कर्नाटक का होस्पेट शहर सांस्कृतिक विरासत का धनी है। स्थानीय रूप से होस्पेट के रूप में जाना जाने वाला यह शहर तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित है। यह छोटा सा शहर बेहद ऐतिहासिक महत्व रखता है और विजयनगर पर शासन करने वाले कृष्ण देव के समय से ही इस शहर का अस्तित्व रहा है। बीते हुए युग के प्राचीन स्मारक होस्पेट को एक पर्यटन स्थल बनाते हैं। इस शहर में ऐसी कई ऐतिहासिक जगहें हैं जिन्हें देखकर आप अचंभित हो उठेंगे।
होस्पेट कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग द्वारा: होसपेट का निकटतम हवाई अड्डा बेल्लारी में स्थित है, जो शहर से लगभग 75 किमी की दूरी पर है।
रेल मार्ग द्वारा: होस्पेट रेलवे स्टेशन शहर के केंद्र में स्थित है। यह स्टेशन देश के सभी प्रमुख शहरों से ट्रेनों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग द्वारा: राज्य के सभी नजदीकी शहरों और कस्बों से होसपेट के लिए नियमित बसें चलती हैं। होस्पेट का बस जंक्शन काफी व्यस्त रहता है क्योंकि यह देश के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
होस्पेट आने का सही समय
होस्पेट की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी के महीनों में होता है क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम 15 डिग्री सेल्सियस से 34 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
तुंगभद्रा बांध
1953 में निर्मित तुंगभद्रा बांध तुंगभद्रा नदी पर बना है एवं इसके किनारे पर होस्पेट शहर बसा हुआ है। कर्नाटक राज्य के सबसे महत्वपूर्ण बांधों में से एक इस बांध का उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा सिंचाई के लिए किया जाता है। विद्युत आपूर्ति उत्पन्न करने के अलावा इस बांध से आसपास के क्षेत्र में बाढ़ को भी प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया है।
यह जलाशय एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और इसमें अनेक जलीय जीव रहते हैं। इस बांध पर कई विदेशी प्रजातियों के पक्षियों को विचरण करता हुआ आप देख सकते हैं जिनमें राजहंस, पेलिकन आदि शामिल हैं।
विरुपक्षा मंदिर
विरुपक्षा मंदिर बेहतरीन वास्तुशिल्प का अद्भुत उदाहरण है। होस्पेट शहर में का यह मंदिर ऐतिहासिक महत्व रखता है। यूनेस्को द्वारा इस मंदिर को विश्व धरोहर स्थलों में रखा गया है। इस मंदिर में एक गर्भगृह, एक स्तंभित हॉल, पूर्व-कक्ष, प्रवेश द्वार, एक आंगन और छोटे मंदिर हैं।
मंदिर में स्थापित हिंदू पौराणिक आकृति भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में नौ-तीरों वाला 50 मीटर ऊंचा गोपुरम है, जो हेमकुम पहाड़ी के तल पर तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है।
मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि इस मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि ऐसा लगता है कि तुंगभद्रा नदी मंदिर की छत से बहती हुई रसोई में बह रही है और फिर बाहर अपना रास्ता निकाल रही है। दीवारों और प्रवेश द्वारों पर सुशोभित कलात्मक मूर्तियों के कुछ शानदार और उत्कृष्ट चित्र वास्तुशिल्प कौशल को दर्शाते हैं।
होस्पेट का आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम
होस्पेट के आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम को पर्यटक देखे बिना होस्पेट से वापिस नहीं जाते हैं। पर्यटकों के बीच ये संग्रहालय बहुत मशहूर है। इस संग्रहालय में कई अनोखी कलाकृतियां रखी गई हैं जिनमें से कुछ मूर्तियों और चित्रों के अवशेष भी हैं। कहा जाता है कि सन् 1972 में इन कलाकृतियों को संग्रहालय में लाया गया था।
इस संग्रहालय में चार विशाल गैलरी और अन्य धातु की चीज़ें हैं। पीतल की थालियां भी हैं जोकि ऐतिहासिक महत्व रखती हैं। आयरन और पोरकेलिन की चीजों को भी जमीन से खोदकर निकाला गया था और इसके बाद इस संग्रहालय में रखा गया था।
लोटस महल
विजयनगर राजवंश के जनाना से लोटस मंदिर जुड़ा हुआ था। शाही घराने की रानियां और महिलाएं इस महल में रहती थीं। लोटस महल को कमल महल या चित्रागनी महल के नाम से भी जाना जाता है। इस महल की संरचना कमल के फूल जैसी है और इसी वजह से इसका नाम लोटस महल पड़ा है।
महल का मेहराब कमल की पंखुड़ियों और केंद्रीय गुंबद कमल की पत्ती के आकार का है। यह महल वास्तुशिल्प की नज़र में भारतीय और इस्लामिक शैली में बनवाया गया था। इस महल को देखकर आपको इसकी भव्यता का अंदाज़ा होगा।