रुमटेक मठ जिसे धर्मचक्र केंद्र के नाम से भी जाना जाता है, भारत का सबसे बड़ा बौद्धिक मठ है, जिसकी यात्रा पर आप एक बार ज़रूर ही जाएँ। तीर्थस्थान होने के साथ साथ, यह स्थान समुद्री तल से 5000 फीट पहाड़ पर गंगटोक के तरफ फेस करके बसा है। इसके खूबसूरत नज़ारों का अनुभव आपके लिए अद्भुत होगा।
इस मठ के अस्तित्व का इतिहास काफ़ी दिलचस्प है। चीन द्वारा तिब्बत को जीत लेने के बाद, 16 वें कर्मापा(कर्मा कग्यु वंश के प्रधान) तिब्बत से भाग कर भारत आ गये। पूरे भारत में उन्होंने रुमटेक को ही अपने निर्वासन के लिए चुना।
रुमटेक मठ
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यह मठ पहले ही 9वें कर्मापा द्वारा सन् 1740 में बनवाया गया था जो ध्वस्त होने से पहले कर्मा कग्यु वंश का मुख्य स्थान हुआ करता था। बाद में 16वें कर्मापा के यहाँ आने के बाद उनके आदेशानुसार सन् 1961 में फिर से इसे बनवाया गया। सन् 1966 में यह पूरा मठ अच्छे तरीके से बन कर तैयार हो गया और यह तब से तिबत्तन बौद्धिकों के मुख्य स्थानों में से एक स्थान बन गया। इस मठ के फिर से बनने के साथ कई तिब्बत के बौद्धिक गुरु यहीं सिक्किम में आकर बस गये।
मठ की तिब्बतन आर्किटेक्चरल स्टाइल
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एक सोने का स्तूप मठ के अंदर ही स्थापित है जिसमें 16वें कर्मापा के अवशेष हैं। इस पूरे मठ के परिसर में एक तीर्थ मंदिर, एक मुख्य मठ, एक रिट्रीट केंद्र, एक संरक्षक मंदिर, भक्तीनों के लिए धर्मशाला, मठवासियों के लिए विद्यापीठ, और कुछ प्रतिष्ठानों के लिए कई संस्थाएँ भी हैं।
मठ के प्रार्थना चक्र
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यह मठ, तिब्बत के ही मठों के आर्किटेक्चरल स्टाइल में बनाया गया है। ठेठ तिबत्तन आर्किटेक्चर के स्टाइल में, इंटीरियर्स की रचनाओं में भित्तिचित्र, फ्रेस्कॉस, हस्तचित्रकारी, और मूर्तियों की कलाकारी होती है जिसमें वे अपनी संस्कृति और धर्म पर ज़्यादा ज़ोर डालते हैं।
मठ के भक्त
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मुख्य मंदिर, मठ के मुख्य इमारत में है जो चार मंज़िलों की रचना है जिसमें एक स्वर्ण मूर्ति स्थापित है जो इसके छत की शोभा बढ़ाती है। इस मंदिर को इस तरह बनाया गया है जो बुद्धा के 5 परिवारों को दर्शाता है- अमिथाब(चक्र), वैरोचना(घंटी), अमोघसिद्धी(कलश), अक्षोब्या और रत्नसम्भव(रत्न)।
मठ के अंदर लगा हस्तचित्र
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यह रचना, ब्रह्मांड के संरक्षकों के जीवन आकर छवियों द्वारा संरक्षित की जा रही है, जो हैं- विरुदका(दक्षिण की ओर), विरूपक्ष(पूर्व की ओर), धृतराष्ट्र(पूर्व की ओर) और वैशरावण(उत्तर की ओर)।
मठ के अंदर स्थापित भगवान बुद्धा के प्रतिमा
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मठ की यह पूरी रचना हरे भरे पहाड़ों से घिरी हुई है और यहाँ आकर आप सारी मोहमाया से दूर सुकून की साँस ले सकते हैं। अपनी सिक्किम की यात्रा में इस शांत भूमि की यात्रा पर ज़रूर जाएँ और ताज़ा हवा में साँस लेकर इसकी अंदर की यात्रा कर शांत सुंदरता का मनोरम अनुभव लें।
पता: गंगटोक से 24 किलोमीटर की दूरी पर, सुर्फ़ू लबरंग पाल कर्माये संघ धुचे, धर्म चक्र केंद्र, सिक्किम- 737135
यात्रा का सही समय: अक्तूबर से दिसंबर
समय: सोमवार से शुक्रवार, सुबह 9 बजे से शाम के 6 बजे तक
सार्वजनिक अवकाश: शनिवार और रविवार
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