अपनी अनूठी सभ्यता और संस्कृति के लिए विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग पहचान रखने वाला भारत कई ऐसे खूबसूरत डेस्टिनेशंस से भरा पड़ा है जो अपने में कई अनूठे रहस्य समेटे हुए हैं। आज जहां एक तरफ इनमें से कई डेस्टिनेशंस बेहद लोकप्रिय हैं तो वहीं कई डेस्टिनेशंस ऐसे भी है जिनके बारे में शायद ही लोगों को पता हो। तो इसी क्रम में आज हम आपको एक ऐसे ही डेस्टिनेशन से अवगत कराने जा रहे हैं जिसका इतिहास रामायणकाल का है कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने लंका तक जाने के लिए पुल का निर्माण कार्य यहीं से शुरू किया था और जहां मौजूद भारी-भारी पत्थर आज भी समुंद्र में तैरते हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं धनुषकोडी या दनुशकोडि की। धनुषकोडी, तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे और पंबन के नजदीक स्थित एक शहर है जहां से पड़ोसी देश श्रीलंका से महज 20 किलोमीटर दूर है। शायद आपको जानकार आश्चर्य हो की धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच केवल स्थलीय सीमा है जो पाक जलसन्धि में बालू के टीले पर सिर्फ 50 गज की लंबाई में विश्व के लघुतम स्थानों में से एक है।
धनुषकोडी के संबंध में हिंदू पौराणिक कथाएं
हिन्दू धर्मग्रथों के अनुसार रावण के भाई और भगवान श्रीराम के सहयोगी विभीषण के अनुरोध पर राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया और इस प्रकार इसका नाम धनुषकोडी पड़ा। यह भी कहा जाता है कि राम ने अपने प्रसिद्ध धनुष के एक छोर से सेतु के लिए इस स्थान को चिह्नित किया। सामान्यत: दो समुद्रों के संगम पर पवित्र सेतु में स्नान कर तीर्थयात्री रामेश्वरम के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। एक रेखा में पाई जाने वाली चट्टानों और टापूओं की श्रृंखला प्राचीन सेतु के ध्वंसावशेष के रूप में दिखाई देती हैं और जिसे राम सेतु के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि काशी की तीर्थयात्रा महोदधि (बंगाल की खाड़ी) और रत्नाकर (हिंद महासागर) के संगम पर धनुषकोडी में पवित्र स्थान के साथ रामेश्वरम में पूजा के साथ ही पूर्ण होगी। सेतु संस्कृत का पुल या सेतु को इंगित करने वाला शब्द है। राम द्वारा लंका पहुंचने के लिए महासागर पर बनाए गए पुल के रूप में यह अब विशेष महत्व अर्जित कर चुका है।
धनुषकोडी का वर्तमान स्वरुप
चूंकि धनुषकोडी का ज्यादातर हिस्सा 22 दिसंबर 1964 में आये तूफ़ान के चलते खँडहर में तब्दील हो चुका है तो वर्तमान में यहां आपको प्राचीन अवशेष और स्थानीय मछुआरों के आवास ही यहां देखने को मिलेंगे। यदि फोटोग्राफी में आपकी रूचि है तो हमारा ये सुझाव है कि आपको इस स्थान की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। यहां आकर आप कुछ ऐसी यादें अपने कैमरे में कैद करेंगे जो हर पल आपको इस जगह की सुन्दरता से अवगत कराएगी। यहां आने के बाद आप धनुषकोडी स्मारक देखना न भूलें जिसका निर्माण यहां 1964 के तूफान में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया है।
धनुषकोडी बीच
धनुषकोडी बीच पर बैठकर लहरों को निहारते एक कपल की खूबसूरत तस्वीर।
धनुषकोडी बीच
धनुषकोडी बीच की एक ऐसी तस्वीर जो आने वाले किसी भी पर्यटक को मंत्र मुग्ध कर दे।
धनुषकोडी बीच
धनुषकोडी बीच का वो हिस्सा जहां सड़क खत्म हो जाती है और दिखता है विशाल समुंद्र।
धनुषकोडी रेलवे स्टेशन
1964 में तूफ़ान से तबाह हुए धनुषकोडी रेलवे स्टेशन की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर।
मछली पकड़ने की टूटी नाव
अपने अकेलेपन का एहसास कराती धनुषकोडी के अंतिम सिरे पर मछली पकड़ने की टूटी नाव की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर।
यात्रा का माध्यम
धनुषकोडी के लिए मिनि ट्रकों से यात्रा करते लोगों की तस्वीर।
धनुषकोडी से समुद्र
धनुषकोडी से समुद्र की एक आकर्षक तस्वीर, आपको बताते चलें की यहां से श्रीलंका महज 20 किलोमीटर दूर है।
यातायात के साधन
भू सीमांत पर गहरे बालू और छिछले तट का उपयोग कर स्थानीय बच्चों द्वारा वाहन के रूप में लोगों को ले जाते मिनी ट्रकों की कतार की एक तस्वीर।
नष्ट हो चुका रेल ट्रैक
एक तूफान और उच्ची समुद्री लहरों ने 1964 में धनुषकोडी को नष्ट कर दिया। धनुषकोडी के रेलवे ट्रैक के अवशेष।
मछली पकड़ते मछुआरे
छिछले पानी में हाथों से मछली पकड़ते मछुआरों की तस्वीर।
एक छोटा सा चर्च
अपने में बहुत कुछ कह गयी धनुषकोडी में एक चर्च से गूंज रहे लाउडस्पीकर की ये तस्वीर।
एक स्थानीय चर्च
धनुषकोडी में एक स्थानीय चर्च, ज्ञात हो कि शायद ही आपको भारत भर में ऐसे चर्चों के दीदार हों।
स्थानीय भोजन
एक स्थानीय होटल में रखी हुई तली मछलियां। ज्ञात हो कि यहां के लोग मछली को बड़े चाव से खाते हैं।
मन्नार समुद्री अभयारण्य
मन्नार समुद्री अभयारण्य जो कई समुद्री जानवरों और पक्षियों की मेजबानी करता है। यहां दिखने वाले पक्षियों में मराल, कर्लू, समुद्री पक्षी, कुररी, टिटिहरी, प्लोवर, चट्टान हेरोन्स और एगरेट्स शामिल हैं।
आसमान से लिया गया नज़ारा
यदि आप रामेश्वरम में हैं तो वहां आसमान से कुछ यूं दिखता है धनुषकोडी का नज़ारा।
तैरते हुए पत्थर
ऐसे ही कई तैरते हुए पत्थरों से भगवान श्री राम ने किया था रामसेतु का निर्माण।