रजवाड़ा महल, इंदौर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जो होलकर राजवंश की ऐतिहासिक हवेली भी रही है। इस महल की खासियत है इसकी वास्तुकला, जो किसी को भी एकटक देखने पर मजबूर कर देती है। शहर के बीचों-बीच स्थित रजवाड़ा महल का प्रवेश द्वार 7 मंजिला है, जो दिखने में बेहद सुंदर व भव्य लगता है। होलकर शासकों का ऐतिहासिक महल आज भी अपने उसी शान-शौकत के साथ खड़ी है, जैसे 200 साल पहले थी।
इस पूरे महल की भव्यता देखने लायक बनती है, जो किसी भी तरह से पर्यटकों की नजर अपने पास ले ही आती है। यह पूरी इमारत लकड़ी और पत्थर से बनाई गई है, इसमें किसी प्रकार का कोई कंक्रीट या सीमेंट का उपयोग नहीं हुआ है। इसकी बड़ी-बड़ी खिड़कियां, बालकनी, इसके गलियारे आज भी इतिहास को ताजा करते नजर आते हैं। ऐसे में इंदौर की सैर आप अगर निकले तो एक बार रजवाड़ा जरूर घूम लें। यहां आप फोटोग्राफी भी काफी अच्छे से कर सकते हैं।
रजवाड़ा महल की वास्तुकला
इस महल की वास्तुकला बेहद ही खूबसूरती के साथ डिजाइन की गई है। यह इमारत फ्रेंच, मराठा और मुगल तीनों शैलियों का मिश्रण है। महल का दक्षिणी हिस्सा मुगल शैली में, पूर्वी हिस्सा यूरोपियन, महारानी अहिल्याबाई की राजगद्दी व दरबार हॉल (गणेश हॉल) फ्रेंच स्टाइल और बाकी का हिस्सा (बालकनी, खिड़कियां व गलियारे) मराठा शैली में डिजाइन की गई है, जो किसी भी पर्यटक को आसानी से अपना खूबसूरती का दिवाना बना सकती है।
पत्थर और लकड़ी से बनाई गई है रजवाड़ा महल
इस महल की नीचे की तीन मंजिल पत्थर व ऊपरी चार मंजिल ईंट व लकड़ी से बनाई गई है, फिर अपनी भव्यता का प्रमाण देती नजर आती है। रजवाड़ा महल भारत का एकलौता महल है, जिसमें 7 मंजिला प्रवेश द्वार है।
रजवाड़ा महल में लाइट और साउंड शो का आयोजन
आम जनता के लिए इस महल में लाइट और साउंड शो का आयोजन भी किया जाता है। वहीं, महल के पास में ही लोकल मार्केट भी लगता है, जहां से लोग खरीददारी करने के लिए आते हैं। महल के गणेश हॉल में वर्तमान समय में एक्जिबिशन और क्लासिकल म्यूजिक कॉनसर्ट आयोजित होता है।
रजवाड़ा महल को लेकर महत्वपूर्ण तथ्य
1. इतिहास की मानें तो इस महल में अब तक तीन बार भीषण आग लग चुकी है। अंतिम बार इसमें 1984 ईस्वी (इंदिरा गांधी के हत्या के दौरान हुए दंगों के दौरान) में आग लगी थी। यही कारण है कि आज केवल महल का बाहरी हिस्सा ही सुरक्षित है। बाकी सब जर्जर अवस्था और कुछ धाराशाही हो चुका है।
2. रजवाड़ा महल की नींव मल्लहारराव प्रथम 1747 ईस्वी में रखी गई थी। 1765 ईस्वी में उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद यह महल बनकर तैयार हुआ।
3. 1801 ईस्वी में पहली बार इस महल को सिंधिया के सेनापति सरजेराव घाटगे ने इंदौर पर आक्रमण के दौरान महल के एक बड़े हिस्से को आग के हवाले कर दिया था।
4. दूसरी बार 1834 ईस्वी में रजवाड़ा में फिर आग लगी और इसकी ऊपरी पूरी मंजिल जलकर खाक हो गई।
6174 वर्गमीटर में फैली यह महल 918 फीट लम्बी व 232 फीट चौड़ी है। इस महल का प्रवेश द्वार 6.7 मीटर ऊंचा है।
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