कई दिनों से कह लद्दाख जाने की इच्छा थी। लेकिन जब भी प्लान बनता है हमेशा किसी ना किसी कारण असफल हो जाता। लेकिन बीती साल क्रिश्मस के बाद मेने और कुछ दोस्तों ने एक बार फिर से लेह लद्दाख जाने का प्लान बनाया।
हमने पूरे पांच दिन कि ट्रिप दिल्ली से लेह तक की प्लान की। दिल्ली से लद्दाख जाने के लिए हमने कैब हायर की।
दोस्तों के साथ जैसे ही प्लान बना मैंने घर आकर लेह जाने के लिए पूरी पैकिंग कर डाली। और सुबह जाने के उतावलेपन में जल्दी ही खा पीकर सो गयी। अगले दिन सुबह जल्दी उठ गयी और नहा धोकर उस जगह कॉमन जगह पहुंच गयी जहां हम सभी दोस्तों को इकट्ठा होना था,वहां से कैब ने हम सभी दोस्तों को पिक किया।
यात्रा-दिल्ली से लेह
साधन-कार-बस
पहुँचने का समय-चार दिन
कितने दिन-छ दिन
लेह लद्दाख जाना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था क्योंकि मै काफी समय से लेह जाने का मन बना रही थी,लेकिन हमेशा ही प्लान फ्लॉप हो जाता। गाड़ी में बैठने के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा खुश था तो शायद मै। खैर हम दिल्ली से लेह के पांच की ट्रिप पर निकल ही गये।बता दें तो दिल्ली से लेह की यात्रा 1075 किमी है। इसमें कोई शक नहीं दिल्ली से लेह तक की रोड ट्रिप काफी रोमांचक होने वाली थी।
पहला दिन
पहले दिन की यात्रा हमने दिल्ली से नालागढ़ के लिए शुरू की । हम दिल्ली से सुबह 6 बजे करीब निकले थे । दिल्ली से नालागढ़ की दूरी करीबन 5 घंटे की। पांच घंटे का सफर तय करके करीबन 11 बजे हम नालागढ़ पहुंच गये।
यहां पहुंच कर पहले हमने अच्छे से पेट पूजा की। और निकल पड़े नालागढ़ घूमने।
बता दे, नालागढ़ हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में पड़ता है। नालागढ़ शहर को हिमाचल प्रदेश का गेटवे भी कहा जाता है। नालागढ़ में देखने के नालागढ़किला है।
नालागढ़ में थोड़ा आराम करने के बाद और किला घूमने के बाद हम सब मनाली के लिए करीबन 3 बजे निकल पड़े। नाला गढ़ से मनाली दूरी करीबन 275 किमी है। नालागढ़ से मनाली पहुँचने में 7 घंटे लगते है क्यों कि वहां का रास्ता पहाड़ी है। हम करीबन रात 10 बजे मनाली पहुंच चुके थे। मनाली पहुंचने के बाद हमने के होटल बुक किया और रात का खाना खाकर हमने सोने का डिसाइड किया।
दूसरे दिन
दूसरे दिन 6 बजे उठकर हमने एक हेल्दी नाशता किया। और मनाली शहर का भ्रमण करते हुए निकल पड़े रोहतांग।मनाली से लेह जाते समय 51 किमी दूर पहला पड़ाव है रोहतांग का दर्रा बेहद ख़ूबसूरत स्थल जिसमें यहाँ देखने के लिए विशेष स्थल है-: ब्यास नदी का उदगम और वेद ब्यास ऋषि मंदिर।
रोहतांग से आगे बढ़ते हुए हम ग्राम्फू - कोकसर - टाण्डी होते हुए हम केलांग पहुंचे। केलांग भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले का जिला मुख्यालय है, यहां पर्यटक चाय पानी के लिए विश्राम करते हैं ।यहाँ केलांग के गोंपे, ट्राइबल म्यूजियम, लेडी ऑफ केलांग आदि घूमने लायक स्थान हैं।
केलांग से जिप्सा होते हुए हम 28 किमी दूर दारचा गाँव पहुंचे। यहां पहुंचकर हमे पुलिस चेक पोस्ट पर जाना पड़ा । क्यों कि यहाँ से गुजरने वाली हर गाड़ी को रुकना पड़ता है और वहां रखे रजिस्टर में जरुरी सूचनाएं भरनी पड़ती हैं।
इसके बाद हमने यहीं रात गुजारना बेहतर समझा।
दारचा में रात गुजारने के बाद अगली सुबह हमने दारचा में एक अच्छा नाश्ता किया। जिसेक बाद दारचा से जिंगजिंगबार होते हुए हम 44 किमी दूर स्थित बड़ालाचा ला ,पहुंचे जो हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। यह मंडी और लेह
को सड़क परिवाह से जोड़ता है। बारालाचा ला से ही विपरीत दिशाओं में चन्द्रा और भागा नदियों का उद्गम है। यहां से भरतपुर तक आपको तेज ढलान और खराब सड़क मिलेगी इसलिए हमें अपनी गाड़ी की स्पीड काफी धीमी करनी पड़ी।
दोपहर होते होते हम बारालाचा से भरतपुर होते हुए 40 किमी पर सरचू पहुंचे।यहां पहुंचकर हमने खाना खाया और आराम करने का विचार बनाया। साथ ही यहीं रात गुजारने का भी मन बना लिया, क्योंकि हमारा अगला पढ़ाव था लेह।
चौथा दिन
चौथे दिन हमारी यात्रा सरचू से लेह के लिए शुरू हुई। हम पांग से होते तंगलंग ला पहुंचे, इसी रास्ते में सुप्रसिद्ध मोरे मैदान पड़ता है जहां पचासों किलोमीटर तक बिलकुल सीधी और चौड़ी सड़क है।
तंगलंग ला इस मार्ग का सबसे ऊँचा स्थान है। यह दर्रा दुनिया का तीसरा सबसे ऊँचा मोटर योग्य दर्रा है। यहां सिंधु नदी के पहली बार दर्शन होते हैं। तंगलंग ला से सीधे चलते हुए 60 किमी की दूरी पर हमे सिन्धु नदी दिखाई दी।
यहाँ सिंधु नदी पार करनी होती है। यहाँ से पुराने समय में तिब्बत के लिए रास्ता जाता था। वह रास्ता अभी भी है और भारत-तिब्बत सीमा पर चुमार तक जाता है। जिसके बाद हम पेंगोंग झील के लिए निकल पड़े।
पेंगोंग झील एक नमक की झील है। ईसकी वास्तविक लम्बाई तो नहीं पता लेकिन यह पचास किलोमीटर से भी ज्यादा भारत में है और ऐसा कहा जाता है कि अपनी कुल लम्बाई का एक तिहाई यह भारत में है और दो तिहाई तिब्बत में।इस
झील की खास बात यह है की इस झील का पानी नीला है।
यकीनन इस झील को देखकर आपको लगेगा की आप बस इसे निहारते ही रहे। पेंगोंग झील के किनारे कुछ देर आराम करने के बाद हमने वहां के रेस्तरां में खाना खाया और अपने लिए वहां एक कैम्प बनाकर रात गुजारने क विचार बनाया। पूरी रात तारों की छांव में बिताने के बाद हमेंसुबह अब वापस दिल्ली जाना था।
पांचवा दिन
सुबह उठकर हमने फिर पेंगोंग से सरचू की यात्रा तय की। हमने अपनी पूरी यात्रा जके दौरान जमकर तस्वीरें क्लिक की ।सरचू पहुंचने के बाद हमने वहां के लोकल बाजर घूमे और रात बितायी। उसके बाद फिर अगली सुबह हम सरचू से दिल्ली की ओर निकल पड़े ।