बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध समुदाय का एक विशेष पर्व है, जिसे हर वर्ष बुद्ध जयंती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता है। कहते हैं इस दिन भगवान गौतम बुद्ध ने मोक्ष प्राप्त किया था। बुद्ध पूर्णिमा को भगवान् बुद्ध की जयंती और उनके निर्वाण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
आइये जानते हैं कौन थे भगवान बुद्ध?
भगवान् बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी। कहते हैं गौतम बुद्ध को जन्म देने के ठीक सात दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया था जिसके बाद उनका पालन बुद्ध की मौसी महाप्रजापती गौतमी ने किया। माना जाता है कि भगवान् बुद्ध के जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की थी कि यह शिशु या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा। इस बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। कहा जाता है कि सिद्धार्थ बचपन से ही बड़े दयालु स्वभाव के थे, वह न तो किसी को दुख दे सकते थे न ही किसी को दुखी देख सकते थे।
हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है। ज्ञात हो कि बौद्ध धर्म से जुड़े ज्यादातर स्मारक भारत और नेपाल में फैलें हैं जहाँ हर साल देश दुनिया के लोग दर्शन के लिये आते हैं। तो अब देर किस बात की यदि आपको बौद्ध धर्म के वैभव को देखना है तो इन शहरों में अवश्य आएं।
बोधगया
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कहा जाता है कि, जब काफी भटकने के बाद जब भगवान बौद्ध को शांति नहीं मिली तो वह बोधगया स्थित पीपल के पेड़ के नीचे विराजमान हो गये हैं, और कसम खायी कि वह तब तक नहीं उठेंगे, जब तक उन्हें शांति और ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। 35वर्ष की उम्र में, 49 दिन के ध्यान के बाद सिद्धार्थ ने ज्ञान प्राप्त किया, और उस पीपल के पेड़ को आज बोधी पेड़ के नाम से जाना जाता है।
ज्ञान की प्राप्ति के बाद बुद्धा ने चार नोबल सत्य और बौद्ध धर्म के अन्य सिद्धांतों को बताया। विश्व धरोहर स्थल में शमिल जो चुकी इस जगह बुद्ध को समर्पित कई मंदिर मौजूद हैं.जिनका निर्माण चीन, जापान, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे विभिन्न देशों द्वारा किया गया है। बोध गया बुद्ध प्रतिमा अब शहर का प्रतीक बन गई है। यह राजसी व भव्य प्रतिमा बैठने की मुद्रा में स्थापित है जिनकी ऑंखें बंद हैं। ऑंखें बंद होना यह दर्शाता है कि, भगवान बुद्धा ध्यान मुद्रा में यहाँ विराजमान हैं। यह प्रतिमा यहाँ आने वाले पर्यटकों को एक अलग सुख का अनुभव कराती है और इसलिए भी यह भारत में स्थित भगवान बुद्धा की सबसे आकर्षक व अद्भुत प्रतिमाओं में से एक है।
सारनाथ
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कहा जाता है कि, भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति का बाद अपना पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया था। सारनाथ का बौद्ध धर्म से गहरा नाता है और यह भारत के चार प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों में एक है। सारनाथ में ही महान भारतीय सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाए थे। उन्होंने यहां प्रसिद्ध अशोक स्तंभ का भी निर्माण करवाया, जिनमें से अब कुछ ही शेष बचे हैं। इन स्तंभों पर बने चार शेर आज भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। वहीं स्तंभ के चक्र को राष्ट्रीय ध्वज में देखा जा सकता है। 1907 से यहां कई खुदाई की गई हैं। इसमें कई प्राचीन स्मारक और ढांचे मिले, जिससे उत्तर भारत में बौद्ध धर्म के आरंभ और विकास का पता चलता है।
तीर तलवार से नहीं, बल्कि सत्य और अहिंसा से हुई महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म की शुरुआत
कुशीनगर
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कुशीनगर मुख्यत: बौद्ध तीर्थ के रूप में जाना जाता हैं, इसलिए यह स्थल, बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले साधकों का मुख्य केंद्र है। यहां की हवाओं में निहित शीतलता, मानसिक शांति की कुंजी प्रतीत होती है। भगवान बुद्ध ने कुशीनगर में अपना बचपन बिताया था, इसलिए यह स्थल उन्हें बहुत प्रिय था। इस बात में कोई शक नहीं, कि कुशीनगर एक समृद्ध नगर था, जिसकी प्रशंसा स्वयं भगवान बुद्ध ने की है। बुद्ध की शिक्षा का यहां बहुत प्रभाव पड़ा, जब बुद्ध अंतिम बार यहां आए तो उस समय के मल्ल राजा ने उनके स्वागत-सत्कार में कोई कमी न छोड़ी। कहा जाता है, बुद्ध के स्वागत में सम्मिलित न होने वालों पर 500 मुद्रा का दंड घोषित किया गया था।
यहां घूमने के लिहाज से कई प्रमुख दार्शनिक स्थल मौजूद हैं, जहां आप भरपूर शांति का अनुभव करेंगे। आप यहां निर्वाण स्तूपदेख सकते हैं, ईंट और रोड़ी से बने इस स्तूप की ऊंचाई 2.74 मीटर है। आप चाहें तो यहां स्थित महानिर्वाण मंदिर देख सकते हैं, जहां बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी मूर्ति स्थापित है। आप निर्वाण स्तूप से 400 गज की दूरी पर स्थित, माथाकौर मंदिर भी देख सकते हैं, जहां से महात्मा बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा वाली एक प्रतिमा खुदाई के दौरान मिली। इसके अलावा आप रामाभार स्तूप, बौद्ध संग्रहालय, व लोकरंग की सैर का आध्यात्मिक आनंद ले सकते हैं।