रुद्रनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो किपंचकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। आपको बता दें कि रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं।
इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है।
इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव हिमालय आये थे, पांडव भगवान् शिव से अपने पाप के लिए क्षमा चाहते थे क्यूँ कि वे महाभारत के युद्ध में कोरवों को मारने के दोषी थे, पर भगवान् शिव उनसे मिलना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने आप को नंदी बैल के रूप में बदल लिया और गडवाल क्षेत्र में कहीं छिप गए।
इसके तुरंत बाद भगवान शिव का शरीर चार अलग अलग भागों में विभाजित हो गया जिन्हें पंच केदार के रूप में जाना जाता है। जहाँ भगवान शिव का सिर पाया गया वहां पर रुद्रनाथ मंदिर बना है। यात्री सागर गाँव और जोशीमठ द्वारा ट्रेकिंग मार्ग द्वारा भी मंदिर तक पहुँच सकते हैं। जोशीमठ से यह रास्ता 45 किमी लम्बा है। मंदिर हाथी पर्वत, नंदा देवी, नंदा घुंटी ,त्रिशूल आदि चोटियों का मंत्रमुग्ध करने वाला द्रश्य प्रदान करता है। सूर्य कुंड, चन्द्र कुंड, तार कुंड और मानकुंड आदि पवित्र कुंड मंदिर के पास ही स्थित हैं।
देश के किसी कोने से आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश से ठीक पहले तीर्थनगरी हरिद्वार दिल्ली, हावडा से बडी रेल लाइन से जुडी है। देहरादून के निकट जौली ग्रांट में हवाईअड्डा भी है जहां दिल्ली से सीधी उडानें हैं।
हरिद्वार या ऋषिकेश से आपको चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर का रुख करना होगा जो ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचने के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक रात गोपेश्वर में रुकने के बाद अगले दिन आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं।
यूं तो मई के महीने में जब रुद्रनाथ के कपाट खुलते हैं तभी से यहां से यात्रा शुरू हो जाती लेकिन अगस्त सितंबर के महीने में यहां खिले फूलों से लकदक घाटियां लोगों का मन मोह लेती हैं। ये महीने ट्रेकिंग के शौकीन के लिए सबसे उपयुक्त हैं। गोपेश्वर में आपको स्थानीय गाइड और पोर्टर आसानी से मिल जाते हैं।
पोर्टर आप न भी लेना चाहें लेकिन यदि पहली बार जा रहे हैं तो गाइड जरूर साथ रखें क्योंकि यात्रा मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं। पहाडी रास्तों में भटकने का डर रहता है। एक बार आप भटक जाएं तो सही रास्ते पर आना बिना मदद के मुश्किल हो जाता है।