तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के नागरकोइल शहर में स्थित, 'नागराज मंदिर' सांपों के राजा वासुकी को समर्पित है। इस मंदिर के मुख्य देवता पांच मुख वाले नागराज भगवान हैं। यह मंदिर राज्य के चुनिंदा सबसे प्रसिद्ध और अद्भुत मंदिरों में गिना जाता है। भक्तों का जमावड़ा यहां रोज देखा जा सकता है, खासकर विशेष अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है।
रविवार के दिन मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसके अंतर्गत नाग देवता को दूध और हल्दी चढ़ाई जाती है। तमिल महीने अनवाणी (अगस्त और सितंबर) के दौरान नाग दोष से पीड़ित लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस बीच 12 दिनों तक अलग-अलग धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इस खास लेख में जानिए धार्मिक यात्रा के लिए यह मंदिर आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है, साथ में जानिए इस मंदिर से जुड़े चौका देने वाले तथ्यों के बारे में।
नागों की जीभ कटने का राज
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हिन्दू धर्म के अनुसार नागों को कश्यप और कद्रू की संतान कहा गया है। हिंदू धर्म के प्रमुख नाग देवी-देवता हैं मनसा, शेषनाग और वासुकी। माना जाता है कि केरल के नायर वंश की उत्पत्ति नाग राजवंश में ही हुई थी। पौराणिक किवदंतियों के अनुसार नाग अपने साथ अमृत साथ लेकर चलते हैं। माना जाता है कि गरुड़ एक बार उनसे अमृत लेकर आया था, जिसने एक पात्र में अमृत को भर जमीन पर रख दिया था, पर यह अमृत पात्र इंद्र द्वारा ले लिया गया था।
लेकिन अमृत की कुछ बुंदे जमीन पर रह गईं थी। उन बुंदों को नाग में चाट लिया था, लेकिन ऐसा करने पर उनकी जीभ कट गई थी, तबसे नागों की जीभ दो भागों में अलग दिखाई देती है।
कौन हैं अष्ठ नाग ?
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आपने अष्ट नाग के बारे में तो जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है किन्हें अष्ठ नाग कहा जाता है? अष्ट नाग आठ सम्मानित नागाओं के सामुहिक रूप को कहा जाता है, जिनमें शेषनाग, वासुकी, तक्षक नाग, कर्कोटक, शंखपाल, गुलिक,पद्म नाग और महापाप्मा शामिल हैं।
नागों के रंगों के बारे में कहा जाता है कि वासुकी का रंग मोती जैसा सफेद होता है, तक्षक का लाल, कर्कोटक तीन सफेद धारियों(फन) के साथ काला, पद्म का सफेद, मूंगा और गुलाबी, महापाप्मा ट्राइडेंट मार्क(फन) के साथ सफेद, शंखपाल, सफेद लकीरों(फन) के साथ पीला और गुलिक क्रिसेंट मार्क(फन) के साथ लाल है।
संक्षिप्त इतिहास
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यह एक प्राचीन मंदिर है, लेकिन यह कौन से काल खंड से संबंध रखता है, इसकी जानकारी प्राप्त नहीं है। इस मंदिर से जुड़े अभी तक कोई सटीक प्रमाण इतिहासकारों का नहीं मिल पाएं हैं जो इसे सटीक कालक्रम में व्यवस्थित कर सकें।
लेकिन महर्षि वाल्मीकि की रामायण में कन्याकुमारी के महेंद्रगिरी पर्वत को नागा के निवास के रूप में उल्लेखित किया गया है। इससे पता लगाया जा सकता है कि यह मंदिर पौराणिक काल से संबंध रखता है।
मंदिर के जुड़ी परंपरा
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इस मंदिर से जुड़ी एक लोक कथा भी प्रचलित है, माना जाता है कि एक बार गांव की एक लड़की उस इलाके में घास काट रही थी उसने अचानक अपनी दरांती से खून बहता देखा। वह जल्दी से गांव गई और ग्रामीणों को उस घटना के बारे में बताया, गांव वालों ने उस स्थान का निरक्षण किया तो पता चला कि लड़की की दरांती पांच सिर वाले सर्प को जा लगी थी, जिससे खुन निकल आया था।
गांवों वालों के सामूहिक सहयोग से उस स्थान को साफ किया गया और वहां उस पांच सिर वाले सर्प को समर्पित एक मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस घटना और मंदिर के निर्माण के बाद यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते हैं।
कैसे करें प्रवेश
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नागराज मंदिर कन्याकुमारी जिले के नागरकोइल शहर में स्थित है, जहां आप परिवहन के तीनों साधनों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप नागरकोइल रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों से नागरकोइल राज्य के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।