पर्यटन किसी एक परिभाषा से बंधा नहीं है, समय, स्थान, पसंद के अनुसार इसके मायने बदलते हैं। गर्मियों के दौरान सैलानी ठंडक भरे स्थल और शीतकाल में इसके विपरित स्थानों की सैर करना पसंद करते हैं। जबकी कुछ पर्यटक किसी खास उद्देश्य से यात्रा करते हैं, वो जगह बर्फीली पहाड़ी भी हो सकती है या फिर किसी गर्म स्थान का बीहड़ ।
कुछ पर्यटक मानसिक-आत्मिक शांति के लिए प्रकृति के करीब हरे-भरे गंतव्य की ओर रूख करते हैं तो कुछ शहरों से दूर खदान जैसे इलाकों में अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं। साधारण शब्दों में अलग-अलग शौक व पसंद के हिसाब से स्थलों का चुनाव पर्यटक करते हैं। कुछ ऐसा ही स्थल है छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का किरंदुल। राज्य का पठारी क्षेत्र किरंदुल किसी जमाने में एक रियासत रह चुका है।
समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के साथ यह अज्ञात स्थल कुछ अलग अनुभव प्राप्त करने के लिए एक आदर्श गंतव्य है। किरंदुल मुख्य तौर पर अपनी लौह अयस्क खानों की वजह से ज्यादा लोकप्रिय है। इस लेख के माध्यम से जानिए यह शहर आपका किस प्रकार मनोरंजन कर सकता है।
दांतेश्वरी मंदिर
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किरंदुल भ्रमण की शुरूआत आप यहां के चुनिंदा धार्मिक स्थानों से कर सकते हैं। आप यहां माता दांतेश्वरी के दर्शन कर सकते हैं। यहां के स्थानीय निवासियों का मुख्य आस्था का केंद्र दांतेश्वरी मंदिर देवी सती को समर्पित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। किरंदुल से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर पौराणिक महत्व रखता है। पौराणिक किवदंतियों को अनुसार भगवान शिव के तांडव के दौरान सती का एक दांत इसी स्थान पर गिर गया था, इसलिए इस मंदिर का नाम दांतेश्वरी पड़ा।
इस मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में चालुक्य राजाओं द्वारा किया गया था। यह मंदिर प्राचीन वास्तुकला कौशल को चित्रित करता है। मंदिर जो चार खंडों में बांटा गया है। मंदिर के मुख्य मंडप में देवी दांतेश्वरी विराजमान हैं।
बत्तीसा मंदिर
माता दांतेश्वरी के दर्शन के बाद आप आप भगवान शिव को समर्पित बत्तीसा मंदिर में जाकर दैवीय वातावरण का स्पर्श कर सकते हैं। यह मंदिर आस्था के साथ-साथ अपनी आकर्षक वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है। सिमेट्रिक डिजाइन और मंदिर की खूबसूरती इस शहर की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत का जीता जागता सबूत है।
मंदिर में दो आकर्षक मंडर भगवान शिव को समर्पित हैं। उनमें से एक में एक बड़ा शिवलिंग है। अपनी खासियतों की वजह से यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धालुओं द्वारा दौरा किया जाता है बल्कि स्थापत्य गौरव को देखने के लिए यहां भारी संख्या में सैलानी भी आते हैं।
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बैलाडीला आयरन ओर
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धार्मिक स्थानों से अलग आप पर्यटन का कुछ अलग अनुभव पाने के लिए बैलाडीला की लौह अस्यक खदानों की सैर का रोमांचक आनंद उठा सकते हैं। दक्कन पठार की बैलाडीला पहाड़ियों अपनी खानों के लिए काफी ज्यादा लोकप्रिय हैं। लगभग 40 किमी के क्षेत्र में फैला10 किमी चौड़ा बैलाडिला लौह अयस्क क्षेत्र देश भर के पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस क्षेत्र में 11200 मिलियन प्रीमियम ग्रेड लौह अयस्क है।
इसलिए यहां अतबक वर्तमान तकनीकी और मशीनरी से तीन खानों की खुदाई की जा चुकी है। यह खदाने काफी साहसिक एडवेंचर का एक विकल्प हो सकती है। अगर आप सख्त दिल के हैं तो प्रसाशन की मदद से इन खानों के अंधरों का अनुभव ले सकते हैं।
कदपाल टैलिंग बांध
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आप किरंदुल में कदपाल टैलिंग बांध की सैर प्लान बना सकते हैं। जो लौह अयस्क के अपरिवर्तित अवशेषों पर बनाया गया है। टैलिंग बाद कुछ खास प्रकार के बांध होते हैं जो आमतौर पर खनन परिचालनों के उपज को स्टोर करने के लिए उपयोग किया जाता है।
कदपाल टैलिंग बांध मुख्य रूप से सिंचाई और बिजली पैदा करने के लिए बनाया गया है। कुछ अलग अनुभव पाने के लिए आप इस खास स्थान के भ्रमण का प्लान बना सकते हैं।
किरन्दुल आयरन ओर माइंस
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उपरोक्त स्थानों के अलावा आप किरन्दुल आयरन ओर माइंस की सैर का भी प्लान बना सकते हैं। लौह अयस्क की यह खान बेहतर गुणवत्ता वाले लौह का एक विशाल भंडार है, जिसे भारत के विभिन्न कारखानों तक पहुंचाया जाता है।
भारतीय उद्योग जगत को कच्चे माल की आपूर्ति कराने वाली ये खदाने पर्यटन का खास विकल्प बन सकती है, जहां जाकर आप रियल एडवेंचर और अपने ज्ञान का विस्तार कर सकते हैं। इस सब के अलावा आप किरन्दुल में अन्य स्थानों के भ्रमण का प्लान भी बना सकते हैं।
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