राजस्थान पर्यटन का पर्यावाची है, हर साल लाखों की तादाद में देशी और विदेशी पर्यटक इस खूबसूरत राज्य की यात्रा पर आते हैं। अपने वैभव शाली महलों और हवेलियों के लिए विख्यात राजस्थान पहले राजपुताना नाम से जाना जाता था।
उस दौरान विभिन्न-विभिन्न हिस्सों में बंटे इस राज्य में कई महान शासकों ने शासन किया। राज्य में शासन के दौरान कई महान शासकों ने विभिन्न इमारतों का निर्माण कराया, खासकर की पहाड़ी किलों का, पांचवीं और अठारहवीं शताब्दियों के बीच निर्मित, ये पहाड़ी किलें राजपूताना विरासत की उत्कृष्ट कृतियां हैं। राजस्थान के छह पहाड़ी किलों के समूह को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं, तो आइये जानते हैं राजस्थान के छ पहाड़ी किलों के बारे में

चित्तोड़गढ़ किला
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7 वीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्वारा निर्मित चित्तोड़गढ़ किला, का नाम मौर्य शासक, चित्रांगदा मोरी के नाम पर रखा गया था, जिसपर बाद में सिसोदिया वंश ने शासन किया। राजस्थान का भव्य किला 180 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित लगभग 700 एकड के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस किले में चार राजसी महल, 19 मंदिर, 20 जलाशय, आदि शामिल हैं, यह वास्तुकला प्रवीणता का एक प्रतीक है जो कई विध्वंसों के बाद भी बचा हुआ है।
दो चरणों में निर्मित, मुख्य प्रवेश द्वार वाला पहला पहाड़ी किला 5 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था, इसके अवशेष ज्यादातर पठार के पश्चिमी किनारों से दिखाई देते हैं।
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दूसरी संरचना 15 वीं शताब्दी में सिसोदिया कबीले के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी । इस किले में स्थित कुंभ श्याम मंदिर, मीरा बाई मंदिर, आदि वरहा मंदिर, श्रृंगार चौरी मंदिर और विजय स्तम्भ आदि की वास्तुकला शुद्ध राजपूताना शैली को दर्शाता है।

कुम्भलगढ़ किला
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अरावली की पश्चिमी सीमा में स्थित, कुंभलगढ़ किला का निर्माण 15 वीं शताब्दी राणा कुंभ ने कराया । इस दुर्ग के पूर्ण निर्माण में 15 साल (1443-1458) लगे थे। दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भ ने सिक्के बनवाये थे जिन पर दुर्ग और इसका नाम अंकित था। कुम्भलगढ़, चित्तौड़गढ़ किले के बाद राजस्थान में दूसरा सबसे बड़ा किला है, जिसके दीवारे एकदम चाइना की दीवारों के सामना है, चीन की महान दीवार के बाद यह एशिया की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है।
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गौरतलब है कि राजस्थान के अन्य स्थलों की तरह, कुम्भलगढ़ भी अपने शानदार महलों के लिए प्रसिद्ध है जिसमें बादल महल भी शामिल है । यह ईमारत 'बादलों के महल' के नाम से भी जानी जाती है। इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकि हिन्दू मंदिर हैं। इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजेय ही रहा है।

रणथम्भोर किला
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रणथम्भोर किला, रणथम्भोर नेशनल पार्क के भीतर ही स्थित है, जोकि सफेद बाघों के लिए मशहूर है। आठवीं शताब्दी में निर्मित रणथम्भोर किला का निर्माण नागिल जाट ने करवाया था इसका निर्माण 944 में हुआ था, बहुत समय तक इस दुर्ग पर जाट राजाओं का शासन रहा। 7 किमी भौगोलिक क्षेत्र में फैले इस किले में विभिन्न हिंदू और जैन मंदिर के साथ एक मस्जिद भी है। आवासीय और प्रवासी पक्षियों की एक बड़ी विविधता यहां देखी जा सकता है, क्योंकि किले के आसपास कई जल निकायों उपस्थित हैं। रणथंभौर के किले पर बहुत आक्रमण हुए जिसकी शुरुआत दिल्ली के कुतुबदीन ऐबक से शुरू हुई और बादशाह अकबर तक चलती रही, लेकिन 17 वीं शताब्दी में मुगलों ने जयपुर के महाराजा को यह किला उपहार में दिया।

आमेर किला
अपनी कलात्मक हिंदू शैली के लिए प्रसिद्ध , आमेर किला जयपुर से 4 किमी दूर स्थित है। लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से परिपूर्ण यह समृद्ध किला अपने आपमें बे-मिसाल हैं। इस ऐतिहासिक किले को राजा मानसिंह, राजा जयसिंह, और राजा सवाई सिंह ने बनवाया था जो अपनी 200 साल पुरातन की ऐतिहासिक गौरवशाली गाथा प्रस्तुत करता है। इस किले को लाल पत्थरों से बनाया गया है और इस महल के गलियारे सफ़ेद संगमरमर के बने हुए हैं। यह किला काफी ऊंचाई पर बना हुआ है इसलिए इस तक पहुँचने के लिए काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।
मुख्य प्रवेश सूरजपोल है, जो पहले मुख्य आंगन जलेब चौक की ओर जाता है। यह वह जगह थी जहां सेनाएं विजय परेड किया करती थीं। आमेर में ही है चालीस खम्बों वाला वह शीश महल मौजूद है, जहाँ माचिस की तीली जलाने पर सारे महल में दीपावलियाँ आलोकित हो उठती है। हाथी की सवारी यहाँ के विशेष आकर्षण है, जो देशी सैलानियों से अधिक विदेशी पर्यटकों के लिए कौतूहल और आनंद का विषय है।

जैसलमेर किला
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जैसलमेर की शान, जैसलमेर किले का निर्माण 1156 ई0 में एक भाटी राजपूत शासक जैसल द्वारा त्रिकुरा पहाड़ी के शीर्ष पर किया गया था। शहर के बीचों-बीच इस किले को 'सोनार किला' या 'स्वर्ण किले' के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पीले बलुआ पत्थर का किला सूर्यास्त के समय सोने की तरह चमकता है।
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कई ऐतिहासिक लड़ाइयों का गवाह रह चुका, जैसलमेर किला ऐतिहासिक धरोहर है। यह एक विशाल 99 बुर्जों वाला किला है। वर्तमान में, यह शहर की आबादी के एक चौथाई के लिए एक आवासीय स्थान है। किला परिसर में कई कुयें हैं जो यहाँ के निवासियों के लिए पानी का नियमित स्रोत हैं। किला राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली का आदर्श संलयन दर्शाता है। राजस्थान के अन्य किलों की तरह, इस किले में भी अखाई पोल, हवा पोल, सूरज पोल और गणेश पोल जैसे कई द्वार हैं। सभी द्वारों में अखाई पोल या प्रथम द्वार अपनी शानदार स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है।

गागरोन किला
गागरोन किला के निर्माण डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था और 300 साल तक यहां खीची राजा रहे। काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित, यह किला चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है। यही नहीं यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी नींव नहीं है। भारत के विश्व धरोहर स्थल सूची में शामील, गागरोन किले के प्रवेश द्वार के निकट ही सूफी संत ख्वाजा हमीनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। यहां हर वर्ष तीन दिवसीय उर्स मेला भी लगता है। यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है, जिसके तीन परकोटे हैं। अमूमन सभी किलों के किलो के दो ही परकोटे होते हैं।
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