आरंग एक पुराना शहर है जो रायपुर से लगभग 36कि.मी. दूर है। यह शहर अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है जिनमें से भांदादेवल मंदिर और महामाया मंदिर आदि के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि यह कभी राजा मोरध्वज की राजधानी थी और इसकी पहचान एक समृद्ध नगर के रूप में थी।
रायपुर जिले में सिरपुर तथा राजिम के बीच महानदी के किनारे बसे इस छोटे से नगर को मंदिरों की नगरी कहते हैं। यहां के प्रमुख मंदिरों में 11वीं-12वीं सदी में बना भांडदेवल मंदिर है। यह एक जैन मंदिर है, जिसके बाहरी हिस्सों में बनी इरॉटिक मूर्तियां खजुराहो की याद दिलाती हैं। इसके गर्भगृह में काले ग्रेनाइट से बनी जैन तीर्थंकरों की तीन मूर्तियां हैं। महामाया मंदिर में 24 तीर्थकरों की मूर्तियां देखने लायक हैं। महामाया मंदिर में 24 तीर्थकरों की दर्शनीय प्रतिमाएं हैं। बाग देवल, पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा दंतेश्वरी देवी मंदिर यहां के अन्य मंदिर हैं जो दर्शनीय हैं।'
जब कृष्ण ने मांगा था राजा से बेटे का मांस
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण अपने भक्त मोरध्वज की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने अर्जुन से शर्त लगाई थी कि उनका उससे भी बड़ा कोई भक्त है। कृष्ण ऋषि का वेश बना अर्जुन को साथ लेकर मोरध्वज के पास पहुंचे और कहा, 'मेरा शेर भूखा है और वह मनुष्य का ही मांस खाता है।' राजा अपना मांस देने को तैयार हो गए तो कृष्ण ने दूसरी शर्त रखी कि किसी बच्चे का मांस चाहिए।
रातो-रात बने इन मन्दिरों की कहानी है हैरान करने वाली
राजा ने तुरंत अपने बेटे का मांस देने की पेशकश की। कृष्ण ने कहा, 'आप दोनों पति-पत्नी अपने पुत्र का सिर काटकर मांस खिलाओ, मगर इस बीच आपकी आंखों में आंसू नहीं दिखना चाहिए।' राजा और रानी ने अपने बेटे का सिर काटकर शेर के आगे डाल दिया। तब कृष्ण ने राजा मोरध्वज को आशीर्वाद दिया जिससे उसका बेटा फिर से जिंदा हो गया।
किले में हैं कुआं
इस कुंए के बारे में किवदंती है कि राजा मोरध्वज सुबह यहां से 4 किलोमीटर की दूरी पर गंगा स्नान के लिए जाते थे। यह उनका नियमित दिनचर्या थी। गंगा जी ने सोचा कि यह भक्त रोज इतनी दूर से आता है क्यों न मैं एक धारा इनके किले के पास तक प्रवाहित कर दूं तो गंगा मां ने इस कुएं के माध्यम से एक धारा प्रवाहित की। इस कुएं के पानी की यह खासियत है कि दाद, खाज, खुजली आदि के रोग इसके स्नान से दूर हो जाते है। क्षेत्रीय लोग एवं दूर-दूर से आये श्रद्वालु इस कुएं में स्नान करते हैं तथा रोगों से मुक्त होते हैं।