भारत के शहरों के दिलचस्प निकनेम
फरवरी 2014 में तेलांगना को एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया। यह राज्य दो महत्वपूर्ण नदियों कृष्णा और गोदावरी के बीच स्थित है।तेलंगाना भारत का 12वां बड़ा राज्य है। तेलांगना भारत का वो स्थान है जो हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।
दक्षिण भारत के खास 5 मंदिर..जायें जरुर
यहां पर्यटकों के देखने के लिए मन्दिरों से लेकर वाटरफॉल और किले आदि है...अपने इस लेख के जरिए आपको अवगत कराने वाले हैं तेलेंगाना के कुछ ऐसे किलों से जिनकी सुंदरता और वास्तु आने वाले किसी भी पर्यटक को आश्चर्य में डाल सकता है।
वारंगल का किला
वारंगल का किला अपने आप में अलग प्रकार का आकर्षण है जिसका पर्यटक आनन्द ले सकते हैं। इसे दक्षिण भारतीय वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। गणपतिदेव ने 1199 ई0 में किले की शुरुआत कराई लेकिन इसका ऩिर्माण उनकी पुत्री रानी रुद्रामा देवी के समय में 1261ई0 में पूर्ण हुआ। वर्तमान में खण्डहर के रूप में इस किले के दो दीवारों के साथ-साथ चार विशाल प्रवेश द्वार साँची शैली में हैं और देश में सबसे बड़े हैं।
राचाकोंडा किला
राचाकोंडा किला 14 वीं और 15 वीं सदी के दौरान इस क्षेत्र पर शासन करने वाले वेलमा राजाओं की राजधानी हुआ करता था। वेलमा राजा शायद दक्षिण के सबसे अलोकप्रिय शासक थे, क्योंकि उन्होंने बाहमनी के मुस्लिम शासकों के साथ गठजोड़ किया और निरंतर रेड्डी राजाओं से जंग लड़ते रहे, जो कोंडावीडू क्षेत्र के शासक थे। वेलमाओं ने वारंगल के कपाया नाइकास से भी लगातार जंग लड़ी। वेलमा राजाओं ने किले का निर्माण युद्ध के दौरान खुद को बचाने के लिये किया, लेकिन मुस्लिम शासकों ने उनके साथ धोखा किया और वेलमा के शाही परिवार को अपना ही दास बना लिया।
गोलकुंडा किला
गोलकुंडा किला हैदराबाद से सिर्फ 11 किमी दूर है। 15वीं शताब्दी में गोलकुंडा चकाचौंध भरी जिंदगी जी रहा था। हालांकि अब यहां सिर्फ गौरवशाली अतीत के खंडहर ही देखने को मिलते हैं। इस किले को कुतुब शाही वंश के शासकों ने बनवाया था, जिन्होंने यहां 1512 से शासन किया। किले में सबसे ज्यादा योगदान इब्राहिम कुली कुतुब शाह वली ने दिया। अकॉस्टिक इस किले की सबसे बड़ी खासियत है। अगर आप महल के आंगन में खड़े होकर ताली बजाएंगे तो इसे महल के सबसे ऊपरी जगह से भी सुना जा सकेगा, जो कि मुख्य द्वार से 91 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि एक गुप्त सुरंग गोलकुंडा किले को चारमीनार से जोड़ती है।
कोन्दाविदु किला
कोन्दाविदु किला, गुंटूर शहर की समृद्ध ऐतिहासिक अतीत का हिस्सा है। यह किला, गुंटूर के बाहरी इलाके में 17 मील की दूरी पर स्थित है और यहां तक सड़क मार्ग के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस किले का निर्माण 14 वीं सदी की शुरूआत में रेड्डी राजा के द्वारा शुरू करवाया गया था। वर्तमान में खंडहर में बदल चुका है लेकिन आज भी यहां समृद्ध इतिहास की झलक देखने को मिलती है। कई पर्यटक, इस किले के अलावा यहां के प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता भी निहारने आते है, जो किले के आसपास मौजूद है। कई पर्यटक यहां आकर ट्रैकिंग और हाईकिंग करना भी पसंद करते है। इस किले के पास में ही गोपीनाथ मंदिर और काथुलाबावे मंदिर स्थित है।
मेडक किले
मेडक किले को काकतीयों शासकों के द्वारा शहर को आक्रमणकारियों से बचाने के उद्देश्य से बनाया गया था, यह एक प्राचीन दुर्ग है। यह किला, मेडक में ही स्थित है और हैदराबाद से 100 किमी. की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह किला, 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था, इसका निर्माण महाराजा प्रातप सिंह रूद्र ने करवाया था, उस दौरान इसे मेथुकु दुर्गम के नाम से जाना जाता था। यह किला ऐतिहासिक दृष्टि से उल्लेखनीय है, इसके अलावा यहां कई पुरातात्विक बिंदु भी देखने को मिलते है।
खम्माम किला
खम्माम किले का निर्माण 950 ईस्वी में हुआ था, जब यह क्षेत्र काकतीय राजाओं के नियंत्रण में था। हालांकि, यह किला उनके काल में पूरा ना हो सका और फिर मुसुनूरी नायक और विलामा राजाओं ने इस किले के निर्माण को पूरा करने का बीड़ा उठाया। 1531 में, कुतुब शाही के शासन काल दौरान इस किले को और विकसित किया गया तथा इस किले में नए भवन एवं कमरे जोड़े गए। यह किला दोनों हिंदू और मुस्लिम वास्तुकलाओं का एक अच्छा उदाहरण है और यह दोनों शैलियों को प्रभावित करता है क्योंकि इस किले के निर्माण कार्य में दोनों धर्मों के शासक शामिल थे।
गंडिकोटा का किला
गंडिकोटा, आंध्र प्रदेश के कडपा जिले में पेन्नार नदी के तट पर बसा एक छोटा सा गांव है जो अपनी बला की सी खूबसूरती के चलते किसी भी पर्यटक का मन मोह लेगा। यदि आप यहां हैं तो हमारा सुझाव है कि आप घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बने गंडिकोटा किले को निहारना न भूलें। इस किले का वास्तु अपने में बेमिसाल है जिसमें आपको दक्षिण भारतीय वास्तुकला की झलक देखने को मिलेगी।