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नरक चतुर्दर्शी2017: जाने यमराज के मंदिरों के बारे में

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है जिसे हम सभी छोटी दिवाली भी कहते है। यह दिन मुख्यतः भगवान यमराज को समर्पित है।

By Goldi

 दिवाली दिवाली

मृत्यु के देवता 'यमराज देव' का नाम सुन हर कोई थर-थर कांपता है। मृत्यु जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता और ना ही इसे घटित होने से रोका जा सकता है।इस दिन यमराज की पूजा करने और उनके लिए व्रत करने का विधान है।

यम देव के रूप-रंग का वर्णन भी हमें पुराणों से ही मिलता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। वे भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है।यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है। स्कन्दपुराण' में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है।

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यमराज के मुंशी 'चित्रगुप्त' हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। स्मृतियों के अनुसार 14 यम माने गए हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त।

यम देव हैं, तो देव की आराधना की जानी भी जरूरी है। तो क्या आपने यमराज के किसी मंदिर के बारे में कभी सुना है? कहां हैं ये मंदिर? अगर नहीं तो आज हम आपको नर्क चतुरदर्शी के उपलक्ष्य में अपने लेख के जरिये अवगत कराने जा रहे हैं, यमराज के कुछ प्रमुख मंदिरों से

यमराज मंदिर (भरमौर, हिमाचल प्रदेश)

यमराज मंदिर (भरमौर, हिमाचल प्रदेश)

यम देवता को समर्पित यह मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नामक जगह पर है। ये जगह दिल्ली से करीब 500 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है। इस मंदिर में एक खाली कमरा भी है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि जब किसी वयक्ति की मृत्यु होती है तो यमराज के दूत उसकी आत्मा पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने लेकर जाते हैं।

चित्रगुप्त आत्मा को उनके कर्मों का पूरा ब्योरा देते हैं। इसके बाद आत्मा को यमराज की कचहरी में लाया जाता है। यहां यमराज कर्मों के अनुसार आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं। यह भी मान्यता है इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नरक ले जाते हैं।

श्री यमुनाजी-यमराज, भाई-बहन का मंदिर (विश्राम घाट, मथुरा)

श्री यमुनाजी-यमराज, भाई-बहन का मंदिर (विश्राम घाट, मथुरा)

यमुनाजी और धर्मराज को समर्पित यह मंदिर मथुरा में यमुना नदी के विश्राम घाट पर है। इस मंदिर को बहन-भाई के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यमुना और यमराज भगवान सूर्य की संतानें हैं। इस मंदिर में यमुना और धर्मराज की मूर्तियां एक साथ लगी हुई हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जो भी भाई, भाई दूज के दिन यमुना में स्नान करके इस मंदिर में दर्शन करता है, उसे यमलोक नहीं जाना पड़ता।

मथुरा के मंदिर में स्थापित भगवान यम और यमुना की मूर्ति: ब्रज में यहां दिवाली आते ही श्रद्घालुओं की अच्छी-खासी भीड़ उमडती है।

धर्मराज मंदिर (लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश)

धर्मराज मंदिर (लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश)

ऋषिकेश में भी भगवान यमराज का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। मंदिर के मुख्य भाग में भगवान यमराज की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान यमराज के आसपास कुछ मूर्तियां है, जिन्हें यमदूतों की मूर्तियां मानी जाती है। यमराज के बाईं ओर एक मूर्ति स्थापित है, जो चित्रगुप्त महाराज की मूर्ति है। यहां स्थापित मूर्ति में भगवान यमराज कुछ लिखने की मुद्रा में विराजित हैं।

श्रीऐमा धर्मराज मंदिर

श्रीऐमा धर्मराज मंदिर

यह मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर जिले में स्थित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह हजारों वर्ष पुराना है।

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