33 करोड़ देवी देवता होने के कारण भारत ने हमेशा ही विश्व मानचित्र पर विदेशी पर्यटकों को अपनी संस्कृति और हिन्दू धर्म की तरफ आकर्षित किया है। कहा जा सकता है कि ये हिन्दू धर्म और भारत के बेहतरीन वास्तुकला से लिप्त मंदिर ही हैं जो आये रोज विदेशी पर्यटकों को भारत की भूमि पर ले आ रहे हैं। विदेशी पर्यटकों के यहां आने से जहां एक तरफ भारत का पर्यटन उद्योग बढ़ रहा हैं वहीं सांस्कृतिक रूप में भी भारत अंतर्राष्ट्रीय पटल पट अपनी एक ख़ास पहचान बना रहा है।
यदि आप भारत में मौजूद मंदिरों पर गौर करें तो मिलेगा कि यहां मौजूद हर मंदिर अपने पीछे कोई रोचक दास्तान कोई दिलचस्प किवदंती लिए हुए है ।तो आज अपने इस लेख में हम आपको अवगत कराएंगे एक ऐसे मंदिर से जो एक नहीं दो - दो भगवानों को समर्पित है। जी हां हम बात कर रहे हैं भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में शुमार तेली के मंदिर की तेली का मंदिर ग्वालियर किले में स्थित है।
विश्व का इकलौता मंदिर जहां 10 अलग रूपों में विराजें हैं भगवान विष्णु
आपको बताते चलें कि इसे तेल के आदमी का मंदिर कहा जाता है। यह एक बहुत बड़ी संरचना है जिसकी ऊंचाई 100 फुट है। इसकी छत की वास्तुकला द्राविड़ीयन शैली की है जबकि नक्काशियां और मूर्तियाँ उत्तर भारतीय शैली की हैं। इसकी वास्तुशैली हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का सम्मिश्रण है। यह ग्वालियर के किले के परिसर का सबसे पुराना स्मारक है। इसका निर्माण 11 वीं या 8 वीं शताब्दी में हुआ था। तेली का मंदिर पहले विष्णु का मंदिर था जो बाद में भगवान शिव का मंदिर बन गया।
मंदिर के अंदर देवियों, साँपों, प्रेमी युगलों और गरुड़ की मूर्तियाँ हैं जिनकी वास्तुकला और शैली आपको मंत्र मुग्ध कर देगी। इस मंदिर की एक और ख़ास बात है कहा जाता है कि 1857 में घटित आजादी की पहली लड़ाई तक इस मंदिर का इस्तेमाल अंग्रेज अफसर कॉफ़ी शॉप और शराब फैक्ट्री के रूप में करते थे।ज्ञात हो कि ग्वालियर के किले में मौजूद इस इमारत का शुमार किले के सबसे प्राचीन स्मारकों में होता है।
घड़ी वाले रहस्यमय देबता से मिलिए
कहा जा सकता है कि 8 वीं शताब्दी में स्थापित ये मंदिर भारतीय राजाओं के वास्तु कौशल की एक बेहतरीन झलक देता है। तो अब देर किस बात की यदि आपको इस रहस्यमय मंदिर को देखना और इसके दर्शन करने हैं तो आज ही टिकट बुक कराइए और ग्वालियर का रुख कीजिये।
तेली का मंदिर
भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में शुमार तेली के मंदिर की तेली का मंदिर ग्वालियर किले में स्थित है।
तेली का मंदिर
आपको बताते चलें कि इसे तेल के आदमी का मंदिर कहा जाता है। यह एक बहुत बड़ी संरचना है जिसकी ऊंचाई 100 फुट है।
तेली का मंदिर
है। इसकी छत की वास्तुकला द्राविड़ीयन शैली की है जबकि नक्काशियां और मूर्तियाँ उत्तर भारतीय शैली की हैं। इसकी वास्तुशैली हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का सम्मिश्रण है।
तेली का मंदिर
यह ग्वालियर के किले के परिसर का सबसे पुराना स्मारक है। इसका निर्माण 11 वीं या 8 वीं शताब्दी में हुआ था।
तेली का मंदिर
तेली का मंदिर पहले विष्णु का मंदिर था जो बाद में भगवान शिव का मंदिर बन गया।
तेली का मंदिर
किले और यहां के रहस्यों को जाननें के लिए यहां देश के अलावा विदेशों से भी पर्यटक आते हैं।
तेली का मंदिर
मंदिर के अंदर देवियों, साँपों, प्रेमी युगलों और गरुड़ की मूर्तियाँ हैं जिनकी वास्तुकला और शैली आपको मंत्र मुग्ध कर देगी।
तेली का मंदिर
इस मंदिर की एक और ख़ास बात है कहा जाता है कि 1857 में घटित आजादी की पहली लड़ाई तक इस मंदिर का इस्तेमाल अंग्रेज अफसर कॉफ़ी शॉप और शराब फैक्ट्री के रूप में करते थे।
तेली का मंदिर
ज्ञात हो कि ग्वालियर के किले में मौजूद इस इमारत का शुमार किले के सबसे प्राचीन स्मारकों में होता है।
तेली का मंदिर
कहा जा सकता है कि 8 वीं शताब्दी में स्थापित ये मंदिर भारतीय राजाओं के वास्तु कौशल की एक बेहतरीन झलक देता है।
तेली का मंदिर
इस मंदिर के अलावा भी ग्वालियर के किये में कई महत्त्वपूर्ण स्मारक हैं जिनकी यात्रा आपको अवश्य करनी चाहिए।
तेली का मंदिर
तो अब देर किस बात की यदि आपको इस रहस्यमय मंदिर को देखना और इसके दर्शन करने हैं तो आज ही टिकट बुक कराइए और ग्वालियर का रुख कीजिये।