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देवभूमि की एक ऐसी बर्फीली घाटी जहां पांडवों ने आखिरी बार खाना खाया था

दारमा घाटी, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला में धौलीगंगा नदी के किनारे पर स्थित है, जो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जानी जाती है। इसे न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि हिमालय की भी सबसे सुंदर घाटियों में से एक माना जाता है। इस घाटी में आपको धौलीगंगा नदी की कलकल की आवाज, पंचाचुली पर्वत का खूबसूरत नजारा और आरामदायक घास इसे और भी खास बनाती है।

इसके अलावा यहां की स्थानीय परम्परा और लोगों का प्रकृति प्रेम इनकी प्यार में पड़ने पर मजबूर कर देगा। कहा जाता है न कि मंजिल से अधिक मजा रास्ते में आता है। ये लाइन दारमा घाटी के लिए बिल्कुल परफैक्ट बैठती है। यहां की रोमांचक यात्रा जबरदस्त है। यहां अगर आप अपने पार्टनर के साथ जाने की सोच रहे हैं तो इस खूबसूरत से जगह पर जा सकते हैं।

darma valley

दारमा घाटी में ही पांडवों ने आखिरी बार खाना खाया था

पहाड़ी सभ्यता और खान-पान, उनकी परम्परा और रहन-सहन, हिमालयी नजारों, बुग्याली घास और कटीले वृक्ष इस घाटी को एक सम्पूर्ण पहाड़ी घाटी बनाती है, जिसका आनंद एक बार तो सभी को लेना चाहिए। यहां ठंड बहुत पड़ती है तो इस बात का ध्यान रखें और अपनी पैकिंग में जैकेट. स्वेटर और जूते रखना बिल्कुल न भूलें। कहा जाता है कि पांडवों ने स्वर्ग जाते समय अपना आखिरी खाना यही खाया था। यहां आपको पांडव पीक भी देखने को मिलेगा, जो एक सुखद और सकारात्मक ऊर्जा देता है।

दारमा घाटी में दुग्तालों का गांव दुग्तू व दांतू

दुग्तू गांव दारमा घाटी में स्थित एक छोटा सा गांव है। इस गांव में रं समाज के लोग रहते हैं, जिनकी परम्परा व रहन-सहन बेहद अलग है और शानदार भी..। पंचाचूली की गोद में बसे इस गांव में करीब 150 परिवार रहते हैं। पहले यहां मिट्टी का घर था, जो अब धीरे-धीरे सीमेंट वाले घर में तब्दील हो रहे हैं। इसे दुग्तालों का गांव भी कहा जाता है। कुछ ऐसा ही दांतू गांव का भी नजारा देखने को मिलता है, जिसे कैमरे में कैद किए बिना आप वापसी ही नहीं कर सकते। इस घाटी में कुल 12 आदिवासी गांव बसते हैं, जो आज भी अपनी संस्कृति व परम्परा से लगाव रखते हैं।

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बुरांश के फूल और यहां की ट्रेकिंग

दारमा घाटी अपनी ट्रेकिंग के लिए भी जाना जाता है। ट्रेकिंग का मार्ग गोरी गंगा और दारमा घाटी के बीच का है, जिसे पूरा करते समय आपको रास्ते में एक सुखद अनुभव के साथ शानदार नजारें भी देखने को मिलेंगे। यहां आपको बुरांश के सफेद व बैंगनी रंग के फूल भी दिखाई देंगे, जो आपको हिमालय की घाटियों में एक आकर्षण का काम करती है। यहां आपको वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता भी देखने को मिलती है।

दारमा घाटी घूमने के लिए कब जाए?

यहां घूमने के लिए सबसे अच्छा समय मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर माना जाता है। क्योंकि अक्टूबर के बाद यहां भारी बर्फबारी शुरू हो जाती है। अभी हाल ही में दारमा घाटी के गांव तिदांग, जो कि 11 हजार की ऊंचाई पर चीन सीमा के पास स्थित है, में आजादी के 75 साल बाद मोबाइल सेवा शुरू की गई है।

दारमा घाटी कैसे पहुंचें?

दारमा घाटी पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको धारचूला पहुंचना होगा। यहां से दुग्तू गांव की दूरी करीब 80 किमी. है, यह रास्ता आपको एक ऐसी याद देगा, जिसे आप शायद ही कभी भूल पाएं। यहां का नजदीकी पंतनगर में है, जो यहां से करीब 380 किमी. दूर है और यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में है, जो यहां से करीब 240 किमी दूर है।

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