ऐतिहासिक किलों की बात आते ही जेहन में सबसे पहला नाम भारत के उत्तर-पश्चिम राज्य, 'राजस्थान' का आता है, यहां के भव्य किले, पर्यटकों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं। विशाल आकार के ये शाही किले, भारत के गौरवशाली इतिहास के प्रतीक माने जाते हैं। इसी भूमि पर कई वीर सपूतों ने जन्म लिया और जब कभी बाहरी ताकतों ने भारत पर वर्चस्व स्थापित करने की हिमाकत की, इन माटी के लालों ने उनको मुंह तोड़ जवाब दिया।
पर आज हम राजस्थान नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिम स्थित किसी अन्य राज्य की बात करने जा रहे हैं, जहां कभी वीर मराठा शासकों की एक हुंकार पर, लाखों तलवारें एकसाथ उठ जाती थीं, जहां कभी वीर पेशवा सम्राटों ने शासन किया। आज इस विशेष खंड में जानिए महाराष्ट्र स्थित एक ऐसे किले के बारे में, जो अपनी भव्यता व विशालकाय संरचना के अलावा मराठों के एक काले अध्याय के लिए ज्यादा चर्चाओं में रहा।
महाराष्ट्र का शनिवार वाडा किला
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राजस्थान की ही भांति महाराष्ट्र के पुणे में भी एक विशालकाय किला मौजूद है, जो 'शनिवार वाडा फोर्ट' के नाम से जाना जाता है। इस किले का निर्माण मराठा साम्राज्य पर राज करने वाले पेशवाओं ने करवाया था। बता दें कि इस किले की नींव शनिवार के दिन रखी गई थी , जिस कारण इसका नाम 'शनिवारवाडा' पड़ा।
यह किला उस समय बनकर तैयार हुआ, जब 'ईस्ट इंडिया कंपनी' धीरे-धीरे भारत पर एकाधिकार स्थापित करने के उद्देश्य से, नित नई योजनाएं बना रही थी, इसी दौरान मराठों का 'ईस्ट इंडिया कंपनी' पर नियंत्रण हट गया और फलस्वरूप अंग्रेज-मराठों के बीच युद्ध छिड़ गया। यह किला 1818 तक पेशवा राजाओं की मुख्य गद्दी रहा।
आधी जली संरचना
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इस विशालकाय दुर्ग का निर्माण मुख्यत: शत्रुओं से सुरक्षा के लिहाज से करवाया गया था। लेकिन 1828 में अज्ञात हमलावरों द्वारा इस विशालकाय संरचना को आग के हवाले कर दिया गया। कुछ ही देर में आग ने किले को अपनी चपेट में ले लिया और जिससे किले के मुख्य भाग बुरी तरह नष्ट हो गए।
आज ये किला हमारे सामने एक आधी जली संरचना के रूप में मौजद है, हालांकि इस किले को पर्यटन के लिहाज से खोल दिया गया। यहां सुबह से शाम तक के बीच पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। पर हां, शाम के बाद इस किले को बंद कर दिया जाता है।
जुड़ा है काला इतिहास
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यह किला अब एक अच्छा खासा पर्यटन स्थल बन चुका है, देश-विदेश से महाराष्ट्र घूमने आए अधिकांश पर्यटक इस आधी जली सरंचना को देखने जरूर आते हैं। लेकिन शायद बहुत कम लोगों के यह बात पता है, कि यह किला अपनी भव्यता के साथ-साथ, अपने रहस्यमय अतीत के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है, पेशवा के 5वें, 16 वर्षीय शासक, नारायण राव को एक षड्यंत्र के तहत मौत के घाट उतार दिया गया था। उनकी मौत का पूरा शक उनके रिश्तेदारों पर गया ।
लोगों का मानना है, कि इस किले में युवा पेशवा शासक की आत्मा भकटती है। जानकारों का कहना है, कि यहां रात के समय रोने-चीखने की आवाजे सुनाई देती है। इसलिए यहां रात के वक्त कोई आने की हिम्मत नहीं करता । जिन्होंने ये चीखें सुनी, उनका कहना है, कि ये चीखे कुछ 'चाचा मुझे बचा लो' जैसे शब्दों के साथ आती है।
फोर्ट की संरचना
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10 जनवरी 1730 में इस किले की नींव 'बाजीराव प्रथम' द्वारा रखी गई, और इसका उद्घाटन 22 जनवरी 1732 में किया गया। इस किले को अनोखा रूप देने के लिए अंदर कई इमारतों व लोटस फाउंटेन का निर्माण करवाया गया।
किले के निर्माण में अलग-अलग जगहों से लाई गई चीजों का इस्तेमाल किया गया, जैसे टीक की लकड़ी जुन्नार के जंगलों से लाई गई, किले में लगे पत्थर चिंचवाड़ा की खदानों से व चुना, जेजुरी की खदानों से लाया गया था। किले के अंदर प्रवेश करने के लिए 5 विशालकाय दरवाजों का निर्माण भी करवाया गया था।
किले के विशाल दरवाजे
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किले की हिफाजत के लिए जिन 5 विशालकाय दरवाजों का निर्माण करवाया गया, वे समय के साथ-साथ काफी प्रसिद्ध हो गए। इन प्रवेश द्वारों को उनकी विशेषताओं के चलते, अलग अलग नामों से संबोधित किया जाता है। जैसे किले का मुख्य दरवाजा जिसे 'दिल्ली दरवाजा ' कहा जाता है, क्योंकि यह उत्तर दिशा में दिल्ली की तरफ खुलता है।
सुरक्षा के लिहाज से इस दरवाजे पर 12 इंच लंबे 72 कीले लगे हुए हैं। दूसरा दरवाजा 'मस्तानी दरवाजा' के नाम से जाना जाता है, जिसका इस्तेमाल बाजीराव की पत्नी मस्तानी द्वारा किया जाता था।
अन्य दरवाजें
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तीसरा दरवाजा पूर्व की दिशा में खुलता है, इस दरवाजे में खिड़की बनी हुई है, इसलिए इसका नाम खिड़की दरवाजा रखा गया। चौथा गणेश दरवाजा है, जो दक्षिण - पूर्व दिशा की तरफ खुलता है, यह दरवाजा गणेश रंग महल के पास स्थित है, इसलिए इसका नाम गणेश दरवाजा रखा गया। पांचवा दरवाजा दक्षिण की तरफ खुलता है, जहां से दासियां आना जाना करती थीं। इस दरवाजे को जंभूल या नारायण दरवाजा भी कहा जाता है, नारायण राव पेशवा की हत्या के बाद उनकी लाश को इसी रास्ते से बाहर ले जाया गया था।
अंदर की इमारतें
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इस किले के अंदर तीन महल थे, जो 1828 में लगी आग के कारण नष्ट हो गए। इस किले में कभी एक 7 मंजिला इमारत भी थी। यह भी आग में नष्ट हो गई। पर यहां कुछ छोटी इमारतें आज भी सही सलामत हैं। इस किले के निर्माण में ठोस-सख्त पथरों का इस्तेमाल किया गया है, जिससे दुश्मनों की तोपें ज्यादा नुकसान न पहुंचा सके।
दरवाजों पर लोहे के बड़ी बड़ी कीलें भी लगाई गईं हैं, जिससे हमले के वक्त दुश्मन के हाथियों को घायल किया जा सकें। साथ ही किले में कुछ गुप्त मार्ग भी बनवाए गए थे।
लोटस फाउंटेन
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किले को खूबसूरत रूप देने के लिए एक कमल के आकार का फव्वारा भी बनवाया गया था, जिसे हजारी करंजे का नाम दिया गया। यह फाउंटेन किले का मुख्य आकर्षण है। वो जगह आज भी मौजूद है, जहां यह फव्वारा बनाया गया था। कहा जाता है, यहां कभी एक राजकुमार की गिरकर मौत हो गई थी। अगर आप यहां आएं तो शाम से पहले का प्लान बनाएं, क्योंकि शाम के 5 बजे के बाद किले को बंद कर दिया जाता है।
कैसे पहुंचे
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शनिवार वाडा फोर्ट महाराष्ट्र के पुणे शहर में है। यहां तक का सफर आप हवाई मार्ग या रेल/सड़क मार्ग से भी कर सकते हैं। मुंबई से पुणे की दूरी लगभग 150 किमी की है, आप यहां तक के लिए बस या ट्रेन का सहारा ले सकते हैं। या फिर आप डायरेक्ट हवाई मार्ग से पुणे आ सकते हैं। पुणे रेलवे स्टेशन से शनिवारवाडा फोर्ट की दूरी लगभग 4 किमी है, आप यहां तक के लिए टैक्सी ले सकते हैं।