बीते हफ्ते ही मुझे दिल्ली से लखनऊ जाने का मौका मिला। यह पहली बार था जब मै नई दिल्ली से लखनऊ जा रही थी।ट्रेन में टिकट ना हो पाने के कारण मैंने दिल्ली से लखनऊ कार के द्वारा जाना उचित समझा। दिल्ली से लखनऊ की दूरी 561 किलोमीटर है। हमने लखनऊ जाने के लिए यमुन एक्सप्रेस वे से जाना बेहतर समझा।
पहला रूट
दिल्ली-नॉएडा-अलीगढ-आगरा-फिरोजाबाद-शिकोहाबाद-इटावा-कानपुर-उन्नाव-लखनऊ।अगर हम पहले रूट से जाते हैं तो 7 घंटे 54 मिनट में 561 किमी की दूरी तय करके हम दिल्ली से लखनऊ पहुंच जायेंगे।
मै पहली बार नवाबी नगरी लखनऊ जाने के लिए काफी उत्साहित थी।इसी उतावले पन में मै सुबह जल्दी उठ गयी और अपने दोस्तों को भी उठा दिया।
सुबह 6 बजे हमने अपनी दिल्ली से लखनऊ की रोड ट्रिप शुरू की। जैसा की अभी यहां जबरदस्त ठंड है। तो हम सबने अपने पास एक्स्ट्रा स्वेटर भी रख लिए थे।
दिल्ली से निकलते निकलते ही हमें जोरो की भूख लगने लगी क्योंकि हम सभी ने एक्साईटमेंट मे नाश्ता ही नहीं किया। इसलिए जैसे ही हमय मुना एक्सप्रेसवे पर पहुंचे, वहां हमने अपनी गाड़ी रोककर हल्का फुल्का नाश्ता किया।
पहला दिन
दिल्ली से कानपुर पहुंचते पहुंचते हमें जोरो की भूख लग चुकी थी। इसलिए हमने कानपुर मै लंच करने का प्लान बनाया। कानपुर में हमने गुडी फूडी के यहां जबरदस्त लंच किया..यह रेस्तरां काफी अच्छा था यहां का स्टाफ भी काफी शालीन था।कानपुर में खाना खाने के बाद हमने अपनी यात्रा एक बार फिर से शुरू की।दोपहर होते होते हम लखनऊ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। लखनऊ पहुंचते पहुंचते हम काफी थक चुके थे। जिसके चलते हमने चारबाग के पास एक होटल लिया और वहां ठहरना उचित समझा। एक अच्छी नींद लेने के बाद हम सभी दोस्त शाम को निकल पड़े चौक के टुंडे कबाब खाने।
लस्सी
चौक यानी पुराना लखनऊ संकरी गलियों से होते हम पहुंचे टुंडे कबाब की दुकान पर। कहा जाता है कि अगर आपने लखनऊ क्व टुंडे कबाब नहीं चखे तो आपका लखनऊ आना बेकार है। टुंडे कबाब के बाद हम पहुंचे चौक के प्रसिद्ध लस्सी कोर्नर पर। सीजन चाहे कोई भी हो आपको यहां लस्सी जरुर मिलेगी वह भी मलाई मारके ।ह्म्म्म पेट पूजा करने के बाद हम पहुंचे गोमतीनगर की मरीन ड्राइव। यहां से आप बहनजी मायावती बनाये गये अम्बेडकर पार्क को बखूबी देख सकते है।इतना सब घूमने के बाद हम सभी पूरी तरह थक चुके थे। इसलिए हम सभी होटल जाके सोना ही बेहतर समझा।
बड़ा इमामबाड़ा
दूसरे दिन हम सुबह जल्द ही उठ गये। सुबह उठाकर हमने खस्ते और दही जलेबी का नाश्ता किया और निकल पड़े बड़ा इमामबाड़ा देखने। बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ के चौक के पास स्थित है। बड़ा इमामबाड़ा अवध की कलात्मक शैली का अद्भुत नमूना है। जिसको अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने बनवाया था। इस इमारत में एक बहुत बड़ा हॉल है जिसमे करबला की बहुत सी निशानियाँ रखी हुई हैं। इस हॉल की खासियत
यह है कि इसके एक कोने पे जाकर आप कागज़ फाड़ो तो दूसरे कोने में इसकी आवाज़ सुनाई देती है।
भूलभुलैया
भूलभुलैया बड़े इमामबाड़े के ऊपर ही बना हुआ है। इस भूलभुलैया में 409 दरवाज़ेरहित गलियारे हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि यह सुरक्षा के तहत बनवाए गए थे। यहाँ आने वाला पर्यटक लाख कोशिशों के बाद भी भटक ही जाता है। अगर आप भूलभुलैया का लुफ्त उठाना चाहते हैं तो बेहतर होगा एक गाइड करलें जिससे रास्ता बताने में आसानी रहे।
रूमी दरवाजा
रूमी दरवाज़ा बड़े इमामबाड़े की सड़क के सामने ही बड़ा सा आलीशान ऐतिहासिक दरवाज़ा नज़र आता है। यह दरवाज़ा मुग़ल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है इसकी नक्काशी अदूतीय है। इसके अंदर से सेंकडों
गाड़ियां गुज़रती हुई बेहद लुभावनी लगती हैं। इस दरवाज़े की ऊंचाई 60 फुट है। इस दरवाज़े खासियत यह है की इसमें कहीं भी लकड़ी या लोहे का इस्तमाल नहीं किया गया है।
छोटा इमामबाड़ा
रूमी गेट देखने के बाद हम सभी छोटे इमामबाड़े को देखने पहुंचे । इसे 'हुसैनाबाद का इमामबाड़ा' का इमामबाड़ा भी कहा जाता है। इसे अवध के तीसरे नवाब मुहम्मद अलीशाह ने बनवाया था। इस इमामबाड़े में मुहम्मद अलीशाह की कब्र है। यह महीन नक्काशियों वाला अवधकाल की स्थपत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
घड़ी मीनार
घड़ी मीनार (क्लॉक टॉवर) छोटे इमामबाड़े के सामने ही क्लॉक टावर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह क्लॉक टावर पूरे भारत का सबसे ऊँचा टॉवर है। जो कि 221 फुट ऊँचा और इसका पेंडुलम 14 फुट लंबा है। चारों और घंटियां लगी इस घड़ी का डायल 12 पंखुड़ियों वाला है।
रेजीड़ेंसी
रेजीड़ेंसी बड़े इमामबाड़े महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। रेज़ीडेंसी को पुराने समय में 'बेलीशारद' के नाम से जाना जाता था। परन्तु अंग्रेज़ों ने इसपर कब्ज़ा करके इसे अपना निवास स्थान बना लिया था तब से यह रेज़ीडेंसी पड़ गया।
डॉ. आंबेडकर पार्क
रेजीडेंसी देखने के बाद हमने गोमतीनगर स्थित डॉ. आंबेडकर पार्क देखने का मन बनाया और पहुंच गये अम्बेडकर पार्क। इस पार्क को बेहद खूबसूरती से योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है। इसलिए यहाँ देखने के लिए और घूमने केलिए बहुत कुछ ख़ास है। इसे देखने से ऐसा लगता है जैसे बौध्द स्तूप हो। जो कि काफी चढाई से बना हुआ है। आप शाम के वक़्त यहाँ का लुफ्त उठा सकते हैं।
लोहिया पार्क
अम्बेडकर पार्क के सामने लोहिया पार्क है। यह पार्क नौ किलोमीटर में फैला हुआ है। आप शाम के वक़्त यहाँ का लुफ्त उठा सकते हैं।
हज़रतगंज
लोहिया पार्क और अम्बेडकर पार्क होते हुए हम पहुंचे हज़रतगंज। हजरतगंज लखनऊ का सबसे लोकप्रिय बाज़ार है जो बाकी जगह से महंगा भी है। हज़रतगंज को लखनऊ का दिल भी कहा जाता है। हज़रतगंज में 'लवलेन' नाम की ऐसी जगह है जिसे जोड़ों का मिलन स्थल भी माना जाता है। साथ ही लवलेन बहुत ही अच्छा बाजार भी है जहाँ लड़कियों के कपड़ों से लेकर हर ज़रूरी सामान मिलता है। जिसकी वजह से यह नवयुवक व युवतियों में खासा लोकप्रिय है।
जनेश्वर पार्क
दूसरे दिन के अंत तक हमने काफी घूमा साथ ही हज़रतगंज से थोड़ी बहुत शॉपिंग भी की। तीसरे दिन हमने एशिया और लखनऊ के सबसे बड़े पार्क जनेश्वर पार्क देखने का प्लान बनाया। शहीद मार्ग स्थित जनेश्वर पार्क एशिया का सबसे बड़ा पार्क है। इस पार्क का निर्माण वर्ष 2014 में कराया गया था। इस पार्क की खासियत है यहां बनी 40 एकड़ की झील। इस झील मजा टूरिस्ट मंडोला नाव द्वारा ले सकते है। इस पार्क में खाने के लिए काफी फ़ूड स्टाल्स भी उपलब्ध है।
चिकन की शॉपिंग
जनेश्वर में ही पेट पूजा करने के बाद हम निकल पड़े पुराने लखनऊ चिकन की खरीददारी करने। लखनऊ का चिकन उद्योग विश्व-भर में मशहूर है। यहाँ चिकन के काम के कपड़े देखने व लेने लायक होते हैं, चिकन की कारीगरी देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। चौक में खरीददारी करने के बाद हमने एकबार फिर टुंडे कबाब का मजा लिया साथ ही अपने मैंने अपने घरवालों के लिए पैक भी करा लिया।इस के बाद निकल पड़े अपने घर दिल्ली।