसका नाम ऊंट है। भारत के रेगिस्तानी इलाके (राजस्थान) में पाए जाने वाला यह जानवर रेत में जहाज की तरह भागता है, जहां लोग सही से चल भी नहीं पाते। यही कारण है कि इसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। राजस्थान में देश का करीब 85 फीसदी ऊंट पाया जाता है। वहीं, 11 फीसदी ऊंट गुजरात में है। साल 2014 में ऊंट को राजस्थान सरकार ने अधिकारिक राज्य पशु का भी दर्जा दिया हुआ है।
आज भी जब राजस्थान में कोई मेला लगता है तो उसमें ऊंट सबसे पहले दिखाई देते हैं। यहां ऊंट की सवारी करना भी बड़ा मजेदार होता है। ऊंट एक ऐसा जानवर है, जो एक बार में करीब 100-150 लीटर तक पानी पी सकता है। इसकी औसतन गति 40 किमी प्रति घंटा होती है जबकि यह अधिकतम 65 किमी प्रति घंटा से दौड़ सकता है।
रेगिस्तान के जहाज का इतिहास
उत्तरी अमेरिका से ऊंट के पूर्वजों का विकास हुआ, जो धीरे-धीरे एशिया में फैल गया। करीब 2000 साल पहले से इन्हें पालतू जानवर बनाया जाना शुरू हुआ, जिनका उपयोग आज भी दूध, मांस और बोझ ढोने इत्यादि कामों के लिए किया जाता है। राजस्थान में पाए जाने वाले ऊंटों की तीन नस्लें होती है- बीकानेरी, जैसलमेरी और मेवाड़ी। भारत में ऊंटों को पालने का काम रायका- रैबारी जनजाति के लोग करते हैं। इन्हें राजस्थान में रायका व देवासी के नाम से जबकि गुजरात मे रैबारी के नाम से जाना जाता है।
भारत में रेगिस्तान के जहाज की नस्लें
बीकानेरी ऊंट - यह नस्ल सिंधी एवं बलूची ऊंटों के संकरण से से तैयार हुई है। इस नस्ल के ऊंट का रंग ज्यादातर गहरा भूरा यानी काले से रंग का होता है। इसकी ऊंचाई 10 से 12 फीट तक होती है।
जैसलमेरी ऊंट - इस नस्ल के ऊंट का रंग हल्के भूरे रंग का होता है। इसकी ऊंचाई 7 से 9 फीट तक होती है। रेगिस्तान में सेना व पुलिस के जवान इसका उपयोग गश्त के लिए करते हैं।
मेवाड़ी ऊंट - अरावली की पहाड़ियों में बसा क्षेत्र मेवाड़ का इलाका कहलाता है। यहां पाए जाने वाली ऊंट मेवाड़ी ऊंट कहलाती है। यह नस्ल आपको गुजरात तक मल जाएगी। इस नस्ल के ऊंट का रंग हल्के भूरे रंग का होता है। इस नस्ल की मादा ऊंट लगभग 4 से 6 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं।
हर साल घट रही है ऊंटों की संख्या
साल 2012 में 19वीं पशुधन गणना कराई गई, जिसमें ऊंटों की संख्या करीब 4 लाख थी, जो 18वीं पशुधन गणना से 22.63 फीसदी कम थी। इसके बाद जब साल 2019 में 20वीं पशुधन गणना कराई गई, तो ऊंटों की संख्या और भी कम होकर 2 लाख 52 हजार ही दर्ज की गई, जो तकरीबन 37.05 फीसदी कम थी।
ऊंट संरक्षण योजना की शुरुआत
ऐसे में ऊंटों को बचाने के लिए सरकार की ओर स्कीम भी चलाई जा रही है, जिसमें ऊंट का एक बच्चा होने पर पशु मालिक को राज्य सरकार द्वारा 10 हजार रुपया दिया जाता है। यह राशि दो किश्तों में दी जाती है, जिसमें पहली किश्त 0-2 माह तक में और दूसरी किश्त 1 वर्ष होने पर प्रत्येक बछड़े के लिए दिया जाता है। इस योजना का नाम "ऊंट संरक्षण योजना" है, जो राजस्थान सरकार द्वारा ऊंटों की संख्या बचाने के लिए शुरू किया गया है।
राजस्थान में ऊंट डेयरी का संगठित बाजार
राजस्थान में ऊंटनी के दूध या ऊंट डेयरी का संगठित बाजार भी है, जिसका प्रयोग राजस्थानी इलाकों में ऊंट-पालक चाय, खीर, घेवर इत्यादि बनाने में किया जाता है। ऊंटनी के दूध की कीमत करीब 300 रुपये लीटर होती है, जो आम दूध से करीब 5-6 गुना ज्यादा है। इसके दूध से बने आइसक्रीम और फ्लेवर्ड दूध भी बनाया जा रहा है।
ऊंटी की कमी का मुख्य कारण क्या हो सकता है?
देश विकास की ओर अग्रसर है। इन दिनों भारत में हर ओर सड़के बनाई जा रही है, ताकि यातायात व्यवस्था को सुलभ किया जा सके। राजस्थान में भी ये विकास की डोर निरंतर जारी है। ऐसे में हर ओर सड़के होने से अब ऊंटों से कम काम लिया जाने लगा है। इंदिरा गांधी नहर सिंचाई परियोजना बन जाने से चारागाह भूमि भी अब ज्यादा नहीं रही, जो इसके कमी में मुख्य भूमिका निभा रहा है।
वन क्षेत्रों में ऊंटों के जाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जिससे उन्हें उचित चारा नहीं मिल पाता। ऐसे में इसके मालिकों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अब युवा पीढ़ी भी इन सभी से दूर रहना चाह रही है।
राजस्थानी ऊंटों को लेकर सरकारी नियम
राजस्थान ऊंट (वध का निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) विधेयक, 2015 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति राजस्थानी ऊंट को खरीदता है और वह दूसरे राज्य का है तो वह उस ऊंट को राजस्थान से बाहर नहीं ले जा सकता। ऐसा करना कानूनन जुर्म है। इस विधेयक में लागू होने से अब ऊंटों के अंतर्राज्यीय व्यापार पर पूरी तरह रोक लग गई है।
ऊंटों को लेकर हो रहा रिसर्च
⦁ नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल जूट के संयोजन में ऊंट के बालों के उपयोग पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (NIET) कोलकाता के साथ काम कर रहा है।
⦁ रेशों से भरपूर ऊंट के गोबर से हस्तनिर्मित कागज और ईंटें तैयार करने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
⦁ शुद्ध प्रजनन के माध्यम से ऊंटों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से कच्छ के धोरी में ऊंट पालन केंद्र वैज्ञानिक तरीके से काम कर रहा है।
ऊंटों का उपयोग
⦁ खेत की आवश्यकता के अलावा नर ऊंटों को ऊंट प्रजनकों, सीमा सुरक्षा बल और पुलिस विभाग को मामूली कीमत पर आपूर्ति भी की जाती है।
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