भारत में संस्कृत को स्कूल कॉलेज के दिनों में विषय के तौर पर या तो पहली भाषा में चुनते हैं या तीसरी। इसके अलावा इसे सिर्फ़ पुराने श्लोक में ही सुना जाता है। फिर भी कुछ लोगों की मेहनत और कोशिशों की वजह से संस्कृत का उपयोग कहीं कहीं पर आज भी होता है पर दुख की बात है की इसका हमारे मातृभाषा के रूप में उपयोग होना बिल्कुल ही ख़त्म हो गया है।
एक गाँव जहाँ तुन्गभद्रा नदी प्राचीन काल से बहती है, जिसके किनारे पर सुपारी के पेड़ों की खेती की जाती है, अपनी प्राचीन जड़ों को अभी भी अपने में संजोय हए है। संस्कृत भाषा का यहाँ पर बसेरा है और संस्कृत यहाँ की मातृ और औपचारिक भाषा है।
मत्तूर की तुन्गभद्रा नदी
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संस्कृत भाषा को अपने शिक्षा के तौर पर चुनने वाले ही इसके तरीके और कठिनाइयों को समझ सकते हैं। तो ज़रा सोचिए उस गाँव के बारे में जहाँ रोज़मर्रा की ज़िंदगी में संस्कृत भाषा ही सिर्फ़ उपयोग किया जाता है। बहुतों के लिए यह मज़ाक की बात होगी पर मत्तूर और होसाहल्ली गाँव में ब्राह्मण परंपराओं को ही महत्व दिया जाता है जो वैदिक ज़िंदगी बिताते हैं।
करीब 600 सालों पूर्व तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई गाँव के ब्राह्मणों के एक समूह ने इस गाँव में पलायन किया। ब्राह्मणों का यह समूह जिसे संकेती के नाम से भी जाना जाता है, अग्राहरम जीवन व्यतीत करता है। यह सिर्फ़ मत्तूर ही नहीं, इसकी जुड़वा बहन कहलाने वाली होसाहल्ली गाँव की भी परम्परा है।
वेद की पढ़ाई करते छात्र
आपको नहीं लगता की कितना रोमांचक होता होगा, अपनी प्राचीनतम भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में उपयोग करना? इसका मतलब यह नहीं है की यहाँ के लोग अनपढ़ होते हैं। यहाँ पर भी हर घर में कम से कम एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर है और गाँव के बच्चे शिक्षा के हर केंद्र में टॉपर्स भी होते हैं।
बल्कि यहाँ के कुछ बच्चों का तो मानना है की वेद के इन संस्कृत श्लोक के जप से उनकी एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
मत्तूर की यात्रा क्यूँ करें?
मत्तूर शिमोगा का एक खूबरसूरत गाँव है, जहाँ की तुन्गभद्रा नदी के चारों और का नज़ारा बहुत सुरम्य और आरामदायक है।
मत्तूर जाने का रास्ता
आप यहाँ पर अग्राहरम, जीने के तरीके को भी जान सकते हैं जो कई वर्षों पूर्व ही भारत के और स्थानों से खत्म हो चुका है। सबसे मज़ेदार होता है यहाँ के लोगों के मूह से संकेती , संस्कृत और कन्नड़ भाषा में बातें सुनना जो आज के ज़माने में हमारे लिए बिल्कुल ही नया और अलग है।
मॉडर्न ज़माने के साथ साथ वैदिक जीवनयापन आपको मत्तूर और होसाहल्ली में आने को आमंत्रित करता है।
होसाहल्ली नदी के दूसरे किनारे पर बसा है जो अपने गमाका कला(गाने और कथा कहने के कला) के लिए प्रसिद्ध है। हाल ही के दिनों में मत्तूर गाँव कुछ विवादों की वजह से सुर्ख़ियों में आया था। तथापि यहाँ के लोग शांति भरी और अपनी परंपरा को ईमानदारी से निभा कर आराम भरी ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हैं।
मत्तूर: सूर्यास्त का समय
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इसके अलावा, अंतिम बचे हुए इस गाँव की यात्रा आपको प्राचीनकाल में ले जाएगी जहाँ आपको इस पुराने भाषा की शक्ति का भी अनुभव होगा।
मत्तूर कैसे पहुँचे?
शिमोगा मत्तूर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर है। यह शहर इस गाँव के सबसे नज़दीक है।
कुछ निजी बसें शिमोगा से मत्तूर के लिए चलती हैं। आपके लिए बेहतर होगा की आप कोई अपनी निजी गाड़ी से इस गाँव की यात्रा करें।
क्लिक: शिमोगा कैसे पहुँचे?