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ढोल नगाड़ों के बीच सोने और गहनों से लदे हुए खूबसूरत हाथी ऐसा है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

By Belal Jafri

क्या कभी आपने एक ऐसे त्योहार की कल्पना करी है जिसमें सबसे आगे इंसान नहीं बल्कि जानवर खड़े होते हैं। एक ऐसा त्योहार जहां सभी के आकर्षण का केंद्र मानव न हो करके जानवर हों। एक ऐसा मेला जहां लोग इंसानों को न देख वहां मौजूद खूबसूरत जानवरों से प्रेम करें, उनकी फोटो खींचे। आइये त्रिशूर पुरम में आपका स्वागत है। त्रिशूर पुरम केरल में हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। त्रिशूर पुरम त्रिशूर नगर का वार्षिकोत्सव है। यह भव्य रंगीन मंदिर उत्सव केरल के सभी भाग से लोगों को आकर्षित करता है। यह उत्सव थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचोंबीच आयोजित होता है। ज्ञात हो कि यह मलयाली मेडम मास की पूरम तिथि को मनाया जाता है। मासिक धर्म से लाल होता ब्रह्मपुत्र, तांत्रिक, बलि सच में, बड़ा विचित्र है कामाख्या देवी मंदिर

केरल के लोकप्रिय त्योहार विषु के बाद त्रिशूर में हाथियों का जुलूस सभी के आकर्षण का केंद्र रहता है जिसे देखने के लिए भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। ज्ञात हो कि भारत का दक्षिण भारतीय राज्य केरल अपने मंदिरों के कारण लगातार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है और आज केरल और पर्यटन लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची बन गए हैं।

ये भारत का एक ऐसा राज्य है जहां जितना महत्त्व मंदिर और भगवान को दिया जाता है उतना ही हाथियों को भी। शायद यही कारण है कि हाथी केरल का राज्य पशु है। आपको बताते चलें केरल के सभी त्योहारों में हाथी अनिवार्य है। गौरतलब है कि इस साल ये त्योहार त्रिशूर पुरम 9 मई को मनाया जाएगा तो यदि आप इस खूबसूरत त्योहार में सभी के आकर्षण का केंद्र हाथियों को देखने के इच्छुक हैं तो आज ही टिकट बुक करिये और पहुंच जाइए त्रिशूर इस त्योहार का लुत्फ़ लेने।

आइये कुछ तस्वीरों में देखें इस खूबसूरत त्योहार को।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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त्रिशूर पूरम की शुरुआत आज से 200 साल पहले त्रिशूर के राजा ने इस मकसद से करी थी की सारे मंदिर एकजुट हो जाएं।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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केरल का ये लोकप्रिय त्योहार हर साल थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचोंबीच आयोजित होता है।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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इस त्योहार में शामिल मंदिरों को दो वर्गों पूर्वी मंदिरों और पश्चिमी मंदिरों में वर्गीकृत किया गया है। आपको बताते चलें कि यहां का पूरम समारोह मुख्य पूरम तक सात दिनों तक चलता है जहां बाद में पूजा होती है।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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हाथियों की पीठ पार रंगारंग छतरियों का प्रदर्शन इस त्योहार का मुख्य आकर्षण जिसके लिए मंदिर समिती द्वारा एक विशेष प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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इस दौरान प्रतियोगिता जीतने के लिए अलग अलग मंदिर के लोग अपने अपने हाथियों को मोर पंख छतरियों और आभूषणों से सजाते हैं।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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ये विशेष पारंपरिक ढोल नगाड़े और ये कलाकार भी हाथियों के अलावा त्योहार के मुख्य आकर्षण होते हैं। बताया जाता है कि इस त्योहार के लिए 250 से अधिक कलाकार यहां आकर अपनी कला को लोगों के बीच दिखाते हैं।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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आपको बता दें कि आज भी इन ढोल नगाड़ों को बजाने की शैली वैसी ही है जैसी आज से 200 साल पहले थी जब इस पर्व की शुरुआत करी गयी।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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कहा जाता है कि पर्व के दौरान ढोल बजाने वाले ये कलाकार स्वयं भगवान का रूप होते हैं तो इन्हें राज्य में विशेष सम्मान दिया जाता है।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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आयोजन स्थल की तरफ अपने अपने झंडे ले जाते अलग अलग मंदिर समिती के लोग।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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यह उत्सव थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचोंबीच आयोजित होता है। ज्ञात हो कि यह मलयाली मेडम मास की पूरम तिथि को मनाया जाता है।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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केरल के लोकप्रिय त्योहार विषु के बाद त्रिशूर में हाथियों का जुलूस सभी के आकर्षण का केंद्र रहता है जिसे देखने के लिए भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटक आते हैं।

अपने आप में ख़ास है केरल का त्योहार त्रिशूर पुरम

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हाथियों, ढोल नगाड़ों के अलावा आतिशबाजी भी इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं।

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प्रायः इन आतिशबाजियों को मुख्य आयोजन खत्म होने के बाद रात के समय किया जाता है।

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यदि आप इस त्योहार को देखने केरल के त्रिशूर आएं तो इस आतिशबाजी को अपने कैमरे में कैद करना न भूलें।

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ज्ञात हो कि भारत का दक्षिण भारतीय राज्य केरल अपने मंदिरों के कारण लगातार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है और आज केरल और पर्यटन लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची बन गए हैं।

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भारत का एक ऐसा राज्य है जहां जितना महत्त्व मंदिर और भगवान को दिया जाता है उतना ही हाथियों को भी। शायद यही कारण है कि हाथी केरल का राज्य पशु है। आपको बताते चलें केरल के सभी त्योहारों में हाथी अनिवार्य है।

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