भारत में कई खूबसूरत मंदिर है, जो पहाड़ों, पर्वतों के ऊपर या गुफाओं के अंदर, समुद्रतटों के ऊपर या झरनों के नज़दीक स्थित हैं। इसके अलावा भारत में कुछ ऐसे भी मंदिर हैं, जहां से प्रकृति को बेहद करीब से देखा जा सकता है।
गुजरात के भावनगर में स्थित निष्कलंक महादेव मंदिर समुद्र में ऊंची लहरों और तूफान के दौरान जलमग्न हो जाता है और पानी के प्रवाह के कम होने पर ही दिखाई देता है। मान्यता है कि इस मंदिर में आकर भक्तों और श्रद्धालुओं के सारे पाप धुल जाते हैं। कहा जाता है कि पांडवों को अपने भाईयों की हत्या के पाप से यहीं छुटकारा मिला था।
गायब हो तमाशा दिखाता गुजरात का महादेव मंदिर!
ये मंदिर समुद्र के अंदर 2 किमी की गहराई जितना है और यहां पर पानी का स्तर कम होने पर ही पहुंचा जा सकता है। अधिकतर समय के लिए मंदिर समुद्र में ही जलमग्न रहता है और बेहद कम समय के लिए ही दिखाई देता है। मंदिर के शिखर पर एक लंबा ध्वज लगा है जो इसकी पहचान है। पूर्णिमा और अमावस्या के दिन समुद्र की लहरें ज्यादा तेज हो जाती हैं और इन दिनों पर श्रद्धालु ज्वार के कम होने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं।
इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद करवाया था। ज्वार से बचाने के लिए मंदिर की विशेष देखभाल की जाती है। ये मंदिर आज भी आधुनिक इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए रहस्य बना हुआ है।
पांडवों से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों को मारकर विजयी होने के बाद पांडवों को अपने संबंधियों की हत्या के पाप का बोध हुआ। अपने पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने श्रीकृष्ण से बात की। श्रीकृष्ण ने उन्हें एक काले रंग का झंडा और काली गाय दी और कहा कि पथ पर जिस भी जगह इन दोनों चीज़ों का रंग काले से सफेद हो जाए वहीं तुम सबको अपने पाप से मुक्ति मिलेगी। श्रीकृष्ण ने इससे पूर्व भगवान शिव से भी क्षमा मांगने की सलाह दी।
हाथ में काले रंग का ध्वज लेकर पांडव उस काली गाय के पीछे-पीछे चल पड़े। कई सालों तक वो अनेक स्थलों पर विचरण करते रहे लेकिन ध्वज और गाय के रंग में कोई बदलाव नहीं आया। फिर वह कोलियाक तट पर पहुंचे जहां गाय और ध्वज का रंग सफेद हो गया और यहीं पांडवों ने भगवान शिव को ध्यान कर अपने पाप से मुक्ति पाने की प्रार्थना की।
पांचों पांडवों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव पांच लिंगम के रूप में प्रकट हुए। ये सभी 5 लिंगम स्वयंभू थे जिनकी पांचों पांडवों द्वारा पूजा की गई और इसे निष्कलंक महादेव मंदिर नाम दिया गया।
निष्कलंक का अर्थ होता है जिस पर कोई कलंक ना हो, जो स्वच्छ और निर्दोष हो। पांडवों ने इन पांचों लिंगम को अमावस्या की रात को चौकोर स्थल पर स्थापित किया था। पांचो लिंगम के साथ नंदी की मूर्ति भी थी।
मंदिर के दर्शन
मंदिर के द्वार भक्तों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। हालांकि मंदिर में प्रवेश पानी का स्तर कम होने पर ही कर सकते हैं। रोज़ पानी की लहरें तेज और मंद होती रहती हैं और तट पर ज्वार के आयाम सूर्य और चंद्रमा के संरेखण से प्रभावित होता है। अमावस्या और पूर्णिमा की रात को जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा तीनों एक ही रेखा में होते हैं तब उच्च और मंद ज्वार दानों ही अपनी तीव्र गति पर होते हैं। इस समय मंदिर के दर्शन करना सबसे बेहतर रहता है।