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इस ट्रेक को करने के लिए चाहिए होता है बड़ा जिगर

उत्तराखंड में आपको प्रकृति से जुड़ी हर चीज़ का मज़ा उठाने का मौका मिलेगा। बर्फ से घिरी पहाडियों से लेकर, कठिन रास्‍ते और बहती नदियां, उत्तराखंड में आपको ये सब कुछ मिलेगा।

By Namrata Shatsri

उत्तराखंड में आपको प्रकृति से जुड़ी हर चीज़ का मज़ा उठाने का मौका मिलेगा। बर्फ से घिरी पहाडियों से लेकर, कठिन रास्‍ते और बहती नदियां, उत्तराखंड में आपको ये सब कुछ मिलेगा। 18,000 फीट ऊंचा है ओडेन कोल पर्वत। इस पर्वत की खोज जॉन बिकनेल ओडन ने की थी जिसके बाद उन्‍हीं के नाम पर इस पर्वत का नाम पड़ गया। उन्‍होंने 1939 में इस पर्वत की चढ़ाई भी की थी। गढ़वाल हिमालय पर स्थित इस पर्वत की ऊंचाई आपको डरा सकती है। इस पर्वत पर ट्रैकिंग करना भारत की सबसे मुश्किल ट्रैकिंग रूट में से एक है।

ट्रैक की सामान्‍य जानकारी
ये रूट दो ग्‍लेशियरों को एकसाथ जोड़ता है। ये ग्‍लेशियर हैं खातलिंग ग्‍लेशियर और जोगिन आई ग्‍लेशियर। ये गंगोत्री से शुरु होकर केदारनाथ पर खत्‍म होते हैं एवं यह दोनों ही स्‍थान हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्‍थलों में से एक है। घुमावदार रास्‍तों, संकीर्ण चट्टानों के कारण यहां पर ट्रैकिंग करना बहुत मुश्किल काम है।

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ये ट्रैक सिर्फ प्रोफेशनल ट्रैकर्स के लिए ही है। ये काफी लंबा और सीधा ट्रैक है जिसे पार करने में लगभग 20 दिन का समय लगता है और 4 दिन की यात्रा करनी पड़ती है। इसके अलावा चूंकि आप काफी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए ट्रैकिंग कर रहे हैं इसलिए आपको अपने शरीर को भी उसी के मुताबिक ढालना पड़ता है ताकि वहां पहुंचने पर आपको कोई दिक्‍कत ना हो।

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हालांकि अल्‍पाइन की ढलानों के बीच से गुज़रते हुए आपको गढ़वाल हिमालय के खूबसूरत नज़ारे भी देखने का मिलते हैं जिन्‍हें आप अपनी पूरी जिंदगी याद रखेंगें।

ट्रैक का सही समय

ट्रैक का सही समय

ओडेन कोल ट्रैक पर जाने का सबसे सही समय गर्मी में मई से लेकर जून तक का होता है ओर मॉनसून के बाद सिंतबर से अक्‍टूबर के मध्‍य तक भी आप यहां जा सकते हैं। गर्मी में यहां का मौसम बहुत सुहावना रहता है और मॉनसून के बाद तो आपको यहां पर एक अलग ही अनुभव होगा। बर्फ से ढकी पहाडियों पर काफी ठंड होती है।PC:Travelling Slacker

2 सपताह की लंबी ट्रैकिंग ऐसी होती है।

2 सपताह की लंबी ट्रैकिंग ऐसी होती है।

यात्रा के पहले दो दिन दिल्‍ली से गंगोत्री जाने में गुज़र जाते हैं। अगर आप यात्रा के दौरान थकान महसूस कर रहे हैं तो आप गंगोत्री पहुंचकर कुछ समय आराम कर सकते हैं। यहां पर आप खुद को ट्रैकिंग के लिए तैयार भी कर सकते हैं। बाकी के दो दिन भी यात्रा में ही गुज़रते हैं जब आप वापिस ऋषिकेश से दिल्‍ली लौटते हैं।PC: shimriz

ट्रैकिंग के दिन 4 से 7

ट्रैकिंग के दिन 4 से 7

चौथे दिन खुद को तैयार करने के बाद गंगोत्री से नाला बेस कैंप तक जाने की तैयारी होती है। गंगोत्री नैशनल पार्क से होकर आपका रास्‍ता गुज़रता है और इस बीच सुंर सिडार और रोदोडेंद्रॉन के पेड़ देखने को मिलते हैं। रुद्रगायरा नदी तक पहुंचने में आपको 5-6 घंटे का समय लगता है और इसी के साथ चौथे दिन की ट्रैकिंग भी पूरी हो जाती है।

पांचवे दिन आप रुद्रगायरा कैंप से 7-8 घंटे के लिए ट्रैकिंग शुरु करते हैं। एक रिज से शुरुआत करते हुए नदी से गुज़रते हुए चढ़ाई पर जाकर रुद्रगायरा और जोगिन चोटि का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। रात को कैंप लगाते समय आप इस नज़ारे का मज़ा ले सकते हैं।

ट्रैक के छठे दिन आपको 14,270 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है। कैंप के आसपास घूमकर उस जगह को बेहतर तरीके से समझना पड़ता है क्‍योंकि आठवें दिन से ट्रैकिंग और भी ज्‍यादा मुश्किल होने वाली होती है।

सातवें दिन आप गंगोत्री बेस कैंप पहुंच जाएंगें जहां से आपकी ट्रैकिंग और भी ज्‍यादा मुश्किल होने वाली है। अपनी मंजिल पर पहुंचने पर आपको गंगोत्री के शिखरों का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलेगा।

PC:Rajarshi MITRA

ट्रैकिंग के 8 से 11 दिन

ट्रैकिंग के 8 से 11 दिन

आठवें दिन आप अपनी मंजिल यानि ओडेन कोल बेस कैंप पहुंच जाजे हैं जहां से आपको और भी ज्‍यादा कठिन मोरेन की चढ़ाई करनी पड़ती है। किसी चट्टानी पर्वत के समतल भूभाग पर अपना बेस कैंप लगाएं।

असली ट्रैकिंग तो नौवें दिन शुरु होती है जब आप ओडेन कोल पास से खातलिंग ग्‍लेशियर पर पहुंचते हैं। आपको सुबह जल्‍दी उठकर ट्रैक की शुरुआत करनी पड़ती है और कठिन चढ़ाई को पार करने के लिए आपको टेक्‍निकल क्‍लाइंबिंग की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी आपको रोप की जरूरत भी पड़ सकती है।

PC:Paul Hamilton

ट्रैकिंग के 8 से 11 दिन

ट्रैकिंग के 8 से 11 दिन

18,000 फीट की ऊंचाई पर ओडेन कोल पहुंचने के बाद आप हिमालय की मनोरम सुंदरता को निहार सकते हैं। खातलिंग ग्‍लेशियर से आगे 6 किमी चढ़ाई करनी पड़ती है और यहीं पर आपको अपना कैंप भी लगाना होगा।

ट्रैकिंग के दसवें दिन ज़ीरो प्‍वांइट से आपको ग्‍लेशियर पर 10 से 12 घंटे की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। टेक्‍निकल ट्रैकिंग उपकरणों की मदद से आप इस ग्‍लेशियर को पार कर सकते हैं और जीरो प्‍वाइंट पर पहुंच सकते हैं। ट्रैकिंग का सबसे मुश्किल हिस्‍सा यहां खत्‍म होता है।

ट्रैकिंग के 12 से 16 दिन

ट्रैकिंग के 12 से 16 दिन

बारहवें और तेरहवें दिन आप दो खूबसूरत झीलों मसर ताल और वासुकि ताल पर ट्रैकिंग करेंगें। चौदहवें दिन हिंदुओं के प्रसद्धि धार्मिक स्‍थल केदारनाथ पहुंचेंगें। ये भगवान शिव के बारह ज्‍योर्तिलिंगों में से एक है। आप चाहें तो यहां पर अपने ट्रैक को खत्‍म कर सकते हैं या फिर ऋषिकेष के लिए आगे चढ़ाई कर सकते हैं।

यहां से पंद्रहवें दिन आपको गौरीकुंड के लिए निकलना होगा जोकि 14 किमी लंबा रास्‍ता है। सोलहवें दिन आप ऋषिकेष पहुंच जाएंगें जोकि ओडेन कोल ट्रैक खत्‍म होगा।

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