पुरानी दिल्ली में स्थित अरसे पुरानी हवेलियां भले ही अपनी सजधज और बुलंदी भले ही खो चुकी हैं, लेकिन उसके बुर्ज और परकोटे अतीत के वैभव की याद दिलाने के साथ वास्तुकला का अद्भुत नमूना भी पेश करते हैं।
कहते हैं कि पुरानी दिल्ली की रईसी का आइना रही हैं हवेलियां और यह बात सही भी है कि पुरानी दिल्ली हवेलियों का गढ़ है। बीस साल पहले करीब सात सौ हवेलियां थी पर वर्तमान में बमुश्किल 100 हवेलियां ही बचीं हैं।
आइए पता करते हैं, मुगल कला कैसे विकसित हुई?
उस जमाने में 'हवेलियां सामाजिक रसूख की परिचायक होने के साथ साथ स्थापत्यकला का अभिनव उदाहरण भी थीं। दरवाजे, खिड़कियां, छज्जे, तहखाने, आंगन, दालान, पेड़ से लेकर महिलाओं के लिए जनानखाना तक स्थापत्य का अदभुद नमूना दिखाती थीं ये हवेलियां।
इन हवेलियों में बड़े बड़े कॉरिडोर, एक बड़ा सा आंगन और खुली छत हुआ करती थी, साथ ही तहखाना, जो उन दिनों गर्मी से राहत पहुंचता था। इसी क्रम में आइये जानते है दिल्ली की कुछ खास हवेलियों के बारे में।
चुन्नामल की हवेली
चुन्नामल हवेली, चांदनी चौक के आकर्षणों में से एक है। इस हवेली की संरचना में बड़ा आंगन, बेल्जियम के दर्पण और विस्तृत आर्टवर्क शामिल हैं। यह विशाल इमारत एक एकड़ से अधिक के क्षेत्र में तीन मंजिलों में बनाई गई है। इसमें 128 कमरे हैं और चुन्नामल परिवार की वर्तमान पीढ़ी अभी यहां निवास करती है। इस हवेली की छत से चांदनी चौक का पूरा नजारा देखा जा सकता है। यहां तक कि, यह पुरानी दिल्ली की अकेली ऐसी हवेली है जो भली - भांति संरक्षित है। हवेली के ड्राईंग रूम की दीवारों पर एक शिलालेख भी बना है, कहे जाने के मुताबिक यह संरचना 1848 में बनाई गई थी। दिल्ली के दिल में स्थित चांदनी चौक में बनी इस हवेली को इसके मूल रूप में अनिल प्रसाद के द्वारा सरंक्षित किया जा रहा है जो चुन्नामल परिवार के वंशज हैं।PC:Captsahil
मिर्जा ग़ालिब की हवेली
पुरानी दिल्ली के मशहूर चांदनी चौक की पेचीदा गलियों से गुज़रते हुए बल्लीमारान के कोने में बसी है ‘गली क़ासिम जान' जो की ग़ालिब की हवेली के नाम से से जानी जाती है। इस हवेली में रहते हुए उन्होंने शेरो-शायरी के अनगिनत नायाब नगीने शायरी की चादर में जड़े।अपनी ज़िन्दगी के आखिरी लम्हे ग़ालिब ने इसी हवेली में बिताये। अपनी ज़िन्दगी के साथ ही अपने ग़मों से निजात पाते हुए 15 फरवरी, 1869 को उनका इंतकाल इसी हवेली में हुआ। गालिब की हवेली के हर कोने से आपको उनकी शायरी की खुश्बू आएगी और आपका मन उसी दुनिया में खो जाएगा। किसी शायर के लिए गालिब की ये हवेली जन्नत से कम नहीं है। गालिब की हवेली अन्य राष्ट्रीय इमारतों की तरह ही सोमवार को बंद रहता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुले रहने वाली इस हवेली में कोई भी निःशुल्क एंट्री कर सकता है। यहां फोटोग्राफी पर भी कोई प्रतिबंध या चार्ज नहीं है। अगर आप मेट्रो से जा रहे हैं तो चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन इसके सबसे नजदीक है।PC: Anwaraj
शमरू हवेली
भागीरथ महल के सामने स्थित शमरू हवेली अब पूर्ण जर्जर हो चुकी है, इसे देख कोई नहीं कहेगा कि, कभी यहां 9 खूबसूरत फुव्वारो के साथ खूबसूरत उद्यान था। अपने समय में यह हवेली एक चार-मंजिला इमारत थी जिसमें यूनानी, रोमन और मुगल स्थापत्य शैली के स्वस्थ संगम के साथ पत्थर और संगमरमर द्वारा निर्मित थी। हालांकि अब यह हवेली पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है।
जफर महल
ज़फ़र महल का निर्माण अकबर शाह द्वितीय ने करवाया था, लेकिन जफर महल के लिये अंदर जाने वाले दरवाजे का निर्माण बहादुर शाह जफर द्वितीय ने कराया था। जिसे हाथी गेट भी कहते हैं। इसी कारण इसे ज़फ़र महल कहा जाता है।खुली महराबों और ऊंची छतों की बदौलत गर्मियों में यह महल ठंडा रहता था। इमारत के ऊपरी भाग बेहद शांत और सुंदर हैं। ज़फ़र महल से जुड़े संगमरमर की बनी हुई छोटी सी मोती मस्जिद भी बहुत सुंदर है और अभी तक अपेक्षाकृत अच्छी हालत में है। यहां पर मुगल परिवार की कब्रें भी हैं। बहादुर शाह ज़फ़र ने भी मरने से पहले अपने लिए यहां पर एक कब्र बनवाई थी, लेकिन अंग्रेजों ने उनको बंदी बनाकर रंगून भेज दिया था। जिसके बाद वहीं उनकी मौत हो गई थी और उनको वहीं पर दफन कर दिया गया। जिस कारण आज भी ज़फ़र महल में उनकी क़ब्र खाली पड़ी है। इस महल में एक मोती मस्जिद और खास महल है जो कि महल की दूसरी इमारतों के मुकाबले अच्छी हालत में है, लेकिन खास महल के आस पास सिर्फ इमारतें ही दिखाई देती हैं।PC:Parth.rkt
जहाज महल
जहाज़ महल महरौली, दिल्ली में इसके पूर्वोत्तर कोने में हौज़-ए-शम्सी में स्थित है। इसे आस-पास से देखने पर इसका प्रतिबिम्ब ऐसे प्रतीत होता है जैसे किसी झील में कोई जहाज़ चलायमान हो। इसका निर्माण लोदी राजवंश के काल (1452-1526) में खुशी के पल बिताने की धर्मशाला के रूप में किया गया था।
इस स्मारक में मानसून के मौसम के बाद फूलोवालों की सैर नाम से एक त्यौहार मनाया जाता है, जोकि ख्वाजा बख्तियार काकी दरगाह और योगमया मंदिर को समर्पित होता है।