पूरे दक्षिण भारत को मंदिरों का केंद्र कहा जाता है, यहां आपको ऐसे-ऐसे मंदिर देखने को मिलेंगे, जो अपने आप में किसी ऐतिहासिक या धार्मिक मान्यताओं के चलते बेहद प्रसिद्ध है। आज हम आपके समक्ष एक ऐसे ही मंदिर को लेकर आए, जिस मंदिर के भगवान को ब्रह्मचारी और तपस्वी कहा जाता है। यही कारण है कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता है और यह प्रथा करीब 1500 साल से चली आ रही है। हालांकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से मंदिर में महिलाओं पर लगे प्रतिबंध हटा दिया गया है।
भगवान शिव के पुत्र है श्री अयप्पा
इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान श्री अयप्पा हैं। इसके अलावा इस मंदिर में भगवान अयप्पन, मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश व नागराज की प्रतिमाएं मुख्य रूप से विराजित है। आसपास के लोग इस मंदिर को पुणकवन मंदिर के नाम से भी पुकारते हैं। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप और भगवान शिव के मिलन से एक बालक की उत्पत्ति हुई, जिसे ही दक्षिण में श्री अयप्पा के नाम से जाना जाता है। श्री अयप्पा के और भी कई नाम हैं, जिनमें- हरिहरपुत्र, अयप्पन, शास्ता, मणिकांता व सस्तव के नाम से जाना जाता है।
मिलन और सद्भाव की निशानी है यह मंदिर
पश्चिमी घाटी की सबसे बड़ी पहाड़ी श्रृंखला सह्याद्रि के बीच में स्थित यह मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए जंगल के रास्तों को पार करना पड़ता है और फिर श्री अयप्पा के दर्शन किए जाते हैं। इस मंदिर को मिलन और सद्भाव की निशानी भी कही जाती है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर सभी धर्म के लोग आ सकते हैं, किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वहीं, मंदिर के स्थापत्य कला की बात की जाए तो मंदिर की बनावट काफी सुंदर है।
मण्डला पूजा के दिन मनाया जाता है उत्सव
मंदिर में उत्सव के दौरान अयप्पा स्वामी का घी के अभिषेक किया जाता है, इसके साथ ही भक्तों को मंत्रोच्चारण भी सुनने को मिलता है, जो किसी शांति और सुख से कम नहीं होता। इस दौरान इस मंदिर हाथी को सजाकर खड़ा किया जाता है, जो इस पर्व की शोभा बढ़ाता है। यह उत्सव हर साल 17 नवम्बर (मण्डला पूजा) को मनाया जाता है और मंदिर में आए हुए भक्तों को चावल, गुड़ व घी से बना प्रसाद दिया जाता है। इस मंदिर की खासियत यह है कि मलयालम महीने के प्रथम पांच दिनों तक मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। बाकी पूरे साल यह मंदिर आम श्रद्धालुओं के लिए बंद रखा जाता है।
मंदिर के रास्ते में पड़ने वाले मकबरे का भी दर्शन
महिलाओं के प्रवेश के चलते इस मंदिर में आपको सिर्फ पुरुष ही दिखाई देते हैं। मंदिर में आपको वही महिलाएं दिखाई देगी, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर वे इस चक्र से मुक्त हो गई हो यानी आपको बूढ़ी महिलाएं या फिर बच्चियां ही दिखाई देती हैं। मंदिर के पास में ही एक मुस्लिम अनुयायी वावर का मकबरा है, जिसको लेकर कहा जाता है कि मंदिर के दर्शन के पहले मकबरा का दर्शन किया जाता है, तभी अयप्पा का दर्शन सफल माना जाता है। यह मकबरा एरुमेली में स्थित है, जो मंदिर परिसर से करीब 40 किमी. की दूरी पर स्थित है।
41 दिनों का रखा जाता है कठिन व्रत
इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को 41 दिनों का एक कठिन व्रत का पालन करना पड़ता है, जिसे मण्डलम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस दौरान भक्त काले रंग के कपड़े धारण करते हैं और साथ में ही एक रूद्राक्ष की माला भी पहनते हैं और इस बीच वे नंगे पाव रहते हैं। मण्डला पूजा के दौरान आने वाली 17 तारीख को इस मंदिर के कपाट खोले जाएंगे। यह मंदिर हर साल मण्डला पूजा के दिन ही खोला जाता है। इस दिन मंदिर में इतनी भीड़ होती है कि भक्तों को पैर तक रखने की जगह नहीं मिलती। यहां दर्शन करने के लिए विदेशों से भी भक्त आते हैं।
मंदिर बोर्ड देता है निशुल्क बीमा
इस मंदिर की एक और खासियत है कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का फ्री में बीमा किया जाता है। कहा जाता है कि अगर दर्शन करने आए किसी भक्त के साथ कोई दुर्घटना या फिर उसकी मृत्यु हो जाए तो मंदिर बोर्ड की ओर से उसके परिवार के एक लाख दिया जाता है। वहीं, अगर बोर्ड मेम्बर या किसी सरकारी कर्मचारी के साथ ऐसा हुआ हो तो उसके परिवार को डेढ़ लाख रूपये की राशि दी जाती है।
सबरीमाला मंदिर कैसे पहुंचें?
सबरीमाला मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट है, जो मंदिर परिसर से 12 किमी. की दूरी पर स्थित है। वहीं, यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर परिसर से 13 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा मंदिर परिसर तक सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। इसके लिए आपको सबरीमाला के समीप पंपा नामक स्थान तक पहुंचना होता है, जहां से मंदिर तक जाने के लिए 4-5 किमी. का पैदल मार्ग तय करना पड़ता है।
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