सबसे पहले बात करते हैं कि कुमाऊं शब्द आया कहां से। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान विष्णु के कछुए के अवतार से ये नाम लिया गया है। ये कुरमांचल या कुर्मावतार की भूमि से संबंधित है।
इसके क्षेत्र पर नज़र डालें तो ये गंगा के मैदानों के उत्तरी छोर तक फैला हुआ है और तिब्बत के रास्ते तक जाता है। कुमाऊं में बर्फ से ढकी पहाडियां, चमकते पानी की झीलें और कई तरह के वनस्पति और जीव देखने को मिलते हैं।
कुमाऊं, उत्तर-भारतीय राज्य उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) में स्थित है, जो पूर्वी क्षेत्र में काली नदी से नेपाल से अलग होता है। इसकी उत्तरी पृष्ठभूमि में पश्चिमी तिब्बत का कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र दिखता है जबकि गढ़वाल क्षेत्र के चमोली और पौड़ी जिले से इसकी सीमा जुड़ती है। दक्षिणी क्षेत्र में कुमाऊं बरेली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर और पीलीभीत जिलों से घिरा हुआ है।
कुमाऊं का इतिहास
काफी लंबे समय से कुमाऊं पर्यटकों से गुलज़ार रहता है। इस स्थान पर पाषाण युग की बस्तियों के अस्तित्व का प्रमाण मिलता है लखु उद्यार पर पत्थर से बने आश्रय शामिल हैं। यहां पाई गई पेंटिंग देखकर आप खुद को मेसोलिथिक युग में महसूस करेंगे। अल्मोड़ा के ठीक विपरीत कतरमल के मंदिर में आपको अध्यात्मिक वातावरण की अनुभूति होगी। यहां पर स्थित सूर्य मंदिर 900 साल से भी पुराना है। इसे कत्युरी राजवंश के पतन के दौरान बनवाया था।
क्या आप जानते हैं कि नक्काशीदार दरवाजों और पैनलों को दिल्ली के संग्रहालय में स्थानांतरित किया जाना था? इस काम में पूरी एहतियात बरतनी थी क्योंकि 10वीं सदी के देवता की मूर्ति गायब हो गई थी। कुछ शताब्दियों पहले पिथौरागढ़ के चंद सबसे लोकप्रिय राजवंश बन गए थे।
जगेश्वर का शानदार मंदिर परिसर में एक सौ चौंसठ मंदिरों का समागम है जिसे दो शताब्दियों में चंद शासकों द्वारा भव्य तरीके से बनवाया गया था। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के आसपास देवदार के घने जंगल हैं और मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है।
कुमाऊं कैसे पहुंचे
वायु मार्ग द्वारा: इसका निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (नैनीताल) में है। गर्मियों के मौसम में नियमित फ्लाइट्स यहां आती हैं। पिथौरागढ़ खुले दिल से आपका स्वागत करता है।
रेल मार्ग द्वारा: नैनीताल और अल्मोड़ा के लिए निकटतम रेलवे काठगोदाम रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग द्वारा: कुमाऊं सड़क के माध्यम से कई महत्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हुआ है।
कुमाऊं घाटी में ट्रैकिंग
अगर आपको एडवेंचर का शौक है तो आपको अपने जीवन में एक बार तो कुमाऊं घाटी आना चाहिए। कुमाऊं में ट्रैकर्स के लिए तीन अलग ट्रैकिंग क्षेत्र हैं। नैनीताल जिले के साथ-साथ झील वाले हिस्से में हिमालयी क्षेत्र, अल्मोडा, रानीखेत, कौसानी, चौकरी के पहाड़ और पिथौरागढ़ के साथ-साथ कुमाऊं पहाडियों की हिमालयी ग्लेशियर के रास्तों पर ट्रैकिंग का मज़ा ले सकते हैं।
स्कूली बच्चों और आसान ट्रैकिंग के लिए नैनीताल ट्रैक ठीक है। इसमें ट्रैकिंग का रास्ता भी आसान है और नैनीताल में मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध हैं जिससे आपका ट्रैकिंग का अनुभव और भी ज्यादा सुखद बन जाएगा।
हालांकि, अगर आपको थोड़ा वाइल्ड ट्रैकिंग का मज़ा लेना चाहते हैं तो आपको अल्मोड़ा, रानीखेत, कौसानी, पिथौरागढ़ और चौकोरी के पहाड़ों पर जाना चाहिए।
कुमाऊ पहाडियों के हिमालयी ग्लेशियर क्षेत्र में आपको रास्ता थोड़ा ऊबड-खाबड और मुश्किल मिलेगा लेकिन यहां की नदियां और बुरांस के जंगल आपको तरोताजा महसूस करवाएंगे। कुमाऊं के इस क्षेत्र में आप रॉक क्लाइंबिंग, पैराग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग और माउंटेनियरिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं।
कुमाऊं के प्रमुख पर्यटन स्थल
नैनीताल
कुमाऊं पर्वत में 1938 मीटर की ऊंचाई पर बसा नैनीताल बहुत ही खूबसूरत है। उत्तर प्रदेश की राजधानी से गर्मियों में छुट्टियां मनाने लोग यहीं आते हैं। पर्यटकों को यहां सबसे ज्यादा नैनी झील पसंद आती है। कहा जाता है कि हल्के हरे रंग के पानी से भरी यह झील भगवान शिव की पत्नी के चक्षु का प्रतीक है।
इस झील में आप बोटिंग का मज़ा भी ले सकते हैं। गर्मी और शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से राहत पाने के लिए बड़ी मात्रा में पर्यटक नैनीताल आते हैं। यहां चेयर व्यू से आप 2270 मीटर ऊंचा स्नो व्यू देख सकते हैं। समुद्रतट से 7817 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नंदा देवी के दर्शन भी आप कर सकते हैं।
तलीतल से दक्षिण की ओर 3 किमी की दूरी पर हनुमान मंदिर भी स्थित है जहां से पूरी पहाड़ी का बड़ा ही खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है।
रानीखेत
यहां पर आप प्रसिद्ध झूला देवी मंदिर के दर्शन कर सकते हैं और इससे 3 किमी दूर चौगतिया में बागान स्थित हैं। 1829 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस खूबसूरत हिल स्टेशन पर आकर पर्यटकों का मन प्रसन्नता से भर जाता है। सफेद हिमालय और नंदा देवी इस जगह को खास बनाते हैं।
ये बहुत ही महत्वपूर्ण सैनिक शहर है और यहां पर कुमाऊं के रेजिमेंट का मुख्यालय भी है। इस जगह आकर पर्यटकों को शहर की भागदौड़ से सच में राहत मिलती है और सफेद बर्फ से ढकी हिमालय की पहाडियों में आकर पर्यटकों को आजाद पंछी जैसा महसूस होता है।
अल्मोड़ा
ये उन चुनिंदा हिल स्टेशनों में से एक है जिसे ब्रिटिशों ने नहीं बनाया था और इस वजह से इस जगह को पर्यटक सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। 1650 मीटर की ऊंचाई पर बसा अल्मोडा कभी कुमाऊं के चंद शासकों का राजधानी शहर हुआ करता था। ये 400 साल पुरानी बात है।
इस जगह पर आकर पर्यटकों छुट्टियां बिताना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि ये शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से बिलकुल अलग है।
पिथौरागढ़
यह स्थान निस्संदेह 'लघु कश्मीर' है। यह उत्तराखंड के सबसे पूर्वी पहाड़ी जंक्शन में स्थित है। एक छोटी घाटी में फैला पिथौरागढ़ 5 किमी लंबा है लेकिन यह केवल 2 किमी चौड़ा है। कुमाऊं के चंद शासकों का संबंध पिथौरागढ़ से भी है।
पिथौरागढ़ एक विशिष्ट स्थल है और इसे 'सौर घाटी' के रूप में जाना जाता है। समुद्र तल से लगभग 1650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पिथौरागढ़ से त्रिशूल, नंदा देवी, पंचचुली समूह और यहां तक कि नेपाल के अप्पी पर्वत का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। नेपाल का अप्पी पर्वत चांडक हिल से लगभग 2000 मीटर की दूरी पर है।
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क
यह भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान है, जो हिमालय की गोद में बसा है। 520 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला ये पार्क दिल्ली से लगभग 290 कि.मी. दूर है। इस पूरे पार्क में रामगंगा नदी बहती है।
इस पार्क में सबसे ज्यादा बाघों की आबादी पाई जाती है। इसमें तेंदुए, हाथी, भालू और जंगली सांभर जैसे मांसाहारी पशु भी पाए जाते हैं। घड़ियाल और दलदली मगरमच्छ को रामगंगा के किनारे देख सकते हैं।
आपको राष्ट्रीय उद्यान के अंदरूनी हिस्सों में मछली पकड़ने की अनुमति नहीं मिलेगी। यहां पर अद्भुत महसीर अधिक संख्या में मिलेंगे। इसके अलावा एलीफैंट सफारी, जीप सफारी और वॉचटावर का आनंद भी आप यहां ले सकते हैं।
यहां आने का सबसे सही समय नवंबर से मई के बीच रहता है। जून के मध्य से मध्य नवंबर तक यहां आना बिलकुल सही नहीं रहता है।
रेलवे मार्ग के लिए यहां से रामनगर रेलवे स्टेशन लगभग 51 किमी दूर है और निकटतम हवाई अड्डा आपको पंतनगर (110 किमी) पड़ेगा।
इस लेख को पढ़ने के बाद आपका मन भी कुमाऊं घाटी के बर्फीले पर्वत और सुंदर नज़ारों को देखने का कर रहा होगा।