भारत की राजधानी दिल्ली अपने दिल में अब तक कई राज़ों को छुपाये बैठा है, यहाँ घटी ऐतिहासिक घटनाओं से लेकर यहाँ स्थापित किये गए ऐतिहासिक इमारतों तक। उन्हीं राज़ों में एक है किला राय पिथौरा का राज़, जिसके बिना दिल्ली सल्तनत की कहानी अधूरी है।
किला राय पिथौरा जिसे राय पिथौरा का किला भी कहते हैं एक दृढ शहर था। जिसे 12 वीं शताब्दी में चौहानों के राजा, पृथ्वी राज चौहान ने बनवाया था। एक घमासान युद्ध में चौहान वंश ने इस शहर को तोमर राजवंश से जीतकर और फैलाया। इसके अंदर 8 वीं सदी का पुराना लाल कोट किला भी शामिल है जिसे तोमर राजपूत शासक अनंगपाल तोमर द्वारा बनवाया गया था। यह उन किलों में से एक है जिसपर तोमर, चौहानों और दास वंश का 11वीं-13वीं शताब्दी में राज था।
राय पिथौरा का किला
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अपने अंदर कई ऐतिहासिक कथाओं को कैद कर किले के कई हिस्से दक्षिण दिल्ली के अलग-अलग भागों में फैले हुए हैं, जिन्हें दिल्ली के साकेत, मेहरौली, किशनगढ़ और वसंत कुंज क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
किला राय पिथौरा का प्रवेश मार्ग
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1160 ईसवीं में चौहान वंश ने तोमर वंश को पराजित कर उनके लाल कोट,दिल्ली के सबसे पहले वर्तमान शहर को अपने अधीन कर लिया। उसके बाद पृथिवीराज चौहान ने, जिनकी राजधानी राजस्थान का अजमेर था, लाल कोट को और विस्तृत कर, बड़े मलबे की दीवारों व प्राचीर दुर्गों का निर्माण करवाया और इसके बाद इसका नाम लाल कोट से बदलकर किला राय पिथौरा रख दिया।
किला राय पिथौरा की दीवारों से मिलते हुए जहाँपनाह के दुर्ग
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ये संयुक्त किले लगभग साढ़े 6 किलोमीटर तक फैले हुए थे और इस किले के साथ ही यह शहर अपने अस्तित्व में था। यहाँ स्थित पुराना लाल कोट किला एक गढ़ की तरह अब तक खड़ा है। हालाँकि, चौहान वंश ज़्यादा दिनों तक शहर पर राज नहीं कर सके क्यूंकि 1190 ईसवीं मेंअफ़ग़ानियों ने इस पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया था।
किला राय पिथौरा के गोलाकार दुर्ग
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जैसा कि चौहानों ने 1191ईसवीं में मोहम्मद गौरी को तराइन की पहली लड़ाई में पराजित किया, उसके अगले साल ही 1192 ईसवीं में चौहानों को मोहम्मद गौरी के ही प्रमुख सेनापति क़ुतुबुद्दीन ऐबक के हाथों तराइन के दूसरे युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। और इस तरह चौहान वंश का दिल्ली से अंत हो गया।
लाल कोट और किला राय पिथौरा की दीवारें यहीं आकर मिलती हैं
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क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा प्रारम्भ किये गए दास वंश ने चौहानों की इस हार के बाद भारत पर मुग़लों के राज की स्थापना की। यह दिल्ली की सबसे पहली सल्तनत थी। हालाँकि अपनी विजय के बाद भी ऐबक ने इस किले की रचना में कोई विस्तार या बदलाव नहीं किया।
किला राय पिथौरा के परिसर में स्थापित पृथ्वी राज चौहान की मूर्ति
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किले के अंदर स्थापित पृथिवीराज चौहान की मूर्ति अब तक जैसी की तैसी उसी शान के साथ खड़ी है, जिसे देखकर पृथ्वी राज चौहान के गौरवपूर्ण इतिहास का पता चलता है। किले के दुर्ग या गढ़ गोलाकार आकृति में बनाये गए हैं, जिनसे उस समय के मज़दूरों की कार्यकुशलता साफ़ झलकती है।
प्रवेश द्वार पर लगा किले का पहचान सूचक
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दिल्ली के ऐसे ही कई ऐतिहासिक राज़ों को अपने में दबाये हुए, राय पिथौरा जैसे किले आज भी शान से खड़े और देश की ऐतिहासिक शोभा को बढ़ रहे हैं। अगर आपकी इतिहास में कभी रूचि नहीं भी होगी तो दिल्ली के इस इतिहास को जानने का लिए यहाँ की यात्रा ज़रूर करें, आपकी दिलचस्पी खुद ब खुद इतिहास में बढ़ने लगेगी।
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