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सर्दियों में रोमांचक अनुभव के लिए सैर करें उत्तराखंड के इन पंच प्रयागों की

जाने देव प्रयाग पंच प्रयागों के बारे में , जहां प्रकृति ने अपना अनमोल खजाना जी भर के लुटाया है, जहां आकर आप आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ काफी रोमांचक अनुभवों से खुद को तृप्त कर सकेंगे।

By NRIPENDRA BALMIKI

देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात उत्तराखंड लंबे समय से पर्यटन का केंद्र बिंदु रहा है। देश-विदेश से आने वाले सैलानी अपने विभिन्न क्रियाकलापों को नया आयाम देने के लिए भारत के इस पर्वतीय राज्य का चयन अवश्य करते हैं। शायद यही वजह है यहां साल दर साल पर्यटकों के आवागमन में निरंतर इजाफा हो रहा है। बता दें कि उत्तराखंड राज्य न सिर्फ अध्यात्म बल्कि रोमांच की दृष्टि से भी एक अलग वैश्विक पहचान बनाने में सफल हुआ है।

आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से देवभूमि के उन पंच प्रयागों की सैर कराने जा रहे हैं, जहां प्रकृति ने अपना अनमोल खजाना जी भर के लुटाया है, जहां आकर आप आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ काफी रोमांचक अनुभवों से खुद को तृप्त कर सकेंगे। उत्तराखंड के ये पंच प्रयाग भारत के उन दैविक स्थलों में शामिल हैं जिनका महत्व पौराणिक काल से चला आ रहा है। वैसे भारत में नदियों के संगम को पवित्रता की दृष्टि से देखा जाता है और ये सभी स्थल नदियों के संगम पर ही स्थित हैं।

pc : Tarkeshwar Rawat

देवप्रयाग : अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर स्थित

देवप्रयाग : अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर स्थित

pc : Fowler fowler

देवभूमि के पंच प्रयागों में देवप्रयाग का सबसे विशेष स्थान है, इसी स्थल पर आकर उत्तर भारत की दो दैविक नदियों का मिलन होता है. ये दो नदिया हैं अलकनंदा और भागीरथी। यहीं से ये दोनों नदी मिलकर पवित्र गंगा का स्वरूप धारण करती हैं. बता दें की भागीरथी के कोलाहल भरे आगमन और अलकनंदा के शांत रूप को देखकर इन्हे सास - बहु की संज्ञा प्राप्त है. मान्यता के अनुसार भगीरथ के ही कठोर प्रयासों से गंगा धरती पर आने के लिये राजी हुई थी, और यही वो स्थान था जहां गंगा सबसे पहले प्रकट हुई. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम लंका विजय के बाद लक्ष्मण और सीता सहित यहां तपस्या करने के लिए आए थे.

पर्यटकों के लिए विशेष महत्व

पर्यटन के लिहाज से देवप्रयाग एक प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, यहां आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ कई तरह की एडवेंचर एक्टिविटी का लुफ्त उठाया जा सकता है. मानसिक शांति के खोजी यहां आकर अपनी थकान पर विराम लगा सकते हैं. नेंचर लवर यहां नदी के आसपास खूबसूरत घने जंगलों में नाइट कैंप, ट्रेकिंग का मजा ले सकते हैं. बद्रीनाथ के रास्ते पर स्थित यह स्थल एक विशेष हॉल्ट के रूप में विख्यात है. यहां सैलानी विशेषकर एडवेंचर के शौकीन वाटर स्पोर्ट्स का आनंद ले सकते हैं. अलकनंदा नदी में रिवर राफ्टिंग पर्यटकों के मध्य अपने रोमांचक अनुभव के लिए विख्यात है. इसके साथ-साथ यहां कैंपेनिंग, क्लिफ जंपिंग, बंजी जंपिंग, फ्लाइंग फॉक्स, ट्रेकिंग, रॉक क्लाइबिंग आदी का भरपूर आनंद लिया जा सकता है

इस तरह करें प्रवेश

देवभूमि में स्थित देवप्रयाग दिल्ली - बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 पर स्थित है. दिल्ली से इसकी दूरी महज 295 किमी रह जाती है. अगर आप उत्तराखंड में प्रवेश कर चुके हैं तो ऋषिकेश से यह सिर्फ 73 किमी ही रह जाता है. ऋषिकेश से देवप्रयाग स्थल पहुचने के लिए आपको लगभग तीन घंटे सफर तय करना होगा. यहां आप बस यहा टैक्सी से आसानी से पहुंच सकते हैं. आपको यहां काफी किफायती रेट्स में होटल्स भी उपलब्ध हो जाएंगे. अगर आप यहां ज्यादा देर रूकना नहीं चाहते हैं तो आप श्रीनगर (उत्तराखंड का एक और पर्यटक स्थल) की तरफ रूख कर सकते हैं.

रूद्रप्रयाग : दैविक नदियों का मिलन

रूद्रप्रयाग : दैविक नदियों का मिलन

pc : Fowler fowler

बद्रीनाथ से होकर आने वाली अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम स्थल रुद्रप्रयाग है। इसी जगह आकर ही ये दो दैविक नदियां एक दूसरे में विलीन हो जाती हैं. इन दो नदियों के मिलन का दृश्य प्रर्यटकों को काफी रोमांचक अनुभव देता है. यह स्थल अपनी प्राकृतिक सुंदरता व आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव के 'रूद्र' नाम पर इस स्थान का नाम 'रूद्रप्रयाग' पड़ा। इसी स्थल पर नारद ने महाकाल की तपस्या की थी, तब भगवान शिव ने नारद को दर्शन दिए और वीणा वादन की शिक्षा दी। शिव के रौद्र रूप के बाद इस जगह का नाम रूपप्रयाग पड़ा।

पर्यटकों के लिए विशेष महत्व

पर्यटन के लिहाज से सर्दियों के मौसम में यहां प्राकृतिक खूबसूरती का भरपूर आनंद लिया जा सकता है. अलकनंदा - मंदाकिनी के संगम स्थल पर स्थित रूद्रनाथ मंदिर, जहां शाम की आरती काफी प्रसिद्ध है। अगर आप पहाड़ी ट्रेकिंग के साथ-साथ थोड़ा आध्यात्मिक अनुभव चाहते हैं तो यहां शाम की आरती का अनूठा अनुभव जरूर लें। यहां से लगभग तीन किमी की दूरी पर कोटेश्वर महादेव मंदिर भी है, अगर आप चाहें तो इस मंदिर की बनावट, सुंदरता और यहां कण-कण में व्यापत दैविक शांति का अनुभव ले सकते हैं. चूंकि इसी स्थल से होकर अलकनंदा नदी गुजरती है तो आप चाहे तो यहां रिवर राफ्टिंग का अनुभव ले सकते हैं. साथ ही फोटोग्राफी के शौकीन यहां आकर प्राकृतिक खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। नेचर लवर के साथ वनस्पति प्रेमी यहां अपनी मानसिक-बौद्धिक प्यास बुझा सकते हैं.

इस तरह करें प्रवेश

दिल्ली से आप ऋषिकेश के रास्ते इस दैविक स्थल तक पहुंच सकते हैं. ऋषिकेश से रूद्रप्रयाग के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से मिल जाएगी. यह स्थल ऋषिकेश से लगभग 140 किमी की दूरी पर स्थित है। इस स्थान से होकर आप केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिए भी जा सकते हैं. यहां ठहरने के लिए अच्छे और सस्ते दरों पर होटल्स-लॉज की व्यवस्था है. अगर आप अपने खुद के वाहनों से आए हैं तो यहां अच्छी पार्किंग की भी व्यवस्था की गई है.

कर्णप्रयाग : अलकनंदा और पिंडर नदी का संगम

कर्णप्रयाग : अलकनंदा और पिंडर नदी का संगम

pc : Arpita Nishesh

देवभूमि का खूबसूरत स्थल कर्णप्रयाग अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर स्थित है. पिंडर नदी बागेश्वर स्थित पिंडारी ग्लेशियर से होकर यहां तक पहुंचती है. बता दें कि इस स्थान का नाम महाभारत के सबसे बलशाली योद्धा दानवीर कर्ण के नाम पर पड़ा है. यह वह पौराणिक स्थल है जहां कुंती पुत्र कर्ण ने सूर्य की तपस्या की थी जिसके बाद उन्हें अभेद्य कवच, कुंडल और अक्षय धनुष प्राप्त हुए। इसलिए यहां स्नान के बाद दान करने की परंपरा है.


पर्यटकों के लिए विशेष महत्व

पर्यटन के लिहाज से देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग के बाद कर्णप्रयाग एक प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. यहां की आवोहवा में व्याप्त शांति किसी का भी मन मोह लेगी। नेचर लवर्स के लिए यह स्थल काफी मायने रखता है। दार्शनिक स्थलों के शौकीन देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग के बाद इस स्थान पर जरूर आना पसंद करते हैं. इस स्थान पर आप बेस्ट रिवर राफ्टिंग का आनंद ले सकते हैं। यहां से लगभग 170 किमी की दूरी पर ऋषिकेश स्थित है अगर आप चाहें तो यहां आकर भी विभिन्न वाटर स्पोर्ट्स का लुफ्त उठा सकते हैं। ऋषिकेश से होकर चंबा के रास्ते आप धनौल्टी नामक पर्यटक स्थल तक भी पहुंच सकते हैं। जहां सर्दियों में चारों तरफ जमी बर्फ आपको रोमांच से भर देगी।


इस तरह करें प्रवेश

उत्तराखंड के पंच प्रयागों में शामिल कर्णप्रयाग स्थल नेशनल हाईवे 58 पर स्थित है। यह स्थल बद्रीनाथ और माणा गांव को दिल्ली से जोड़ता है। कर्णप्रयाग के लिए आपको ऋषिकेश से लगभग 170 किमी का सफर तय करना होगा। यहां तक के लिए आपको पहाड़ी सड़क मार्गों का सहारा लेना होगा। कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ की दूरी महज 127 किमी तक की रह जाती है।

नंदप्रयाग : गढ़वाल का प्राचीन स्थल

नंदप्रयाग : गढ़वाल का प्राचीन स्थल

pc : Fowler fowler

उत्तराखंड के गढ़वाल में स्थित नंदप्रयाग प्राचीन तीर्थ स्थान के रूप में विख्यात है। यह वो स्थल है जहां नंदाकिनी नदी और अलकनंदा नदी का मिलन होता है। इन दो नदियों के दैविक संगम के लिए यह स्थान देश-विदेश से आने वाले सैलानियों के मध्य काफी प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा नंद ने पुत्र की प्राप्ति के लिये यहां तपस्या की थी। उनकी तपस्या के खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। इसी स्थान के पास भगवान कृष्ण का मंदिर है, जो गोपाल जी मंदिर के नाम से विख्यात है। इसके अलावा यहां चंडिका देवी का मंदिर है। यहां नवरात्रि के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

पर्यटकों के लिए विशेष महत्व

दार्शनिक, आध्यात्मिक और पर्यटन के लिहाज से इस देव स्थल की अपनी अलग पहचान है। भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए यहां देश-विदेश से आने वाले सैलानियों का तांता बना रहता है। मानसिक शांति और बौद्धिक विस्तार के खोजी यहां आकर अपने जीवन के खूबसूरत पलों में एक और अध्याय जोड़ सकते हैं। प्राकृतिक सुंदरता के प्रेमी यहां भरपूर आनंद ले सकते हैं। साथ ही दुर्लभ वनस्पति के खोजी अपने क्रियाकलापों को नया आयाम दे सकते हैं। अलकनंदा नदी के दोनों तरफ फैले घने पहाड़ी जंगल टैकिंग, नाइट कैंपेनिंग के लिए विख्यात हैं। यहां आकर आकर आप रिवर रॉफ्टिंग का अनोखा अनुभव ले सकते हैं। साथ ही परिवार के साथ फुर्सत के पल बिता सकते हैं। यहां आप रॉक क्लाइबिंग का रोमांच भरा अनुभव भी ले सकते हैं। लेकिन यह आप तब ही कर सकते हैं जब आपको इस संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त हो। नंदप्रयाग से निकलकर आप रूपकुंड में भी बेहतर ट्रेकिंग का मजा ले सकते हैं।

इस तरह करें प्रवेश

कर्णप्रयाग के दर्शन के बाद आप सीधा नंदप्रयाग में प्रवेश कर सकते हैं जिसके लिए आपको मात्र 21 किमी का सफर तय करना होगा। बता दें कि यह स्थल उत्तराखंड के चमोली जिले और कर्णप्रयाग के मध्य स्थित है। कर्णप्रयाग से नंदप्रयाग की दूरी केवल 21 किमी है। बाकी प्रयागों की भांति नंदप्रयाग भी बद्रीनाथ के रास्ते में ही पड़ता है, जिसके लिए आपको अलग से किसी और रास्ते की तरफ रूख करने की आवश्यकता नहीं। अगर आप कर्णप्रयाग में ज्यादा देर रूकना नहीं चाहते हैं तो आप रात्रि विश्राम चमोली या जोशीमठ में कर सकते हैं। जोशीमठ से कर्णप्रयाग की दूरी मात्र 69 किमी है। आपको जोशीमठ में रूकने के लिये किफायती होटल्स और लॉज आसानी से मिल जाएंगे। साथ ही यहां बेहतर पार्किंग की भी व्यवस्था है।

विष्णुप्रयाग : अलकनंदा और विष्णुगंगा नदी का मिलन

विष्णुप्रयाग : अलकनंदा और विष्णुगंगा नदी का मिलन

pc : Shmilyshy

देवभूमि के पंच प्रयागों में आखरी प्रयाग विष्णु प्रयाग है जो भोलेनाथ के दरबार बद्रीनाथ से बिलकुल नजदीक है। यह भी एक नदियों का संगम स्थल है, जहां अलकनंदा और विष्णुगंगा नदी का मिलन होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। इस स्थल पर भगवान विष्णु का मंदिर भी है। जिसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था।

पर्यटकों के लिए विशेष महत्व

इस संगम स्थल में नदियों का वेग तेज हो जाता है, तो यहां स्नान करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है। साथ ही यहां रिवर रॉफ्टिंग में भी थोड़ी कठिनाई आ सकती है, पर प्रोफेशनल तैराकों की मदद से रॉफ्टिंग का भी रोमांच भरा अनुभव लिया जा सकता है, क्योंकि यहां नदियों मिलकर तेज वेग पैदा करती हैं। प्राकृतिक सुंदरता के लिहाज से नदियों के कोलाहल के बीच दोनों तरफ घने जंगलों को निहारना अपने आप में काफी मनोरम है। यहां भी बेस्ट ट्रैकिंग , रिवर क्लाइबिंग का रोमांचक अनुभव लिया जा सकता है।


इस तरह करें प्रवेश

ऋषिकेश से विष्णुप्रयाग की दूरी लगभग 272 किमी है। यह स्थल भी बद्रीनाथ के रास्ते पर ही स्थित है। यहां पहुंचने के लिए आपको पहाड़ी घुमावदार रास्तों का सहारा लेना पडे़गा, जिसके लिए ऋषिकेश से बस या टैक्सी आसानी से मिल जाएंगी। बद्रीनाथ के दर्शन के बाद आप यहां आराम करने के लिए रूक सकते हैं साथ ही प्राकृतिक सुदरता का भी आनंद भी ले सकते हैं। यहां आपको किफायती होटल्स या लॉज आसानी से मिल जाएंगे।

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