दक्षिण भारत भारत का एक बेहद ही खूबसूरत हिस्सा है..जो पर्यटकों को अपनी भव्यता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए आकर्षित करता है। जिस तरह दक्षिण भारत में समुद्री तट और प्राकृतिक हिल स्टेशन प्रसिद्ध है..उसी तरह तिरुपति बालाजी का मंदिर सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। वेंकटेश्वर भगवान भी कई नामो से जाने जाते है जैसे की बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवासा।
तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में है। इस मंदिर को भारत का सबसे धनी मंदिर माना जाता है, क्योंकि यहां पर रोज करोड़ों रुपये का दान आता है, साथ ही यहां पर अपने बालों का दान करने की भी परंपरा है। इसके अलावा भी बालाजी में कुछ बातें ऐसी हैं, जो सबसे अनोखी है।
तिरुमाला पर्वत सेशाचालम पर्वत रेंज का ही एक भाग है। यह पर्वत समुद्री सतह से 853 मीटर (2799 फीट) की उचाई पर है। इस पर्वत की सात चोटियाँ भगवान आदिशेष के सात सिर को दर्शाती है। इन सात चोटियों को सेशाद्री, नीलाद्री, गरुदाद्री, अन्जनाद्री, वृशाभाद्री और वेंकटाद्री कहा जाता है।
मुख्य मंदिर सातवी चोटी वेंकटाद्री पर बना हुआ है, जहाँ श्री स्वामी पुष्करिणी का प्रवित्र पानी से भरा टैंक भी है। इस मंदिर को "टेम्पल ऑफ़ सेवन हिल्स भी कहा जाता है। तिरुमाला गाव 10.33. वर्ग मीटर (26.75 किलोमीटर वर्ग) के क्षेत्र में बसा हुआ है। जाने तिरुपति बालाजी से जुड़ी दिलचस्प बातें
बालाजी की मूर्ति से सुनाई देती है आवाज
मंदिर के प्रांगढ में अगर आप भगवान बालाजी की मूर्ति को पर कान लगाते हैं, तो आपको उस मूर्ति से विशाल सागर के प्रवाहित होने की आवाज सुनाई देगी..जो कि अपने आप में आप काफी आश्चर्य करने वाली बात है। इसी कारण भगवानबालाजी की मूर्ति में हमेसा नमी बनी रहती है। इस मंदिर में आकर आपको एक अजीब सी शांति का एहसास होगा।
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खुद प्रकट हुई थी मूर्ति
मान्यता है कि, यहां मंदिर में स्थापित काले रंग की दिव्य मूर्ति किसी ने बनाई नहीं बल्कि वह खुद ही जमीन से प्रकट हुई थी। स्वयं प्रकट होने की वजह से इसकी बहुत मान्यता है। वेंकटाचल पर्वत को लोग भगवान का ही स्वरूप मानते है और इसलिए उस पर जूते लेकर नहीं जाया जाता।
शेषनाग का प्रतीक है
इस मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि यह मेरूपर्वत के सप्त शिखरों पर बना हुआ है, जो की भगवान शेषनाग का प्रतीक माना जाता है। इस पर्वत को शेषांचल भी कहते हैं। इसकी सात चोटियां शेषनाग के सात फनों का प्रतीक कही जाती है। इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है। इनमें से वेंकटाद्रि नाम की चोटी पर भगवान विष्णु विराजित हैं और इसी वजह से उन्हें वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है।
साक्षात् भगवान का निवास
इस मंदिर में भगवान वैंकेटश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे बालो को असली बताया जाता है.क्यों कि ये बाल कभी उलझते नहीं है..हमेशा एक समान मुलायम बने रहते हैं। इस कारण लोगो का मानना है कि, यहां साक्षात् भगवान का निवास है।PC: wikimedia.org
तिरुपति बालाजी
भगवान तिरुपति बालाजी की मूर्ति की सफाई के लिए एक खास तरह का पचाई कपूर का इस्तेमाल किया जाता है। यदि इस कपूर को पत्थ्तर या दिवार पर रगड़ा जाए तो वह उसी समय चटक जाता है। लेकिन भगवान बालाजी की मूर्ति को इस कपूर से कुछ भी नुकसान नहीं होता है।
प्रतिमा में नजर आती है देवी लक्ष्मी
हफ्ते में गुरुवार के दिन भगवान तिरुपति बालाजी को पूर्ण रूप से चन्दन का लैप लगाया जाता है..और जब इस लैप को साफ़ किया जाता है तो मूर्ति में खुद ब खुद लक्ष्मी की छूती सी प्रतिमा उभर आती है। यह बात आज तक एक रहस्य बनी हुई है कि, आखिर ऐसा कैसा हो सकता है।
दर्शन के प्रारूप
मंदिर में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह के समय होते हैं। दूसरे दर्शन दोपहर को और तीसरे दर्शन रात को होते हैं। इनके अलावा अन्य दर्शन भी हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क निर्धारित है। पहले तीन दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं है। भगवान बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं।PC: flickr.com
यात्रा के नियम
तिरुपति बालाजी की यात्रा के कुछ नियम भी हैं। नियम के अनुसार, तिरुपति के दर्शन करने से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करना चाहिए। फिर वेंकटाचल पर्वत पर जाकर बालाजी के दर्शन करें। वहां से आने के बाद तिरुण्चानूर जाकर पद्मावती के दर्शन करने की पंरापरा मानी जाती है।PC: flickr.com
भक्तो को नहीं देते फूल
मंदिर में चढ़ाये गये जितने भी फूल पत्ती होती है..उन्हें भक्तो को ना देकर मंदिर में ही स्थित एक कुंड में बिना पीछे देखे विसर्जित कर दिया जाता है, मंदिर में चढ़ाए उन फूलों को भक्तों द्वारा अपने पास रखना अच्छा नहीं माना जाता है।PC: flickr.com
दरवाजे पर है छड़ी
मंदिर के मुख्य द्वार के दरवाजे के दाई तरफ एक छड़ी रखी है..कहा जाता है कि इस छड़ी से ही उनके बाल रूप की पिटाई की जाती थी। जिससे एक बार उनके मुख के नीचे ठोड़ी पर चोट लग गयी थी। इसीलिए ही उनके घावों को भरने के लिए पुजारियों द्वारा उनकी ठोड़ी पर चन्दन का लेप लगाया जाता है।PC: flickr.com
बिना तेल के जल रहा दिया
तिरुपति बालाजी के मंदिर में एक दिया लम्बे समय से जलता आ रहा है. परन्तु यह अभी तक खुलासा नहीं हुआ कि, यह आखिर यह दिया बगैर घी, तेल के कैसे जलता रहता है।PC: flickr.com