आज गुजरात अपनी संपन्न धरोहरों, अनूठी सभ्यता और संस्कृति के कारण विश्व मानचित्र में एक खासी पहचान रखता है। बात जब वर्तमान में गुजरात के पर्यटन की हो तो प्रायः ये देखा गया है कि ये राज्य लगातार देश के अलावा दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। भारत के पश्चिम में बसा राज्य गुजरात अपनी स्थलाकृतिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। तो इसी क्रम में आज हम आपको अवगत करा रहे हैं गुजरात के एक ऐसे स्थान से जिसे अभी हाल में ही यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है।
जी हां हम बात कर रहे हैं गुजरात के पाटन के अंतर्गत आने वाले रानी की वाव की। रानी की वाव एक सीढ़ी युक्त खूबसूरत कुआं है जिसका निर्माण रानी उदयामती द्वारा अपने पति राजा भीमदेव के प्रेम स्मृति में 1063 में कराया गया था। ज्ञात हो कि रानी की वव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है।
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यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। यह एक काफी बड़ी और जटिल सरंचना वाली बावली है जिसमें शिल्पकला से सजी सात मंजिला सुन्दर पट्टियां है जो मारू-गुर्जरा शैली की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती है। भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण आने वाली बाढ़ और लुप्त हुई सरस्वती नदी के कारण यह बहुमूल्य धरोहर तकरीबन सात दशकों तक गाद की परतों तले दबी रही।
रानी की वाव की सबसे बड़ी ख़ास बात ये है कि यदि आप अभी भी वाव के खंभे को देखें तो उनमें आपको सोलंकी वंश और उनकी वास्तुकला की झलक देखने को मिलेगी। आपको बताते चलें कि वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
रानी की वाव
रानी की वाव एक सीढ़ी युक्त खूबसूरत कुआं है जिसका निर्माण रानी उदयामती द्वारा अपने पति राजा भीमदेव के प्रेम स्मृति में 1063 में कराया गया था।
फोटो कर्टसी - गुजरात टूरिज्म
रानी की वाव
रानी की वव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है।
फोटो कर्टसी - आज़ाद सैय्यद
रानी की वाव
यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। यह एक काफी बड़ी और जटिल सरंचना वाली बावली है जिसमें शिल्पकला से सजी सात मंजिला सुन्दर पट्टियां है जो मारू-गुर्जरा शैली की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती है। भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण आने वाली बाढ़ और लुप्त हुई सरस्वती नदी के कारण यह बहुमूल्य धरोहर तकरीबन सात दशकों तक गाद की परतों तले दबी रही।
फोटो कर्टसी - Digishagautam
रानी की वाव
रानी की वाव की सबसे बड़ी ख़ास बात ये है कि यदि आप अभी भी वाव के खंभे को देखें तो उनमें आपको सोलंकी वंश और उनकी वास्तुकला की झलक देखने को मिलेगी।
फोटो कर्टसी - Ashok Sharma
रानी की वाव
आपको बताते चलें कि वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
फोटो कर्टसी - Bernard Gagnon
खुलने का समय और फीस
इस बावली को आम जनता के लिए सुबह 8 से शाम 6 बजे तक खोला जाता है। भारतियों के लिए इस बावली का प्रवेश शुल्क 5 रुपए हैं वहीं विदेशी पर्यटकों को इस स्थान को घूमने के लिए 2 डॉलर देने होते हैं।
फोटो कर्टसी - Bernard Gagnon
कैसे जाएं रानी की वाव
सड़क द्वारा
अहमदाबाद से पाटन की दूरी 3.5 घंटे की है जबकि मेहसाणा से पाटन 1 घंटे की दूरी पर है आप बसों के माध्यम से आसानी से यहां पहुँच सकते हैं। इसके अलावा आप कैब या जीपों के माध्यम से भी इस स्थान की यात्रा कर सकते हैं।
फोटो कर्टसी - Hardik Patel
कैसे जाएं रानी की वाव
रेल द्वारा
पाटन में कोई भी रेलवे स्टेशन नहीं है यहां आने के लिए आपको पहले मेहसाणा आना होगा। मेहसाणा आने के बाद आप जीप और बसों के जरिये यहां पहुँच सकते हैं।
फोटो कर्टसी - Vikram Ural M.R.
फोटो कर्टसी
कैसे जाएं रानी की वाव
फ्लाइट द्वारा
पाटन तक पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद में है।
फोटो कर्टसी - Hardik Patel
रानी की वाव आने का सबसे अच्छा समय
पाटन के अंतर्गत आने वाले रानी की वाव की यात्रा का सबसे अच्छा समय अगस्त से दिसम्बर के बीच का है इस दौरान यहां का मौसम बहुत अच्छा रहता है।
फोटो कर्टसी - Parag Sane